पाकिस्तान में चरम पर सत्ता संग्राम: फैज हामिद दोषी, मुनीर की पकड़ और मजबूत
फैज हमीद का कार्यकाल और 2016 के बाद पाकिस्तान की राजनीति में उनके प्रभाव को देखते हुए यह फैसला अत्यंत महत्वपूर्ण माना जा रहा है। यह घटनाक्रम स्पष्ट करता है कि पाकिस्तान की सेना राजनीतिक भी है।
12 दिसंबर को पाकिस्तान सेना की इंटर सर्विसेज पब्लिक रिलेशंस (ISPR) ने एक चौंकाने वाली घोषणा की। ISPR ने बताया कि पूर्व आईएसआई प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) फैज हमीद को चार गंभीर आरोपों में सैन्य अदालत द्वारा दोषी पाया गया। बयान के अनुसार, उन्हें जिन आरोपों में दोषी ठहराया गया है, उनमें राजनीतिक गतिविधियों में शामिल होना, Official Secrets Act का उल्लंघन, जिससे राज्य की सुरक्षा व हित प्रभावित हुए, अधिकारों और सरकारी संसाधनों का दुरुपयोग और इंसानों को अनुचित नुकसान पहुंचाना शामिल हैं।
इन आरोपों की सुनवाई फील्ड जनरल कोर्ट मार्शल द्वारा की गई। अदालत ने सभी आरोपों में दोषी पाए जाने पर 11 दिसंबर 2025 को फैज हमीद को 14 साल की कठोर कैद की सजा सुनाई। ISPR ने अपने बयान में उन्हें सिर्फ फैज हमीद कहकर संबोधित किया, जो इस ओर संकेत करता है कि उनका सैन्य रैंक भी छीन लिया गया यानी उन्हें उनकी पूरी सैन्य सेवा से effectively हटाया गया है।
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी
फैज हमीद को 12 अगस्त 2024 को गिरफ्तार किया गया था। यह कार्रवाई एक निजी बिल्डर द्वारा पाकिस्तान सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई शिकायत के बाद हुई, जिसमें आरोप लगाया गया था कि सेना में सेवा के दौरान फैज हमीद ने उन्हें प्रताड़ित किया और पैसे की उगाही की। नवंबर 2023 में पाकिस्तान सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर टिप्पणी करते हुए कहा था कि आरोप गंभीर हैं और इसकी विस्तृत जांच जरूरी है। इसके बाद सेना की आंतरिक जांच में बिल्डर के आरोपों में दम पाया गया।
आर्मी चीफ असीम मुनीर की भूमिका
उस समय के सेना प्रमुख (अब फील्ड मार्शल) असीम मुनीर ने फैज हमीद की गिरफ्तारी और कोर्ट मार्शल की प्रक्रिया का आदेश दिया। सूत्रों का कहना है कि मुनीर के लिए यह कदम राजनीतिक और संस्थागत दोनों स्तरों पर महत्वपूर्ण था। उन्हें इस कार्रवाई में शहबाज शरीफ सरकार और विपक्षी दलों का भी समर्थन मिला होगा।
पृष्ठभूमि क्यों महत्वपूर्ण?
