ट्रंप के शांति प्रयास : रूस-यूक्रेन संघर्ष के अंत की संभावनायें कितनी आगे बढ़ीं?
व्हाइट हाउस में यूरोपीय नेताओं और ट्रंप की बैठक में यूक्रेन के लिए सुरक्षा गारंटी और ज़ेलेंस्की-पुतिन वार्ता पर सहमति बनी, लेकिन कई सवाल अब भी अनुत्तरित।;
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा यूक्रेन संघर्ष को समाप्त करने के प्रयासों का दूसरा चरण पूरा हो गया है। इस नाटक का यह हिस्सा 18 अगस्त को व्हाइट हाउस में आयोजित हुआ। इसकी शुरुआत ट्रंप और यूक्रेन के राष्ट्रपति वलोडिमिर ज़ेलेंस्की की बैठक से हुई, जिसके बाद ट्रंप और ज़ेलेंस्की के साथ यूरोप के प्रमुख देशों के शीर्ष नेताओं की बैठक हुई।
इस बैठक में शामिल नेताओं में फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों, जर्मनी के चांसलर (प्रधानमंत्री के समकक्ष) फ़्रेडरिक मर्ज़, ब्रिटेन के प्रधानमंत्री कीर स्टार्मर, इटली की प्रधानमंत्री जॉर्जिया मेलोनी और फिनलैंड के राष्ट्रपति एलेक्ज़ेंडर स्टब्स शामिल थे। यूरोपीय आयोग की अध्यक्ष उर्सुला वॉन डेर लेयेन और नाटो महासचिव मार्क रुटे ने भी बैठक में भाग लिया।
ओवल ऑफिस में यूरोपीय नेताओं के साथ अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप (फोटो : X/@WhiteHouse)
अब असली सवाल यह है कि क्या इस बैठक के नतीजे ने वास्तव में यूक्रेन संघर्ष के अंत की संभावनाओं को आगे बढ़ाया है। इसका जवाब पाने के लिए यह देखना ज़रूरी है कि इस बैठक से क्या हासिल हुआ और क्या छूट गया। लेकिन उससे पहले दो महत्वपूर्ण बिंदु स्पष्ट करने आवश्यक हैं।
पहला: जब फरवरी 2022 में रूस ने यूक्रेन पर हमला किया था, तब अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडन के नेतृत्व में अमेरिका और यूरोपीय शक्तियाँ इस बात पर एकजुट थीं कि यूक्रेन की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता अटल है। वास्तव में यूरोप की सुरक्षा संरचना इन्हीं सिद्धांतों पर आधारित थी। इसीलिए रूस द्वारा इनका खुला उल्लंघन इन देशों के लिए अस्वीकार्य था। उन्होंने मांग की कि रूस अपनी सेनाएँ यूक्रेन के सभी इलाकों से हटाए, जिनमें क्रीमिया भी शामिल है जिसे रूस ने 2015 में अपने कब्जे में लेकर अपने क्षेत्र में मिला लिया था। अपनी इस मांग को मजबूत करने के लिए पश्चिमी देशों ने यूक्रेन को व्यापक सैन्य सहायता देने का निर्णय लिया। हालांकि इस सहयोग के बावजूद रूस डोनेट्स्क, लुहान्स्क, ज़ापोरीज़्ज़िया और खेरसॉन के बड़े हिस्सों पर नियंत्रण जमाने में सफल रहा। बाद में रूस ने औपचारिक रूप से इन इलाकों को अपने में मिला लिया।
