भारतीय बासमती की चोरी कर कैसे निर्यात कर रहा पाकिस्तान?

इंडियन सीड एक्ट- 1966 प्रोटेक्शन ऑफ प्लांट वेरायटी एंड फार्मर्स राइट्स एक्ट- 2001 मुताबिक भारत के किसान ही इन बीजों की बुवाई और खेती कर सकते हैं। लेकिन खेती पाकिस्तान में हो रही है।;

Update: 2025-03-26 09:21 GMT

Basmati Rice News: भारत में प्राचीन काल से उगाई जा रही बासमती धान की विभिन्न प्रजातियों की चोरी का खुलासा हुआ है। देश के कृषि वैज्ञानिकों ने समय-समय पर इसकी कई उन्नत प्रजातियां तैयार की हैं। इनमें से कई प्रमुख प्रजातियों की चोरी कर पाकिस्तान में खेती हो रही है, जिसका धड़ल्ले से निर्यात भी किया जा रहा है। भारत सरकार ने इस मसले को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उठाते हुए पाकिस्तान की धांधली और चोरी का खुलासा किया है। इसके लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर की प्रयोगशालाओं में डीएनए जांच कराई गई जहां भारत के आरोपों को सही पाया गया है। बासमती धान की विकसित प्रमुख प्रजातियों में पूसा बासमती 1509, पूसा बासमती 1121, पूसा बासमती 1847 और पूसा बासमती 1885 के बीजों की चोरी की गई है। इन खास प्रजातियों को नई दिल्ली स्थित भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई) के वैज्ञानिकों को विकसित करने का गौरव प्राप्त हुआ है। उनकी हैरानी को समझा जा सकता है।

केंद्रीय वाणिज्य मंत्रालय (कामर्स मंत्रालय) के अधीन एग्रीकल्चरल एंड प्रोसेस्ड फूड एक्सपोर्ट डवलपमेंट अथॉरिटी (एपीडा) ने बासमती धान की इन प्रजातियों के नमूनों की जांच स्थापित अंतरराष्ट्रीय प्रयोगशालाओं से कराई है, जिसमें इनके भारतीय किस्मों के होने का प्रमाण मिला है। इस तरह की कई जांच भारत समेत यूरोपीय संघ के कई देशों की प्रयोगशालाओं में की गई हैं। जांच रिपोर्ट के मुताबिक यूरोप की एक प्रख्यात प्रयोगशाओं के डीएनए परीक्षण में यह साबित हो गया कि पाकिस्तान ने भारतीय बासमती धान की प्रजातियों का टाइटल मॉडिफाइ कर अवैध रूप से उगा रहा है। इससे तैयार चावल का धड़ल्ले से निर्यात भी कर रहा है जो अंतरराष्ट्रीय नियमों के विरुद्ध है। ऐसे मामले पर नियंत्रण पाने और कार्यवाही करने के लिए कोई उपयुक्त कानून नहीं है।

पूसा के वैज्ञानिकों का कहना है कि भारत में धान की वेरायटी विकसित होने के बाद जारी होते ही पाकिस्तान जाती है। बीजों की तस्करी एक बड़ी समस्या बन गई है। पाकिस्तान में कृषि अनुसंधान का ढांचा बहुत ही खराब है। इसलिए वहां के किसानों को ज्यादातर बीजों की आपूर्ति तस्करी के मार्फत ही होती है। भारतीय उन्नत बीजों के माध्यम से भारतीय निर्यातकों से पाकिस्तान प्रतिस्पर्धा कर रहा है।

वैश्विक स्तर पर कुल एक दर्जन ऐसी प्रयोगशालाएं है, जहां बासमती के परीक्षण का एक निर्धारित प्रोटोकाल है। रिंग ट्रायल प्रोटोकाल के तहत इनका गहन परीक्षण किया जाता है। भारत के हैदराबाद में एक प्रयोगशाला है। परीक्षण की प्रक्रिया के तहत बासमती का एक ही नमूना सभी प्रयोशालाओं में भेजा गया था। इन प्रयोगशालाओं की डाटा शेयरिंग के साथ कोडिंग भी शेयर की जाती है। इस जांच में पाकिस्तान में भारतीय बासमती की विभिन्न प्रजातियों की चोरी का पता चला है।