फैज हमीद का कार्यकाल और 2016 के बाद पाकिस्तान की राजनीति में उनके प्रभाव को देखते हुए यह फैसला अत्यंत महत्वपूर्ण माना जा रहा है। घटनाक्रम यह स्पष्ट करता है कि पाकिस्तान की सेना एक साथ पेशेवर भी है और गहराई से राजनीतिक भी। साल 2016 में पाकिस्तान मुस्लिम लीग (एन) के वरिष्ठ नेता और मौजूदा प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ के भाई नवाज शरीफ प्रधानमंत्री थे। वे 2013 के आम चुनाव में जीत के बाद से पद पर बने हुए थे। उनकी पाकिस्तान सेना के साथ रिश्ते हमेशा तनावपूर्ण रहे।
बाजवा की नियुक्ति और उम्मीदों का टूटना
2016 में जब जनरल राहील शरीफ़ का कार्यकाल समाप्त हुआ, तब नवाज़ शरीफ ने परंपरागत वरिष्ठता सूची को दरकिनार करते हुए क़मर बाजवा को सेना प्रमुख नियुक्त किया। लेकिन उम्मीदों के विपरीत, बाजवा ने नवाज़ शरीफ़ के प्रति कोई निष्ठा नहीं दिखाई और सेना की पुरानी परंपरा को जारी रखते हुए PML(N) नेतृत्व के प्रति शत्रुता बनाए रखी। बाजवा ने प्रधानमंत्री को राजनीतिक रूप से कमजोर करने के लिए अपने विश्वस्त अधिकारी तत्कालीन मेजर जनरल फैज हमीद को अपना प्रमुख हथियार बनाया।
फैज हमीद बने साज़िशों के सूत्रधार
फैज हमीद ने नवाज विरोधी धार्मिक और राजनीतिक गुटों के साथ मिलकर सरकार के खिलाफ माहौल तैयार किया। उनकी सबसे बड़ी ताकत बनी पनामा पेपर्स लीक, जिसमें शरीफ परिवार की लंदन में विदेशी कंपनियां और संपत्तियों का खुलासा हुआ। यह मामला पाकिस्तान सुप्रीम कोर्ट पहुंचा, जहां न्यायाधीशों ने नवाज़ शरीफ़ को नेशनल असेंबली का सदस्य बनने के अयोग्य ठहरा दिया। जुलाई 2017 में उन्हें इस्तीफा देना पड़ा। उनकी जगह PML(N) के वफ़ादार शाहिद ख़ाकान अब्बासी सितंबर 2017 में प्रधानमंत्री बने और मई 2018 तक पद पर रहे। इसके कुछ महीने बाद पाकिस्तान में आम चुनाव हुए।
बाजवा का ‘प्रोजेक्ट इमरान ख़ान’
जनरल बाजवा ने तय कर लिया था कि आगामी चुनाव इमरान ख़ान जीतेंगे। फौज ने यह सुनिश्चित किया कि चुनावी व्यवस्था इस तरह प्रभावित हो कि पंजाब में अपनी मजबूत पकड़ के बावजूद शरीफ़ परिवार को कोई मौका न मिले। इस चुनावी इंजीनियरिंग में पर्दे के पीछे से डोर खींचने का जिम्मा भी फैज़ हमीद के पास था। 2018 में इमरान ख़ान सत्ता में आए और बाजवा के साथ मिलकर पाकिस्तान में एक ‘हाइब्रिड शासन’ चला।
असीम मुनीर बनाम इमरान
इसी दौरान पाकिस्तान सेना का दूसरा सबसे शक्तिशाली पद DG ISI जनरल असीम मुनीर के पास था। 2019 में मुनीर ने इमरान ख़ान को चेतावनी दी कि उनकी पत्नी और उनके नज़दीकी लोग आर्थिक लाभ उठा रहे हैं। इमरान ख़ान इस बात से नाराज़ हो गए और मुनीर को हटाने की मांग की। जनरल बाजवा ने भी 2019 में अपना दूसरा कार्यकाल सुनिश्चित करने के लिए यह निर्णय स्वीकार कर लिया। उन्होंने मुनीर को हटाकर उनकी जगह फैज़ हमीद को DG ISI बना दिया। असीम मुनीर, जो अपने कठोर और निष्ठुर स्वभाव के लिए जाने जाते हैं, इस अपमान को भूल नहीं पाए। यही वह मोड़ था, जब मुनीर के मन में इमरान ख़ान, बाजवा और फैज़ हमीद तीनों के प्रति गहरी दुश्मनी पैदा हुई, जो आगे चलकर पाकिस्तान की सत्ता का पूरा समीकरण बदलने वाली थी।
तिकड़ी में दरार
हालांकि, फ़ैज़ हामिद जनरल बाजवा के क़रीबी माने जाते थे, लेकिन जल्द ही वे इमरान ख़ान के लिए भी अपरिहार्य बन गए। इमरान के राजनीतिक प्रबंधन से लेकर रणनीतिक फैसलों तक हामिद ने सब संभालना शुरू कर दिया।