व्हाइट हाउस की बैठक में इन क्षेत्रों पर कोई चर्चा नहीं हुई। न ही यह मांग उठी कि रूस को यूक्रेन की अंतरराष्ट्रीय मान्यता प्राप्त सीमाओं का सम्मान करना चाहिए। अलास्का बैठक के बाद ट्रंप ने यह कहा था कि क्षेत्रीय मुद्दे पर बातचीत यूक्रेन और रूस के बीच होनी चाहिए। 18 अगस्त की बैठक से ठीक पहले उन्होंने यह भी संकेत दिया कि क्रीमिया का मुद्दा नहीं उठाया जाना चाहिए। किसी यूरोपीय नेता द्वारा यूक्रेन की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का मुद्दा न उठाए जाने का मतलब है कि वे अब मान चुके हैं कि रूस के कब्ज़े वाले इलाके वापस नहीं मिल सकते। इसलिए वे अब उस यूरोपीय व्यवस्था की ओर देख रहे हैं जो यूक्रेन मुद्दे के निपटारे के बाद बनेगी।
दूसरा: जर्मन चांसलर फ़्रेडरिक मर्ज़ को छोड़कर किसी और नेता ने रूस और यूक्रेन के बीच युद्धविराम की आवश्यकता की बात नहीं की। अलास्का बैठक से पहले ट्रंप भी अक्सर कहा करते थे कि जान बचाने के लिए युद्धविराम आवश्यक है। लेकिन बैठक के बाद उन्होंने युद्धविराम पर ध्यान देना बंद कर दिया और इसके बजाय यूक्रेन और रूस के बीच एक समझौते पर जोर देना शुरू कर दिया।
उधर, रूस यूक्रेन पर हमले जारी रखे हुए है। एक प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय समाचार एजेंसी ने रिपोर्ट किया कि व्हाइट हाउस बैठक के दौरान ही यूक्रेनी अधिकारियों ने दावा किया कि रूस ने यूक्रेन पर 270 ड्रोन और 10 मिसाइलें दागीं। यह न केवल यूक्रेन पर पुतिन का दबाव बढ़ाने की रणनीति थी बल्कि अमेरिका और यूरोपीय देशों को यह संकेत भी था कि रूस किसी भी हालत में युद्धविराम स्वीकार नहीं करेगा। इसका मतलब यह भी है कि इस समय पुतिन चाहते हैं कि बड़े शक्तिशाली देश यूक्रेन की बदली हुई सीमाओं को औपचारिक रूप से मान्यता दें।
ओवल ऑफिस में यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की की अगवानी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने की (फोटो : X/@WhiteHouse)
व्हाइट हाउस में यूरोपीय नेताओं और ट्रंप का ध्यान यूक्रेन के लिए सुरक्षा गारंटी और ज़ेलेंस्की व पुतिन के बीच एक द्विपक्षीय बैठक आयोजित करने पर केंद्रित रहा, जिसके बाद ट्रंप की भागीदारी के साथ एक त्रिपक्षीय बैठक की संभावना पर चर्चा हुई।
पहला मुद्दा वास्तव में एक कोड टर्म है, जो केवल यूक्रेन की स्थिति को लेकर नहीं है जब वह रूस के साथ समझौते पर पहुँचेगा, बल्कि उस यूरोपीय व्यवस्था के बारे में भी है जिसे अमेरिका भी बनाए रखेगा। इस पर स्पष्टता आवश्यक है। ट्रंप पहले ही साफ कर चुके हैं कि यूक्रेन को नाटो में शामिल होने के बारे में नहीं सोचना चाहिए। नाटो चार्टर का अनुच्छेद 5 यह अनिवार्य करता है कि यदि किसी सदस्य-देश पर किसी गैर-सदस्य देश द्वारा हमला होता है तो सभी सदस्य देश उसकी मदद करेंगे। कुछ यूरोपीय विशेषज्ञों का कहना है कि यूक्रेन के लिए सुरक्षा गारंटी इसी प्रावधान पर आधारित होनी चाहिए और अमेरिका को भी इसमें पक्षकार बनना चाहिए। इसका अर्थ यह होगा कि यदि भविष्य में रूस ने यूक्रेन पर हमला किया, तो गारंटी देने वाले देशों को नाटो देशों की तरह बाध्य होकर उसकी मदद करनी होगी। अब तक ट्रंप ने यह संकेत नहीं दिया है कि वे इतनी दूर तक जाने के लिए तैयार हैं।