भारतीय एजेसी एपीडा ने बासमती को ऑथेंटिकेट करने के लिए एक वैज्ञानिक प्रणाली तैयार की है। इसके तहत उत्तर प्रदेश में मोदीपुरम स्थित बासमती एक्सपोर्ट डेवलपमेंट फाउंडेशन में डीएनए टेस्टिंग की भी सुविधा है। इस प्रयोगशाला में भी बासमती का यही नमूना जांचा गया है। पाकिस्तान में पैदा की जा रही बासमती किस्मों की जांच से संबंधित सभी डाटा सरकार के पास सुरक्षित है। वैश्विक स्तर पर इस मसले को उठाने और मामला दर्ज कराने के लिए पाकिस्तान के खिलाफ मामला दर्ज कराने के लिए भारत सरकार ट्रिप्स एग्रीमेंट के तहत वर्ल्ड इंटलेक्चुअल प्रॉपर्टी आर्गनाइजेशन (वाइपो) जाएगी। इसके साथ ही पाकिस्तान में इन प्रजातियों वाले बासमती की खेती पर रोक लगाने का प्रयास किया जाएगा। इतना ही नहीं, पाकिस्तान से जिन देशों को इन प्रजातियों वाला चावल निर्यात किया जाता है, उन्हें रोकने के लिए कहा जाएगा। अंतरराष्ट्रीय फोरम पर इसे उठाने की तैयारी है।

पाकिस्तान में भारतीय बासमती की पाइरेसी

भारत सालाना करीब 50 हजार करोड़ रुपये का बासमती निर्यात करता है। वैश्विक बाजार में बासमती चावल प्रीमियम श्रेणी में आता है और उसकी कीमत सामान्य चावल किस्मों से दोगुना तक होती है। यूरोप, अमेरिका, आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और खाड़ी के मिडिल ईस्ट देशों में बासमती बाजार में पाकिस्तान और भारत के बीच प्रतिस्पर्धा रहती है। जहां भारत में लगातार बासमती पर शोध के जरिये बेहतर उत्पादकता और गुणवत्ता की किस्में विकसित की गई हैं पाकिस्तान में इस स्तर पर काम नहीं हुआ है। यही वजह है कि पाकिस्तान में भारत की बासमती धान की किस्मों की पाइरेसी कर इनको अवैध तरीके से उगाया जा रहा है। जिससे भारत के बासमती कारोबार को नुकसान पहुंचा रहा है।

पाकिस्तान में भारतीय धान की पुरानी किस्मों के अलावा हाल में रिलीज नई किस्मों पूसा बासमती 1847, पूसा बासमती 1885 की खेती भी अवैध तरीके से की जा रही है। करीब डेढ़ साल पहले यह मामला सामने आया था और उसके बाद से ही भारतीय एजेंसियां सक्रिय हो गई थी। अब डीएनए जांच में पाकिस्तान द्वारा भारतीय किस्मों का उत्पादन करने की बात साबित होने से उसके निर्यात पर रोक लगाने में मदद मिल सकती है। इस मामले की अंतरराष्ट्रीय फोरम पर शिकायत और समाधान के प्रयास तेज होने की संभावना है।

बासमती का जीआई क्षेत्र

भारत में विकसित किस्मों को इंडियन सीड एक्ट- 1966 तथा प्रोटेक्शन ऑफ प्लांट वेरायटी एंड फार्मर्स राइट्स एक्ट- 2001 के तहत अधिसूचित किए जाने का प्रावधान है। इन कानूनों के मुताबिक भारत के किसान ही इन बीजों की बुवाई और खेती कर सकते हैं। इसके बावजूद बासमती की उक्त भारतीय प्रजातियों की खेती पाकिस्तान में हो रही है। भारत में बासमती को जीआई टैग (भौगोलिक पहचान) देश के सात राज्यों के पास है। पंजाब और हरियाणा में से प्रत्येक में छह छह लाख हेक्टेयर में बासमती धान की खेती होती है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में तकरीबन पांच लाख हेक्टेयर रकबा को बासमती की खेती का टैग मिला है। दिल्ली, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और जम्मू एवं कश्मीर में भी बासमती की खेती जीआई के दायरे में है।

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