बिहार में किसका मन डोल रहा है, लालू के ऑफर के बाद बयानों की बारिश

Nitish Kumar: नीतीश कुमार को बिहार की सियासत का अजातशत्रु कहें तो गलत ना होगा। पिछले दो दशक से वो अलग अलग दलों की मदद से दूल्हा बनने में कामयाब रहे हैं।;

By :  Lalit Rai
Update: 2025-01-02 09:17 GMT

Bihar Politics News:  मौसम जाड़े का है, लेकिन बिहार की सियासत में पारा तेजी से ऊपर की ओर चढ़ रहा है। कई तरह के सवालों ने भी जन्म लिया है क्या नीतीश कुमार एक बार फिर पाला बदलने वाले हैं। वैसे पाला बदलने की उनकी पहचान रही है, इसलिए आरजेडी के कद्दावर नेता तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) ने पलटू राम नाम दे दिया। लेकिन अब वो इस शब्द की जगह नीतीश कुमार को चाचा कहते अधिक नजर आ रहे हैं। सवाल ये है कि मन किसका डोल रहा है। हाल ही में जब नीतीश कुमार (Nitish Kumar) ने थोक के भाव अधिकारियों के ट्रांसफर किये तो इस तरह की बात सामने आई कि उन्होंने बीजेपी से चर्चा नहीं की। ऐसे अधिकारियों का चयन किया जो बीजेपी के हिसाब से फिट नहीं बैठते। इन सबके बीच जब लालू यादव ने नीतीश कुमार को साथ आने का ऑफर दे दिया तो सियासी गर्मी और बढ़ गई है। पहले आपको सुनाएंगे कि किसने क्या कहा और समझने की कोशिश करेंगे कि इसका मतलब क्या है। 

सम्राट चौधरी, डिप्टी सीएम, बीजेपी नेता

लालू प्रसाद यादव के इस बयान पर कि सीएम नीतीश कुमार के लिए गठबंधन के दरवाजे हमेशा खुले हैं, बिहार के डीसीएम सम्राट चौधरी ने कहा, "नीतीश कुमार लालू प्रसाद यादव को अंदर से जानते हैं... लालू प्रसाद यादव बस डरे हुए हैं..."


लालू प्रसाद यादव के इस बयान पर कि कांग्रेस का कहना है कि सीएम नीतीश कुमार के लिए गठबंधन के दरवाजे हमेशा खुले हैं, कांग्रेस नेता शकील अहमद खान ने कहा, अगर गांधी के अनुयायी गोडसे के अनुयायियों से खुद को अलग कर लेते हैं, तो हम उनके साथ हैं।


लालू प्रसाद यादव के इस बयान पर कि सीएम नीतीश कुमार के लिए गठबंधन के दरवाजे हमेशा खुले हैं, तेजस्वी यादव ने कहा कि आप उनसे यही पूछते रहिए, वे और क्या कहेंगे? उन्होंने यह बात सिर्फ आप सबको शांत करने के लिए कही।


अब जब लालू प्रसाद यादव के बयान पर इतनी प्रतिक्रियाएं आईं तो जेडीयू का रुख क्या है। केंद्रीय मंत्री राजीव रंजन उर्फ ललन सिंह ने कहा कि लालू जी इस तरह की बात करते रहते हैं। हमारा गठबंधन राज्य और केंद्र दोनों जगह अच्छी तरह चल रहा है। कहीं किसी तरह की दिक्कत वाली बात नहीं है। लेकिन क्या बात सिर्फ इतनी सी है। 

बिहार की राजनीति पर नजर रखने वाले कहते हैं कि अब विचारधारा की बात भूल जाइए। अगर बात विचारधारा की होती तो नीतीश कुमार, कभी भी लालू यादव के साथ नहीं जाते। बात अगर महादलित के उत्थान की होती तो जीतन राम मांझी (Jitan Ram Manjhi) को सीएम की कुर्सी से नीतीश कुमार हटाए नहीं होते। दरअसल हरियाणा और महाराष्ट्र में जीत के बाद बीजेपी के हौसले बुलंद है। साल 2020 के नतीजों को देखें तो बीजेपी दूसरी बड़ी पार्टी के तौर पर सत्ता में आई थी। उन्हें लगता है कि हरियाणा-महाराष्ट्र की तरह वो कमाल कर सकते हैं। असली समस्या जेडीयू (JDU) और आरजेडी (RJD) के साथ है। अपने कार्यकर्ताओं का हौसला बनाए रखने के लिए लालू और तेजस्वी को एक अदद जीत की जरूरत है तो दूसरी तरफ जेडीयू को पता है कि बिहार (Bihar Assembly Elections 2025) की राजनीति में सीटों के लिहाज से उसकी हैसियत क्या है,लिहाजा अस्तित्व बना रहे इसके लिए नीतीश कुमार गुणा गणित करते रहेंगे। 

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