शिक्षा के बहाने बहिष्कार? दलितों-अल्पसंख्यकों से छिनता भविष्य
सरकार की योजनाओं में कटौती और देरी से दलित, आदिवासी व अल्पसंख्यक छात्रों के लिए उच्च शिक्षा के दरवाज़े लगातार बंद होते जा रहे हैं।;
हाल ही में कुछ अंग्रेज़ी अख़बारों में छपी एक खबर, जिसे न तो क्षेत्रीय मीडिया ने प्रमुखता दी और न ही सार्वजनिक विमर्श में कोई स्थान मिला वह थी राष्ट्रीय ओवरसीज़ स्कॉलरशिप (NOS) की संख्या में भारी कटौती।यह योजना 1954-55 में शुरू की गई थी ताकि अनुसूचित जातियों (SC), विमुक्त घुमंतू जनजातियों (DNT), अर्ध-घुमंतू जनजातियों, भूमिहीन खेत मज़दूरों और पारंपरिक कारीगर वर्गों से आने वाले छात्रों को विदेशी विश्वविद्यालयों में उच्च शिक्षा और शोध के लिए आर्थिक सहायता दी जा सके। पात्रता की शर्त थी कि परिवार की वार्षिक आय 8 लाख रुपये से कम हो।
सिर्फ़ 40 छात्रों को ही मिली छात्रवृत्ति, बाकी इंतजार में
1 जुलाई को सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने NOS के लिए चयनित 106 उम्मीदवारों में से केवल 40 को प्रोविजनल स्कॉलरशिप की घोषणा की। बाक़ी 66 को कहा गया कि "यदि फंड उपलब्ध होगा, तभी उन्हें पत्र जारी किए जाएंगे। पिछले वर्षों में चयनित सभी छात्रों को एक साथ स्कॉलरशिप लेटर मिलते थे। इस बार आधे से भी कम छात्रों को यह पत्र मिला, बाकी छात्र अनिश्चितता में हैं।एक वरिष्ठ अधिकारी ने हिंदुस्तान टाइम्स से कहा, हमारे पास पैसे हैं, लेकिन कैबिनेट कमेटी ऑन इकनॉमिक अफेयर्स की मंज़ूरी नहीं मिली है। बिना हरी झंडी हम पैसे नहीं दे सकते। यह समिति प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में है।
वंचित वर्गों को शिक्षा से वंचित करना?
यह मामला केवल तकनीकी देरी भर नहीं है। अगर व्यापक नज़रिए से देखा जाए, तो यह केंद्र सरकार की एक सुनियोजित नीति का हिस्सा लगता है जिसमें दलित, आदिवासी और अल्पसंख्यक छात्रों को योजनाओं से बाहर किया जा रहा है।
7 फरवरी 2025 को अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय ने मौलाना आज़ाद एजुकेशन फाउंडेशन को बिना किसी कारण के बंद करने का आदेश जारी किया।2022-23 के बजट में फाउंडेशन का फंड 99% से अधिक घटाकर सिर्फ़ 1 लाख रुपये कर दिया गया, जबकि पिछली बार 90 करोड़ रुपये आवंटित थे। 1,400 से ज़्यादा पीएचडी छात्रों की छात्रवृत्तियाँ जनवरी 2025 से बंद हैं।
अन्य स्कॉलरशिप योजनाओं में कटौती
राष्ट्रीय फैलोशिप (SC-ST छात्रों के लिए):
₹240 करोड़ (2024) से घटाकर ₹0.02 करोड़ (2025) कर दिया गया।
राष्ट्रीय ओवरसीज़ स्कॉलरशिप:
₹6 करोड़ से ₹0.01 करोड़ तक कटौती।
मौलाना आज़ाद राष्ट्रीय फैलोशिप (MANF):
बंद कर दी गई, कोई विकल्प योजना नहीं दी गई।
अल्पसंख्यक प्री-मैट्रिक स्कॉलरशिप:
72.4% की कटौती, अब सिर्फ़ IX और X के छात्रों के लिए।
पोस्ट-मैट्रिक स्कॉलरशिप (अल्पसंख्यकों के लिए):
