पुतिन का भारत आना, ट्रंप का टैरिफ और मोदी की कूटनीति, पूरा विश्लेषण

रूस एक महत्त्वपूर्ण देश है और भारत–रूस संबंध भारत के हितों के लिए बेहद ज़रूरी हैं, खासकर रक्षा आपूर्ति, सिविल परमाणु ऊर्जा और अंतरिक्ष सहयोग के क्षेत्रों में। लेकिन वास्तविकता यह है कि भारत के व्यापक हितों की दृष्टि से भारत–अमेरिका संबंध कहीं अधिक अहम हैं।

Update: 2025-12-06 07:56 GMT
फोटो : X/@narendramodi
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रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने 4-5 दिसंबर को हुए 23वें वार्षिक भारत-रूस शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए भारत का दौरा किया। यह बैठक दोनों देशों के लिए विशेष महत्त्व रखती थी। पुतिन के लिए यह दौरा उस समय हुआ जब यूरोपीय देशों द्वारा अब भी उन्हें अलग-थलग रखा जा रहा है। हालांकि, वे अमेरिका के साथ गंभीर बातचीत में लगे हुए हैं ताकि यूक्रेन युद्ध का अंत न सही, कम से कम एक युद्धविराम हासिल किया जा सके।

चूँकि युद्ध के मैदान पर रूस की स्थिति अपेक्षाकृत मजबूत है, पुतिन उन प्रमुख लक्ष्यों पर कड़ा मोलभाव कर रहे हैं, जिनके कारण उन्होंने फरवरी 2022 में यह युद्ध शुरू किया था।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए यह शिखर वार्ता अमेरिका को यह दिखाने का अवसर भी थी कि भारत के पास राजनीतिक और आर्थिक स्तर पर महत्वपूर्ण कूटनीतिक पत्ते हैं। उन्हें स्पष्ट रूप से महसूस हुआ कि यह संदेश देना आवश्यक है क्योंकि भारत-अमेरिका व्यापार समझौता अभी भी फाइनल नहीं हुआ है, और राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारतीय निर्यात पर लगाए गए 50% शुल्क में अब तक कोई कमी नहीं की है।



राष्ट्रपति भवन में गार्ड ऑफ ऑनर का निरीक्षण करते रूसी राष्ट्रपति पुतिन   फोटो : X/@narendramodi

 मोदी ने यह मजबूत संकेत दिया कि भारत के पास महत्वपूर्ण "दोस्त" हैं। उन्होंने प्रोटोकॉल से कहीं आगे बढ़कर रूसी राष्ट्रपति का स्वागत किया। वे स्वयं हवाई अड्डे पर पुतिन को रिसीव करने पहुंचे और उसके तुरंत बाद अपने आवास पर एक प्राइवेट डिनर का आयोजन किया।

7, लोक कल्याण मार्ग, जो राजीव गांधी के कार्यभार संभालने के बाद से भारतीय प्रधानमंत्रियों का आधिकारिक आवास रहा है, रूसी राष्ट्रपति के स्वागत में अभूतपूर्व तरीके से सजाया गया था।

रूस एक महत्त्वपूर्ण देश है और भारत–रूस संबंध भारत के हितों के लिए बेहद ज़रूरी हैं, खासकर रक्षा आपूर्ति, सिविल परमाणु ऊर्जा और अंतरिक्ष सहयोग के क्षेत्रों में। लेकिन वास्तविकता यह है कि भारत के व्यापक हितों की दृष्टि से भारत–अमेरिका संबंध कहीं अधिक अहम हैं। यह वस्तुनिष्ठ सच्चाई है, हालांकि इसका यह मतलब नहीं कि भारत को रूस के साथ अपनी ‘विशेष साझेदारी’ को मज़बूत करने के लिए काम नहीं करना चाहिए।

भारतीय विश्लेषक लिख रहे हैं कि पूरी ‘दुनिया’ पुतिन की भारत यात्रा को क़रीब से देख रही थी। लेकिन सच यह है कि अंतरराष्ट्रीय पर्यवेक्षक, खासकर यूरोप और अमेरिका वाले, पुतिन के यूक्रेन युद्ध को लेकर दिए जाने वाले संकेतों को देख रहे थे। पुतिन ने इस युद्ध का जिक्र तक नहीं किया।

ये पर्यवेक्षक यह भी देखना चाह रहे थे कि मोदी पुतिन को युद्ध ख़त्म करने की ज़रूरत पर क्या संदेश देते हैं। निस्संदेह, इस संघर्ष का अंत भारत के हित में ही होगा।



फोटो : X/@narendramodi


संयुक्त प्रेस वार्ता में मोदी ने कहा, “शुरू से ही भारत यूक्रेन की स्थिति को लेकर शांति की पैरवी करता आया है। हम इस मामले में शांतिपूर्ण और स्थायी समाधान के लिए किए जा रहे हर प्रयास का स्वागत करते हैं। भारत हमेशा से इस दिशा में योगदान देने के लिए तैयार रहा है और आगे भी रहेगा।”

दूसरी ओर, पुतिन ने केवल इतना कहा कि उन्होंने और मोदी ने क्षेत्रीय और वैश्विक मुद्दों पर बातचीत की।