बाजवा को महसूस हुआ खतरा
जनरल बाजवा को यह समझ आने लगा कि उनका विश्वासपात्र अधिकारी फ़ैज़ हामिद, इमरान ख़ान के बेहद करीब होता जा रहा है और स्वतंत्र शक्ति-क्षेत्र बना रहा है। इसी पृष्ठभूमि में अक्टूबर 2021 में बाजवा ने हामिद को ISI प्रमुख पद से हटाकर एक कोर कमांड का जिम्मा दे दिया। यह कदम इमरान ख़ान से बिना सलाह किए उठाया गया था। इमरान नाराज़ हुए और संकेत दिया कि वे चाहते हैं कि हामिद ISI चीफ़ बने रहें, लेकिन बाजवा अपने फैसले पर अडिग रहे। आख़िरकार इमरान को झुकना पड़ा। इस घटना ने बाजवा और इमरान के बीच विश्वास पूरी तरह तोड़ दिया। इसके तुरंत बाद बाजवा ने विपक्ष शरीफ़ परिवार, भुट्टो परिवार और मौलाना फ़ज़लुर्रहमान से संवाद बढ़ाया, ताकि इमरान सरकार गिराई जा सके।
इमरान ख़ान सत्ता से बाहर
बाजवा की रणनीति सफल हुई और अप्रैल 2022 में भारी राजनीतिक नाटकीय घटनाक्रम के बीच इमरान ख़ान को सत्ता से हटना पड़ा। शहबाज़ शरीफ़ विपक्षी दलों के समर्थन से पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बन गए। बाजवा की पहली प्राथमिकता थी कि नई सरकार नवंबर 2022 तक स्थिर रहे, ताकि वे अपना कार्यकाल आराम से पूरा कर सकें और सेना प्रमुख के तौर पर अपने पसंद के अधिकारी को उत्तराधिकारी बना सकें।
असीम मुनीर की वापसी
उधर असीम मुनीर ने लंदन में निर्वासन झेल रहे नवाज़ शरीफ़ से संपर्क स्थापित किया। मुनीर ने नवाज़ को भरोसा दिलाया कि वे सेना प्रमुख बनकर उनके प्रति वफ़ादार रहेंगे। एक तकनीकी बाधा थी—मुनीर बाजवा के कार्यकाल समाप्त होने से कुछ दिन पहले रिटायर होने वाले थे। यह समस्या राजनीतिक स्तर पर हल कर दी गई। शहबाज़ शरीफ़ बाजवा की पसंद को मानने के लिए तैयार थे, लेकिन नवाज़ शरीफ़ ने मुनीर के नाम पर ज़ोर दिया। आखिरकार नवंबर 2022 में जनरल असीम मुनीर पाकिस्तान के सेना प्रमुख बने। इसके तुरंत बाद फैज़ हामिद ने इस्तीफ़ा दे दिया।
पंजाब में राजनीतिक संग्राम
2023 में आम चुनाव होने थे, लेकिन चुनाव आयोग ने लगातार विभिन्न कारणों से चुनाव टालते रहे। इस दौरान शहबाज़ शरीफ़ प्रधानमंत्री पद पर बने रहे, जबकि पंजाब में सत्ता संघर्ष तेज़ हुआ—जहां इमरान ख़ान की पकड़ अभी भी मजबूत थी। इसी बीच फ़ैज़ हामिद—जो कुछ ही समय पहले सेना से इस्तीफा दे चुके थे—एक बार फिर इमरान ख़ान के क़रीब आ गए और परदे के पीछे से उनके राजनीतिक प्रबंधन में जुट गए।
इमरान ख़ान की गिरफ़्तारी
9 मई को इमरान ख़ान को भ्रष्टाचार के आरोपों में गिरफ्तार किया गया। इसके तुरंत बाद उनके समर्थकों ने पूरे देश में सेना की प्रतिष्ठानों पर हमला करना शुरू कर दिया। आश्चर्यजनक रूप से सेना के कुछ महत्वपूर्ण हिस्से—जो इमरान के प्रति नरम रुख रखते थे—ने हिंसा रोकने के लिए पर्याप्त कार्रवाई नहीं की। सूत्रों के अनुसार, इस हिंसा की योजना और संचालन में फ़ैज़ हामिद की भी महत्वपूर्ण भूमिका थी। सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर ने हालात पर काबू पाया और आगामी महीनों में उन्होंने करीब 80 सैन्य अधिकारियों को सेना से बाहर कर दिया, जिन पर इमरान समर्थक होने का संदेह था।
फरवरी 2024 का चुनाव
