इंडिगो संकट: भारत की कमजोर होती विमानन व्यवस्था की सच्चाई उजागर
जहां नए पायलट सेफ्टी नियमों को इस गड़बड़ी के लिए दोषी ठहराया जा रहा है, वहीं इंडिगो की लापरवाही से प्लानिंग में चूक और रेगुलेटर DGCA जो दबाव में टूट गया।
दिसंबर 2025 की शुरुआत में भारत के सबसे बिजी हवाईअड्डे अराजकता में बदल गए। देश की सबसे बड़ी एयरलाइन इंडिगो ने एक हफ्ते से भी कम समय में 2,000 से अधिक उड़ानें रद्द कर दीं, जिससे हजारों यात्री बिना किसी पूर्व सूचना या विकल्प के फंसे रह गए।
DGCA ने नए ड्यूटी-टाइम नियम जारी किए थे, जिनमें पायलटों के लिए अधिक आराम समय और कम उड़ान घंटे अनिवार्य किया गया था। यह बदलाव जरूरी था और वैश्विक मानकों के अनुरूप था। जून 2025 में हुए विनाशकारी एयर इंडिया एक्सप्रेस हादसे (260 मौतें) के बाद यह सुधार लागू किए गए। लेकिन इंडिगो, जो आक्रामक शेड्यूलिंग और सीमित पायलट संख्या पर निर्भर थी, तैयारी नहीं कर पाई। नए नियम लागू होते ही एयरलाइन कानूनी रूप से अपनी उड़ानों का संचालन नहीं कर सकी और देशव्यापी ठहराव शुरू हो गया।
नियामक तंत्र की कमजोरी
कुछ ही दिनों में सरकार ने दबाव में आकर DGCA के नए सुरक्षा नियमों को निलंबित कर दिया। नागरिक उड्डयन मंत्रालय ने किराए सीमित किए और इंडिगो ने रिफंड देने शुरू कर दिए। लेकिन इस जल्दबाज़ी में असली चूक पूर्व तैयारी की कमी और यात्रियों के भरोसे का टूटना छिप नहीं पाई। इंडिगो कोई नई एयरलाइन नहीं है। यह 400 से अधिक एयरबस विमानों और 60% बाजार हिस्सेदारी के साथ भारत की सबसे बड़ी घरेलू एयरलाइन है। उसका व्यवसाय मॉडल एक ही प्रकार का विमान, तेज़ टर्नअराउंड और सख्त लागत नियंत्रण उसकी ताकत माना जाता था। लेकिन इस संकट ने साबित किया कि अत्यधिक दक्षता कई बार नाज़ुकता भी बन जाती है। नए नियमों के बावजूद एयरलाइन ने पायलट भर्ती रोक दी, यह मानते हुए कि वह किसी तरह समस्या को संभाल लेगी। यह अनुमान गलत निकला।
नियामक व्यवस्था की प्रतिक्रिया जल्दबाज़ी भरी और चिंताजनक थी। DGCA ने अपनी ही सुरक्षा नीति स्थगित कर दी। यह साफ संदेश देता है कि दबाव पड़ने पर सुरक्षा पीछे हो जाती है। भारतीय विमानन ने पहले भी किंगफिशर, जेट एयरवेज और गोफर्स्ट जैसे बड़े पतनों को देखा है, जहां महत्वाकांक्षा, कुप्रबंधन और समय पर हस्तक्षेप न करने ने पूरे क्षेत्र को झकझोर दिया।
बाजार पर कब्ज़े के खतरे
इंडिगो वित्तीय संकट में नहीं है। 800 करोड़ रुपये से अधिक का शुद्ध लाभ, आधुनिक बेड़ा और विस्तार योजनाएं इसकी ताकत हैं। लेकिन संचालन में भारी गिरावट ने यह दिखाया कि आकार और प्रभुत्व कभी-कभी लापरवाही को छुपा देते हैं। अन्य एयरलाइनों की कमजोरी और इंडिगो की एकाधिकार जैसी स्थिति ने पूरे सिस्टम को संवेदनशील बना दिया है — जब इंडिगो लड़खड़ाती है तो उसका प्रभाव पूरे देश के यात्रियों पर पड़ता है।
वैश्विक तुलना
दुनिया में भी एयरलाइंस संकट झेला है। साल 2022 में साउथवेस्ट ने 17,000 उड़ानें रद्द की थीं। लेकिन अंतर यह है कि परिपक्व बाजार जोखिम को विभाजित करते हैं। भारत में अधिकतर भार एक ही एयरलाइन पर है। भारतीय विमानन अभी वैश्विक स्तर पर तीसरा सबसे बड़ा बाजार है, लेकिन फ्यूल टैक्स, महंगा लीज़िंग, कमजोर इंफ्रास्ट्रक्चर और बहुत कम मार्जिन इसे बेहद अस्थिर बनाते हैं। यह संकट आकस्मिक नहीं था। यह टाला गया सच था। पायलट फ़ैटिग नियम खराब नहीं थे—बस उनके लिए तैयारी खराब थी। नियामक गलत नहीं था—लेकिन नियम वापस लेना गलत था। सुरक्षा नियमों को एक एयरलाइन की कमियों के कारण वापस लेना बेहद खतरनाक मिसाल है।
अगर भारत को बार-बार होने वाली अव्यवस्था से बचना है तो उसे चुनना होगा कि वह कैसा विमानन बाजार चाहता है। सुरक्षित, प्रतिस्पर्धी और जवाबदेह या एक ऐसा बाजार, जहां बड़े खिलाड़ी नियम बदलवा लें। स्केल बढ़ाना आसान है। सुरक्षा और नियमन की रीढ़ मज़बूत करना कठिन।
क्या इंडिगो उभरेगी?
इंडिगो की उड़ानें जल्द बहाल होंगी, छवि सुधरेगी और वृद्धि जारी रहेगी। लेकिन असली सवाल यह है कि क्या नियामक और नीति-निर्माता जवाबदेही सुनिश्चित करेंगे। दिसंबर 2025 का यह संकट सिर्फ रद्द उड़ानों की कहानी नहीं है। यह चेतावनी है कि दक्षता कभी-कभी लचीलापन को खा जाती है और हवाई सुरक्षा से ऊपर होनी चाहिए।
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