विकेंद्रीकरण बनाम केंद्रीकरण: लद्दाख में लोकतंत्र की असली परीक्षा

लद्दाख की जनता राज्य का दर्जा और छठी अनुसूची की सुरक्षा चाहती है। सोनम वांगचुक का आंदोलन केंद्र के केंद्रीकरण के खिलाफ स्थानीय अधिकारों की पुकार है।

By :  T K Arun
Update: 2025-10-07 01:59 GMT
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क्या केंद्र सरकार लद्दाख को भारत के उन अशांत सीमावर्ती इलाकों की श्रेणी में धकेलना चाहती है, जहां बड़ी आबादी अब राज्य को “रक्षक” की बजाय “दमनकारी” के रूप में देखने लगी है? यदि ऐसा नहीं है, तो उसे सोनम वांगचुक और क्षेत्र की स्वायत्तता के लिए आंदोलन कर रहे अन्य लोगों के प्रति अपने कठोर रवैये को तुरंत छोड़ना चाहिए।

सोनम वांगचुक आज लद्दाख के लोकप्रिय नायक हैं शिक्षा, जल प्रबंधन, ऊर्जा परियोजनाओं और पर्यावरण-संस्कृति की रक्षा में उनके कार्यों को व्यापक जनसमर्थन मिला है। परंतु अब केंद्र सरकार उन्हीं पर कठोर कार्रवाई और गिरफ्तारी कर रही है।

लद्दाख की मांग — जवाबदेह सरकार और स्वायत्तता

वांगचुक लद्दाख को राज्य का दर्जा (Statehood) देने और संविधान की छठी अनुसूची (Schedule 6) के तहत संरक्षण की मांग कर रहे हैं। उनका कहना है कि अन्य सीमावर्ती राज्य भी चुनी हुई विधानसभाओं के साथ काम कर रहे हैं, और इससे राष्ट्रीय सुरक्षा पर कोई खतरा नहीं पड़ा। तो फिर लद्दाख को भी प्रत्यक्ष केंद्र शासन की बेड़ियों में क्यों रखा गया है?

2019 में जब केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर को विभाजित कर लद्दाख को अलग केंद्र शासित प्रदेश (Union Territory) बनाया, तब स्थानीय लोगों ने इसका स्वागत किया था। उन्हें उम्मीद थी कि अब नई दिल्ली की सीधी निगरानी में उनका विकास तेज़ी से होगा, और श्रीनगर की उपेक्षा से मुक्ति मिलेगी।लेकिन बीते छह वर्षों में ये उम्मीदें निराशा में बदल गईं, और यही वजह है कि अब लद्दाख राज्य का दर्जा और संवैधानिक सुरक्षा चाहता है।

छठी अनुसूची और “सबसिडियारिटी” का सिद्धांत

संविधान की छठी अनुसूची पूर्वोत्तर के जनजातीय इलाकों को स्वायत्त जिला परिषदों (Autonomous District Councils) का अधिकार देती है, ताकि वे अपने जीवन से जुड़े फैसले खुद ले सकें। यही सिद्धांत लद्दाख, लेह और कारगिल के जनजातीय समाजों पर भी लागू किया जा सकता है।

लेख में कहा गया है कि शासन व्यवस्था में “सबसिडियारिटी” (Subsidiarity) का सिद्धांत अपनाया जाना चाहिए। यानी हर स्तर की सरकार को वही जिम्मेदारी दी जाए, जिसे वह सबसे अच्छे ढंग से निभा सकती है। उदाहरण के लिए — राष्ट्रीय रक्षा या मौद्रिक नीति केंद्र के पास रहनी चाहिए,लेकिन शिक्षा, जल-संसाधन, स्थानीय सड़कें और पंचायत स्तर की योजनाएं स्थानीय निकायों को सौंपी जानी चाहिए।

