बांके बिहारी कॉरिडोर : सुप्रीम कोर्ट ने उठाए सख्त सवाल, निजी मंदिर के दावे पर ऐतराज

याचिकाओं में कहा गया है कि श्री बांके बिहारी जी मंदिर एक निजी धार्मिक संस्था है. प्रदेश सरकार अध्यादेश के ज़रिए मंदिर पर अपरोक्ष रूप से अपना नियंत्रण करना चाह रही है.;

Update: 2025-08-04 11:55 GMT

Vrindavan Shri Bankey Bihari Corridor Matter : वृंदावन स्थित प्रसिद्ध श्री बांके बिहारी मंदिर के प्रबंधन को लेकर चल रहे विवाद पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई सोमवार को भी जारी रही। सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता और उत्तर प्रदेश सरकार दोनों से ही सवाल किये। याचिकाकर्ता से ये पूछा गया कि जब लाखों लोग दर्शन को आते हैं तो ऐसे में मंदिर निजी कैसे हो सकता है? इस मामले की सुनवाई जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ कर रही है। याचिकाओं में उत्तर प्रदेश सरकार के उस अध्यादेश को चुनौती दी गई है, जिसके तहत मंदिर से जुड़ी व्यवस्थाएं एक सरकारी ट्रस्ट को सौंपने की योजना है।


निजी मंदिर के दावे पर कोर्ट की सख्त टिप्पणी

याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम दीवान ने अदालत में दलील दी कि श्री बांके बिहारी मंदिर एक निजी धार्मिक संस्था है, और सरकार इसके धन व प्रबंधन पर नियंत्रण चाहती है। इस पर जस्टिस सूर्यकांत ने सवाल उठाया कि “जब मंदिर में लाखों श्रद्धालु आते हैं, तो वह निजी कैसे हो सकता है?” उन्होंने कहा, “प्रबंधन निजी हो सकता है, लेकिन कोई देवता निजी कैसे हो सकता है?”


मंदिर के धन के उपयोग पर बहस

कोर्ट ने सरकार के इरादों को लेकर स्पष्ट किया कि उन्हें मंदिर के धन को “हड़पने” की मंशा नहीं दिखती, बल्कि उसे मंदिर के विकास और तीर्थयात्रियों की सुविधा के लिए उपयोग में लाया जा रहा है। इस पर दीवान ने विरोध करते हुए कहा कि सरकार मंदिर की आय से ज़मीन खरीदने जैसी योजनाएं बना रही है, जो गलत है।

सुप्रीम कोर्ट ने कटाक्ष करते हुए पूछा, “मंदिर का पैसा आपकी जेब में क्यों जाए? इसका उपयोग विकास के लिए क्यों नहीं हो सकता?”


सरकार के अध्यादेश पर सवाल

सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार से यह भी पूछा कि अध्यादेश लाने की इतनी जल्दी क्यों थी? कोर्ट ने सुझाव दिया कि राज्य सरकार यदि मंदिर से जुड़ा कोई विकास कार्य करना चाहती थी, तो उसे कानून के तहत और पारदर्शी तरीके से करना चाहिए था। अदालत ने कहा कि ज़मीन निजी है या नहीं, इस पर अदालत निर्णय दे सकती है, लेकिन बिना संबंधित पक्ष को सुने आदेश उचित नहीं है।


प्रबंधन समिति के गठन का प्रस्ताव

सुप्रीम कोर्ट ने मंदिर और सरकार के बीच मध्यस्थता का प्रस्ताव रखते हुए कहा कि एक अंतरिम प्रबंधन समिति गठित की जा सकती है, जिसमें हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज, जिलाधिकारी और गोस्वामी समाज के प्रतिनिधि शामिल हों। कोर्ट ने कहा कि धार्मिक स्थलों का विकास जरूरी है और धार्मिक पर्यटन रोजगार और बुनियादी ढांचे का बड़ा स्रोत बन चुका है।


धार्मिक पहचान की रक्षा का आश्वासन

जस्टिस सूर्यकांत ने वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल से बातचीत में कहा कि “आप निश्चिंत रहें, इस पवित्र स्थल की पौराणिकता और सांस्कृतिक धरोहर को पूरी तरह संरक्षित किया जाएगा।” उन्होंने शिरडी, तिरुपति और अमृतसर जैसे स्थलों का उदाहरण देते हुए कहा कि आधुनिक सुविधाओं के साथ भी श्रद्धा और परंपरा सुरक्षित रह सकती है।


अगली सुनवाई कल सुबह

कोर्ट ने कहा कि फिलहाल अध्यादेश की संवैधानिकता पर बाद में विचार किया जाएगा और अब इस मामले की अगली सुनवाई मंगलवार सुबह साढ़े दस बजे होगी।


Tags:    

Similar News