परंपरा का नया अध्याय: कांची कामकोटी पीठ को मिला नया आचार्य
71वें आचार्य की नियुक्ति केवल एक धार्मिक रस्म नहीं, बल्कि एक बार फिर यह दिखाता है कि सनातन धर्म की परंपरा आज भी जीवित और सशक्त है।;
30 अप्रैल को अक्षय तृतीया के पवित्र दिन कांची कामकोटी पीठ के 71वें आचार्य दुड्डु सत्य वेंकट सूर्य सुभ्रमण्यम गणेश शर्मा द्रविड़ को आचार्य पद पर नियुक्त किया जाएगा। यह आयोजन वर्तमान पीठाधिपति शंकर विजयेंद्र सरस्वती जी के मार्गदर्शन में होगा। यह दिन आदि शंकराचार्य की जयंती का पर्व भी है, जिन्होंने यह पीठ करीब 2,500 साल पहले स्थापित किया था.
सनातन धर्म की रक्षा की परंपरा
यह पीठ भारत की गुरु-शिष्य परंपरा का एक जीवंत उदाहरण है, जो पीढ़ियों से सनातन धर्म को बचाने और फैलाने का कार्य करती आ रही है। बीते 100 वर्षों में यह मठ भारत और दुनिया भर में धर्म की रक्षा और प्रचार का एक मजबूत केंद्र बन चुका है। आदि शंकराचार्य ने सिर्फ 32 वर्षों के जीवन में सनातन धर्म को पुनर्जीवित किया और मठों की स्थापना की, ताकि धर्म की परंपराएं आगे भी चलती रहें। कांची कामकोटी मठ उन्हीं की बनाई गई पहली पांच मठों में से एक है।
कांची और शंकराचार्य का विशेष संबंध
कई ग्रंथों में लिखा है कि शंकराचार्य ने कांची में लंबा समय बिताया था, जहां उन्होंने देवी कामाक्षी के सामने श्रीचक्र की स्थापना की और नगर का पुनर्निर्माण किया। कुछ मान्यताओं के अनुसार, उन्होंने कांची में ही अपने अंतिम दिन बिताए थे। इसीलिए कांची और शंकराचार्य का गहरा रिश्ता है।
ब्रिटिश काल और स्वतंत्रता के बाद की चुनौतियां
जब भारत अंग्रेज़ों के अधीन था और उसके बाद स्वतंत्रता के शुरुआती वर्षों में सनातन धर्म को कई बड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ा। पश्चिमी सोच का असर, जातीय और धार्मिक विभाजन और नास्तिक विचारधाराओं का उदय — इन सबने परंपराओं को कमजोर किया। ऐसे समय में कांची मठ ने धर्म की पुनर्स्थापना के लिए बहुत योगदान दिया।
सनातन धर्म की पुनर्स्थापना के प्रयास
- वेदपाठशालाओं की स्थापना और वेदज्ञों को सहयोग
- संस्कृत और तमिल के प्रचार को बढ़ावा
- गायन और भक्ति प्रतियोगिताओं द्वारा धर्म को जन-जन तक पहुंचाना
- पुराने वेदों और हस्तलिपियों को संरक्षित करना
ये सभी कार्य 68वें शंकराचार्य चंद्रशेखरेन्द्र सरस्वती (महापरियव) और 69वें शंकराचार्य जयेन्द्र सरस्वती के नेतृत्व में किए गए। कांची मठ ने न केवल हिंदू संप्रदायों (शैव, वैष्णव, आदि) को जोड़ा, बल्कि मुस्लिम और ईसाई समुदाय के लोगों ने भी इस मठ को श्रद्धा से देखा। मठ ने भाषा, कला, संस्कृति और सामाजिक समरसता में अहम भूमिका निभाई।
दलितों और वंचितों के लिए काम
जयेंद्र सरस्वती के मार्गदर्शन में मठ ने दलित और पिछड़े वर्गों के लिए काम किया — जैसे कि उनके इलाकों में मंदिर बनाना, उन्हें धर्मिक गतिविधियों में शामिल करना और मीनाक्षीपुरम जैसे मामलों में धर्म में वापस लाना। उन्होंने राम जन्मभूमि आंदोलन में भी शांति स्थापित करने की कोशिश की।
नई पीढ़ी को तैयार करना
मठ ने शिक्षा के क्षेत्र में भी काम किया — जहां वेदों के साथ-साथ आधुनिक विषयों की भी पढ़ाई होती है, जिससे युवा दोनों दुनियाओं को समझ सकें। उन्होंने संस्कृत पांडुलिपियों को भी संरक्षित किया, ताकि आने वाली पीढ़ियां उनसे लाभ उठा सकें। मठ ने शंकर नेत्रालय जैसे अस्पतालों, मुफ़्त चिकित्सा शिविरों और शिक्षण संस्थानों की स्थापना में भी सहयोग किया है, जिससे समाज को सीधे लाभ मिला है।
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