यूरोपीय संघ भी इसी सिद्धांत पर काम करता है, ताकि स्थानीय सरकारें केंद्र की सत्ता के दबाव में न आएं। भारत में संविधान ने केंद्र और राज्यों के अधिकार बाँट दिए हैं, लेकिन वास्तविक विकेंद्रीकरण (decentralisation) अब भी अधूरा है।

लद्दाख के आंदोलन की जड़ें — संसाधन और निर्णयों पर स्थानीय अधिकार

कुछ राज्यों, जैसे केरल, ने स्थानीय निकायों को वित्तीय अधिकार देकर इस दिशा में काम किया है।लेकिन अधिकांश राज्यों में केंद्र और राज्य की राजनीतिक संस्कृति अब भी केन्द्रिकरण (centralisation) की शिकार है।‘डबल इंजन सरकार’ का नारा इसी केंद्रीकरण की राजनीति का प्रतीक है  जहां केंद्र की पार्टी वाले राज्यों को विशेषाधिकार और संसाधन मिलते हैं, बाकी को उपेक्षा। इससे संस्थागत लोकतंत्र कमजोर होता है और जनता का भरोसा टूटता है।

प्रौद्योगिकी का दुरुपयोग और लोकतंत्र पर असर

डिजिटल शासन प्रणाली ने प्रशासन को कुशल तो बनाया है, लेकिन इससे एक नई केंद्रीय निगरानी प्रवृत्ति भी उभरी है। अब नई दिल्ली से दूरदराज़ जिलों की गतिविधियों की निगरानी संभव हो गई है और इसी से केंद्र का हस्तक्षेप बढ़ा है।जिलाधिकारियों जैसे अफसरों का ऑल इंडिया सर्विसेज से चयन भी इस प्रवृत्ति को बढ़ावा देता है, क्योंकि वे केंद्र के प्रति जवाबदेह होते हैं, न कि स्थानीय जनता के प्रति।तकनीक को नियंत्रण का औज़ार नहीं, बल्कि विकेन्द्रीकृत शासन को सशक्त करने का माध्यम बनाया जाना चाहिए।

लद्दाख के लिए नया मॉडल — प्रतिनिधित्व और राष्ट्रीय सुरक्षा का संतुलन

भारत के सबसे युवा केंद्र शासित प्रदेश में जवाबदेह सरकार की मांग को नए राजनीतिक मॉडल की दिशा में अवसर के रूप में देखा जाना चाहिए।ऐसा मॉडल, जिसमें केंद्र राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े क्षेत्रों पर नियंत्रण बनाए रखे। लेकिन स्थानीय जनता को शिक्षा, विकास और संसाधनों पर सीधा अधिकार मिले।एक निर्वाचित विधानसभा और स्थानीय प्रतिनिधि शासन केंद्र की सुरक्षा नीतियों के साथ सह-अस्तित्व में रह सकते हैं।इसके लिए जरूरी है कि सरकार दमन और गिरफ्तारी की बजाय संवाद और सहयोग का रास्ता चुने।

दो रास्ते, दो भविष्य

केंद्र के सामने अब दो रास्ते हैं। एक, विकेन्द्रीकृत लोकतंत्र का रास्ता, जो लद्दाख को मजबूत और भारत को एकजुट रखेगा।दूसरा, कठोरता और दमन का रास्ता, जो सीमावर्ती इलाकों में असंतोष और अलगाव को जन्म देगा।लद्दाख की जनता प्रतिनिधित्व और सम्मान चाहती है, न कि केवल सुरक्षा चौकियां और प्रशासनिक आदेश।केंद्र सरकार को चाहिए कि वह इस आवाज़ को सुने क्योंकि संवाद से देश मज़बूत होता है, दमन से नहीं।

(द फेडरल सभी पक्षों से विचार और राय प्रस्तुत करने का प्रयास करता है। लेख में दी गई जानकारी, विचार या राय लेखक की हैं और जरूरी नहीं कि वे फेडरल के विचारों को प्रतिबिंबित करें।)

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