भारत–रूस संयुक्त बयान के “क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय मुद्दों” वाले हिस्से में भी यूक्रेन का कोई उल्लेख नहीं है। इससे दो बातें संकेतित होती हैं—या तो रूसी वार्ताकार यूक्रेन मुद्दे का ज़िक्र शामिल करने के इच्छुक नहीं थे, या फिर दोनों पक्ष किसी पारस्परिक रूप से स्वीकार्य भाषा पर सहमत नहीं हो पाए।

इस हिस्से में अफ़ग़ानिस्तान, पश्चिम एशिया और ईरान की स्थिति पर चर्चा की गई है। इन विषयों पर कहा गया है, “दोनों पक्षों ने मध्य पूर्व/पश्चिम एशिया में शांति और स्थिरता के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दोहराई, संयम बरतने, नागरिकों की सुरक्षा, अंतरराष्ट्रीय क़ानून के पालन और ऐसे किसी भी कदम से बचने की आवश्यकता पर जोर दिया जो स्थिति को और भड़का सकता हो या क्षेत्रीय स्थिरता को प्रभावित कर सकता हो। उन्होंने ईरान परमाणु मुद्दे के समाधान के लिए संवाद की महत्ता पर बल दिया। ग़ाज़ा की मानवीय स्थिति पर चिंता व्यक्त की और संघर्ष विराम, मानवीय सहायता और स्थायी शांति के लिए संबंधित पक्षों द्वारा किए गए समझौतों व सहमतियों का पालन करने की ज़रूरत को रेखांकित किया।”

विडंबना यह है कि रूस पश्चिम एशिया के संदर्भ में “अंतरराष्ट्रीय क़ानून के पालन” की वकालत करता है, लेकिन यूक्रेन के मामले में वही सिद्धांत उसके लिए लागू नहीं होता। यह एक और उदाहरण है कि बड़ी शक्तियाँ अंतरराष्ट्रीय क़ानून का इस्तेमाल चयनात्मक रूप से करती हैं; वे कभी इसे अपने हितों के रास्ते में नहीं आने देतीं।

यह अच्छी बात है कि भारत और रूस ने कुशल श्रमिकों की आवाजाही और मध्य एशिया क्षेत्र में आर्थिक सहयोग सहित नए क्षेत्रों में अपने संबंधों को विस्तार देने का फैसला किया है। स्वाभाविक रूप से दोनों देशों ने पारंपरिक सहयोग क्षेत्रों—रक्षा, ऊर्जा, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी और अंतरिक्ष—पर भी ध्यान केंद्रित किया। पुतिन ने घोषणा की कि ऊर्जा आपूर्ति में रूस की ओर से कोई बाधा नहीं है। यह साफ संकेत था कि रूसी तेल निर्यात पर रोक लगाने की ट्रंप की मांग से पुतिन बिल्कुल अप्रभावित हैं। यह आश्चर्यजनक नहीं है कि पुतिन चाहेंगे कि भारत रूसी तेल खरीदना जारी रखे। हालांकि, रिपोर्टों से संकेत मिलता है कि भारत ने रूस से तेल की खरीद में काफी कमी की है।



फोटो : X/@narendramodi

 

मोदी की प्राथमिकता भारतीय निर्यात पर लगे ट्रंप के शुल्क को कम कराना है। उनकी उम्मीद होगी कि रूस से तेल खरीद पर ट्रंप की इच्छा के अनुरूप कदम उठाने के बाद अमेरिका भारत पर लगाए गए 25% शुल्क को हटा देगा। अभी तक ऐसा नहीं हुआ है।

आर्कटिक की बर्फ पिघलने के साथ ध्रुवीय समुद्री मार्ग भविष्य में महत्वपूर्ण होने वाला है। भारत और रूस ने ऐसे जहाज़ बनाकर सहयोग करने का निर्णय लिया है जो इस मार्ग का उपयोग कर सकें। यह एक अच्छी पहल है क्योंकि भारत के हितों की मांग है कि वह भविष्य की संभावनाओं को ध्यान में रखे।

भारत जब एक बड़ी रक्षा उद्योग विकसित करने की दिशा में आगे बढ़ रहा है, रूस एक महत्वपूर्ण साझेदार बन सकता है। हालांकि, भारत को केवल रूसी तकनीक पर निर्भरता से आगे बढ़ना होगा। तभी यह कहा जा सकेगा कि भारत ने सचमुच भविष्य की युद्ध आवश्यकताओं के अनुरूप स्वतंत्र रक्षा उद्योग तैयार कर लिया है।

अमेरिका की तरह चीन भी भारत–रूस संबंधों का एक अहम पहलू है। एक साक्षात्कार में पुतिन ने संकेत दिया कि वे चाहते हैं कि भारत–रूस संबंध रूस–चीन संबंधों जैसे हों। यह संभव नहीं है, क्योंकि वस्तुस्थिति यह है कि रूस चीन पर काफी हद तक निर्भर है। साथ ही, कई क्षेत्रों में चीन रूस से आगे निकल चुका है। पहले वैश्विक प्रतिद्वंद्विता अमेरिका और सोवियत संघ के बीच थी। अब यह अमेरिका और चीन के बीच है। इसलिए पुतिन के शब्द मौजूदा वैश्विक शक्ति संतुलन की वास्तविकता को प्रतिबिंबित नहीं करते।

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