अब दूसरे मुद्दे पर आते हैं—यानी ज़ेलेंस्की और पुतिन के बीच बैठकें और उसके बाद ट्रंप की मध्यस्थता/भागीदारी के साथ संयुक्त बैठक। ट्रंप ने यूरोपीय नेताओं के साथ अपनी बैठक बीच में रोककर पुतिन से टेलीफोन पर बातचीत की। बताया गया है कि पुतिन ने दो हफ्तों के भीतर ऐसी बैठकों के लिए सहमति दे दी है। यह साफ है कि वह किसी समझौते की ओर जल्दबाज़ी में नहीं बढ़ रहे हैं, क्योंकि इस समय उनके पास बढ़त है।
उनके नियंत्रण में यूक्रेन का बड़ा हिस्सा है। उन्होंने चीन की मदद से अपने ऊपर लगाए गए प्रतिबंधों का सामना कर लिया है। भारत द्वारा रूसी तेल की खरीद भी एक कारक रही, लेकिन इस दौरान चीन की मदद जितनी निर्णायक नहीं। रूस के भीतर उन्हें कोई राजनीतिक विरोध नहीं है। इसलिए वह यह दिखाना चाहते हैं कि उनकी ताकत कायम है और पश्चिमी दबाव की सभी कोशिशें विफल रही हैं।
व्हाइट हाउस बैठक के बाद ज़ेलेंस्की ने कहा कि उन्होंने ट्रंप को वे क्षेत्र दिखाए जो रूस के कब्ज़े में हैं। यह लगभग यूक्रेन की बीस प्रतिशत भूमि है। रूस से जो भी समझौता होगा उसमें यूक्रेन के बड़े हिस्से का नुकसान होना तय है। स्पष्ट है कि ट्रंप को उम्मीद है कि ज़ेलेंस्की अपने लोगों को इस अपमानजनक वास्तविकता को स्वीकार करने के लिए तैयार कर पाएंगे। उनका मानना है कि यूक्रेनियों ने इतनी मानव क्षति और अपने देश की तबाही झेली है कि अब उनके पास मानने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा। और यह ज़िम्मेदारी ज़ेलेंस्की पर है कि वे अपने लोगों को इस वास्तविकता का अहसास कराएँ। इसीलिए असली दबाव अब ज़ेलेंस्की पर है।
यूक्रेन के संविधान के अनुच्छेद 73 के अनुसार, “यूक्रेन की भूमि की सीमाओं में परिवर्तन से जुड़े मुद्दे केवल पूरे यूक्रेन में जनमत-संग्रह द्वारा ही तय किए जा सकते हैं।” कुछ संकेत हैं कि कई यूक्रेनी युद्ध से थक चुके हैं और बातचीत के जरिए शांति चाहते हैं। वे शायद रूस के de-facto (व्यावहारिक) नियंत्रण को स्वीकार कर लें, लेकिन de-jure (कानूनी मान्यता) के रूप में यूक्रेनी क्षेत्र की हानि को स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं। इसका मतलब होगा एक जमी हुई लड़ाई (frozen conflict)। सवाल यह है कि क्या पुतिन इससे संतुष्ट होंगे। वर्तमान संकेत बताते हैं कि वह नहीं होंगे। ऐसे में यह साफ चुनाव होगा—या तो पुतिन की यह इच्छा पूरी हो कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर यूक्रेन की बदली हुई सीमाओं को औपचारिक मान्यता मिले, या फिर एक de-facto समझौते की स्थिति बने जो एक जमी हुई लड़ाई की ओर ले जाए।
इसलिए, सवाल कि क्या व्हाइट हाउस बैठक ने यूक्रेन युद्ध के अंत की संभावनाओं को आगे बढ़ाया है, का उत्तर यह है—कुछ हद तक हाँ, लेकिन निर्णायक रूप से नहीं। अभी भी कई अनिश्चितताएँ बनी हुई हैं।