फरवरी 2024 के आम चुनावों में मुनीर ने यह सुनिश्चित किया कि शहबाज़ शरीफ़ दोबारा प्रधानमंत्री बनें। नवाज़ शरीफ़ की बेटी पंजाब की मुख्यमंत्री नियुक्त हों। शरीफ़ परिवार पूरी तरह मुनीर के समर्थन पर निर्भर हो गया और सेना प्रमुख की ताकत पहले से अधिक बढ़ गई। मुनीर ने इस शक्ति का उपयोग इमरान ख़ान को लगातार जेल में रखने और फ़ैज़ हामिद के ख़िलाफ़ अगस्त 2024 में कोर्ट मार्शल शुरू कराने में किया, जिसका परिणाम अब इस अभूतपूर्व सज़ा के रूप में सामने आया।
ऑपरेशन 'सिंदूर'
विडंबना यह है कि ऑपरेशन सिंदूर ने मुनीर की शक्ति और भी मजबूत कर दी। उन्होंने घरेलू प्रचार के माध्यम से यह संदेश फैलाया कि उनके नेतृत्व में पाकिस्तान ने भारत को "मुंहतोड़ जवाब" दिया। उन्हें व्हाइट हाउस में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की ओर से लंच का निमंत्रण मिला। सेना और जनता के बीच उनकी छवि बढ़ती गई। शहबाज सरकार ने उन्हें खुश करने के लिए फ़ील्ड मार्शल बना दिया और कुछ सप्ताह पहले संविधान संशोधन कर आर्मी चीफ़ को चीफ़ ऑफ डिफेन्स स्टाफ (CDS) बना दिया, जिससे मुनीर को नौसेना और वायुसेना पर भी नियंत्रण मिल गया।
मुनीर का संदेश साफ
मुनीर ने अपने पुराने प्रतिद्वंद्वी फ़ैज़ हामिद को कठोर सज़ा दिलाकर एक स्पष्ट संदेश दिया, जो भी हामिद या इमरान ख़ान के प्रति सहानुभूति रखेगा, उसके साथ भी वैसा ही कठोर व्यवहार होगा। PTI (इमरान की पार्टी) को यह समझा दिया गया कि उनके नेता के साथ कोई नरमी नहीं बरती जाएगी। PTI के दूसरे दर्जे के नेताओं ने पहले ही फ़ैज़ हामिद से खुद को दूर कर लिया था।
फ़ैज़ हामिद पर सज़ा सिर्फ शुरुआत
पाकिस्तान इस समय एक ऐसे सेना प्रमुख के नियंत्रण में है, जिसे कई विश्लेषक कट्टर इस्लामी रुझानों वाला और बेहद सख़्त बताते हैं। जनरल असीम मुनीर अब सेना पर पूर्ण नियंत्रण स्थापित कर चुके हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि अगर मुनीर की पकड़ इतनी मजबूत न होती तो फ़ैज़ हामिद जैसी सज़ा संभव ही नहीं थी। शरीफ़ और भुट्टो परिवार भी उनके सामने किसी तरह का विरोध खड़ा करने की स्थिति में नहीं हैं। पाकिस्तान के करीबी अंतरराष्ट्रीय साझेदार—जैसे चीन और तुर्की भी मुनीर को पसंद करते हैं और फ़ैज़ हामिद का मामला पूरी तरह पाकिस्तान का आंतरिक विषय मानते हैं।
सफलता की संभावना लगभग शून्य
अतीत में ISI के शक्तिशाली प्रमुख रहे फ़ैज़ हामिद के पास कोर्ट मार्शल के फैसले के खिलाफ अपील करने का विकल्प है, लेकिन विशेषज्ञों को इसमें सफलता की कोई संभावना नहीं दिखती। पाकिस्तान के जाने-माने पत्रकार खुर्रम हुसैन ने हामिद की सज़ा के बाद ISPR के बयान के अंतिम पैराग्राफ को “बहुत गंभीर और चिंताजनक” बताया। ISPR ने लिखा कि दोषी की राजनीतिक तत्वों के साथ मिलीभगत में राजनीतिक उथल-पुथल और अस्थिरता भड़काने में संलिप्तता तथा कुछ अन्य मामलों को अलग से निपटाया जा रहा है। खुर्रम हुसैन का कहना है कि इसका सीधा अर्थ हो सकता है कि फ़ैज़ हामिद की गवाही का प्रयोग इमरान ख़ान पर सेना के भीतर विद्रोह भड़काने की साजिश का मुकदमा चलाने में किया जाए।
मुश्किलें नहीं हुईं खत्म
विश्लेषकों का मानना है कि इमरान ख़ान और फ़ैज़ हामिद की मुसीबतें अभी खत्म नहीं हुई हैं। जनरल असीम मुनीर का रुख स्पष्ट है कि वह दोनों को किसी भी कीमत पर नहीं छोड़ेंगे और आगे भी कठोर कार्रवाई जारी रहेगी।
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