₹1,145.38 करोड़ से ₹343.91 करोड़ कर दिया गया।
मेरिट-कम-मीन्स स्कॉलरशिप:
पहले ₹19.41 करोड़ किया गया, फिर योजना ही बंद कर दी गई।
डॉ. आंबेडकर इंटरेस्ट सब्सिडी स्कीम:
ओबीसी और ओईसी छात्रों के लिए इसे ₹15.30 करोड़ से ₹8.16 करोड़ कर दिया गया।
फंड तो है, पर उपयोग नहीं
RTI कार्यकर्ता एमए अक़रम के अनुसार अल्पसंख्यक शैक्षणिक योजनाओं के लिए निर्धारित फंड का 50% से ज़्यादा उपयोग नहीं किया गया। ₹305.8 करोड़ में से ₹174.23 करोड़ बिना खर्च रह गया। मौलाना आज़ाद फाउंडेशन के ₹669.71 करोड़ सरप्लस फंड को केंद्र सरकार के समेकित कोष में ट्रांसफर करने का आदेश दिया गया।
संसदीय समिति की आलोचना
जनवरी 2025 की रिपोर्ट में सामाजिक न्याय समिति, जिसकी अध्यक्षता भाजपा सांसद पीसी मोहन कर रहे हैं, ने कहा छात्रों और संस्थानों की योजनाएं प्रभावित हो रही हैं।MANF और NOS में कटौती से उच्च शिक्षा में बाधा आ रही है।किसी भी योजना का नया विकल्प नहीं दिया गया।
रिपोर्ट ने सुझाव दिया कि छात्रवृत्तियों की समय पर वितरण सुनिश्चित किया जाए, योजनाओं को बहाल किया जाए और वित्तीय आवंटन फिर से किया जाए।
राहुल गांधी का पीएम को पत्र
10 जून को लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने पीएम को पत्र लिखा कि दलित, आदिवासी, ईबीसी, ओबीसी और अल्पसंख्यक छात्रों को हो रही समस्याएं गिनाईं।बिहार में 3 वर्षों से छात्रवृत्ति पोर्टल ठप पड़ा है।दलित छात्रवृत्ति पाने वालों की संख्या 1.36 लाख से घटकर 69,000 रह गई है।
बहाना और भ्रम: सरकार का रुख
मंत्रालय का कहना है कि यह “अन्य मंत्रालयों की योजनाओं के साथ ओवरलैप” रोकने और “प्रशासनिक एकरूपता” के प्रयास हैं। लेकिन कोई ठोस आँकड़े साझा नहीं किए गए। सरकारी प्रतिक्रिया मात्र भटकाव की रणनीति बन गई है जैसे कि यह बताना कि 50% छात्रवृत्ति प्राप्तकर्ता महिलाएं हैं, लेकिन राशि या संख्या नहीं बताई गई।
नीति आयोग और बजट आंकड़े
नीति आयोग के अनुसार, जनसंख्या के अनुपात में बजट आवंटन अनिवार्य है।2022-23 में SC के लिए ₹40,634 करोड़ और ST के लिए ₹9,399 करोड़ की कमी पाई गई।NCDHR की रिपोर्ट बताती है कि योजनाओं को मात्र 37.79% ही मिला। ST योजनाओं को 43.8% ही मिला
योजनाबद्ध बहिष्कार
इन सभी तथ्यों से यही निष्कर्ष निकलता है कि दलितों, आदिवासियों और अल्पसंख्यकों को शिक्षा से वंचित करने की एक योजनाबद्ध नीति चल रही है।यह वही हिंसा है जो सड़कों पर दलितों और मुसलमानों के खिलाफ होती है। बस इस बार यह सिस्टम के भीतर से, सरकार के जरिए हो रही है। यह भारत की लोकतांत्रिक आत्मा और संवैधानिक वादों के खिलाफ सीधी चुनौती है।
(फेडरल सभी पक्षों से विचार और राय प्रस्तुत करने का प्रयास करता है। लेख में दी गई जानकारी, विचार या राय लेखक की हैं और जरूरी नहीं कि वे फेडरल के विचारों को प्रतिबिंबित करें।)