कर्नाटक सरकार ने राज्यपाल गहलोत के खिलाफ छेड़ी जंग, लगाया 'पक्षपाती' व 'भाजपा एजेंट' का आरोप

ऐसा बहुत कम इतिहास है कि गैर-भाजपा राज्य सरकारों का अपने राज्यपालों के साथ अच्छा संबंध रहा हो. ऐसा ही कुछ सिद्धारमैया सरकार और राज्यपाल थावर चंद गहलोत के साथ देखने को मिल रहा है.

Update: 2024-08-26 13:56 GMT

Governor Thaawar Chand Gehlot VS Karnataka Siddaramaiah Government: ऐसा बहुत कम इतिहास है कि गैर-भाजपा राज्य सरकारों का अपने राज्यपालों के साथ संघीय स्तर पर अच्छा संबंध रहा हो. तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन और राज्यपाल आरएन रवि, केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन और राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और राज्यपाल सीवी आनंद बोस के बीच तकरार इसके प्रत्यक्ष उदाहरण हैं. अब कर्नाटक की सिद्धारमैया सरकार की बारी है, जो राज्यपाल थावर चंद गहलोत के साथ टकराव की तैयारी कर रही है. बात इतनी आगे बढ़ गई है कि सत्तारूढ़ कांग्रेस इस मुद्दे को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू तक ले जाने की योजना बना रही है.

MUDA से शुरुआत

राज्यपाल के साथ यह तनाव तब और बढ़ गया, जब गहलोत ने मैसूर शहरी विकास प्राधिकरण (MUDA) द्वारा भूमि आवंटन से जुड़े कथित घोटाले में मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के खिलाफ मुकदमा चलाने की अनुमति दी. सिद्धारमैया मंत्रिमंडल ने राज्यपाल के सामने अपनी भड़ास निकालने के लिए अन्य मुद्दे भी खोज दिए हैं. कर्नाटक विधानसभा द्वारा पारित कई विधेयकों को गहलोत द्वारा अस्वीकार किए जाने से मतभेद और बढ़ गए हैं. इसलिए राज्य सरकार राष्ट्रपति से हस्तक्षेप की मांग कर रही है. कांग्रेस नेताओं का आरोप है कि राज्यपाल की कार्रवाई केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार के इशारे पर हो रही है. उनका कहना है कि भाजपा अभी भी पिछले साल कर्नाटक विधानसभा चुनाव में मिली हार से उबर नहीं पाई है.

दिल्ली में विरोध-प्रदर्शन

बेंगलुरु में राजभवन के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन करते हुए कर्नाटक सरकार 'दिल्ली चलो' प्रदर्शन की योजना बना रही है. यह राज्य के खिलाफ़ कथित मौद्रिक भेदभाव को लेकर फरवरी 2024 में राष्ट्रीय राजधानी में आयोजित प्रदर्शन जैसा ही होगा. कर्नाटक सरकार कथित तौर पर केरल, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्रियों को भी इसमें शामिल करने की कोशिश कर रही है. क्योंकि वह मोदी सरकार द्वारा कथित 'राज्यपालों के दुरुपयोग' को लेकर राष्ट्रपति मुर्मू को याचिका देना चाहती है. कर्नाटक में यह स्पष्ट रूप से सरकार बनाम राज्यपाल का परिदृश्य है.

मंत्रीगण नाखुश

राज्य मंत्रिमंडल और कांग्रेस नेताओं ने राज्यपाल के कार्यों की लगातार आलोचना की है. कई मंत्री चाहते हैं कि गहलोत के राजनीतिक रूप से प्रेरित निर्णयों का कोई मजबूत राजनीतिक जवाब दिया जाए. कर्नाटक सरकार भी अपनी संवैधानिक शक्तियों का प्रयोग करने और अभियोजन के लिए लंबित मामलों के संबंध में राज्यपाल के पत्र का औपचारिक रूप से जवाब देने पर विचार कर रही है. सिद्धारमैया के खिलाफ मुकदमा चलाने की त्वरित मंजूरी से कांग्रेस में और अधिक खलबली मच गई है.

राज्यपाल का रवैया पक्षपातपूर्ण

कांग्रेस नेताओं की शिकायत है कि राज्यपाल ने भाजपा सहित अन्य नेताओं के खिलाफ अभियोजन के लिए लंबित अनुरोधों पर कोई तत्परता नहीं दिखाई. जबकि उन्होंने एक निजी शिकायत मिलने के तुरंत बाद मुख्यमंत्री को नोटिस जारी कर विस्तृत जवाब मांगा था. बाद में राज्यपाल ने सिद्धारमैया के खिलाफ मुकदमा चलाने की मंजूरी दे दी. इस बीच, छह ऐसे व्यक्ति हैं, जिनके खिलाफ मुकदमा चलाने की मांग वाली याचिकाएं राज्यपाल की मंजूरी का इंतजार कर रही हैं. इनमें पूर्व मुख्यमंत्री और मौजूदा केंद्रीय मंत्री एचडी कुमारस्वामी, जो भाजपा के सहयोगी हैं और पूर्व मंत्री मुरुगेश निरानी और जनार्दन रेड्डी शामिल हैं. पूर्व मंत्री शशिकला जोले के खिलाफ दायर याचिका को राज्यपाल ने कथित तौर पर खारिज कर दिया है.

राज्यपाल के विरुद्ध मंत्रिमंडल

कुछ मंत्री इस भेदभावपूर्ण रवैये के कारणों को समझने के इच्छुक हैं. कैबिनेट की बैठक में मंत्रियों ने इस बात पर जोर दिया कि कैबिनेट को राज्यपाल को सहायता देने, सलाह देने और उनके कार्यों के संबंध में जानकारी प्राप्त करने का अधिकार है. उन्होंने कहा कि हालांकि राज्यपाल द्वारा राजनीतिक आलोचना और आलोचना स्वीकार्य है. लेकिन सरकार को किसी भी देरी के पीछे के कारणों को समझने और उन्हें लिखित रूप में संबोधित करने की आवश्यकता है.

सिंघवी का गहलोत पर हमला

सिद्धारमैया ने अपने खिलाफ मुकदमा चलाने के राज्यपाल के फैसले को चुनौती दी है. उनके कानूनी सलाहकार अभिषेक मनु सिंघवी का कहना है कि अभियोजन के लिए राज्यपाल की अथॉरिटी असंवैधानिक है और ऐसा लगता है कि यह राज्य सरकार को अस्थिर करने का प्रयास है. उन्होंने बिना कोई औचित्य बताए कैबिनेट की सिफारिश को खारिज करने के लिए राज्यपाल की आलोचना की और कहा कि गहलोत की कार्रवाई मनमानी प्रतीत होती है तथा इसमें उचित स्पष्टीकरण का अभाव है.

राज्यपाल को दें सद्बुद्धि

गहलोत ने अगस्त में कर्नाटक सरकार को छह प्रमुख विधेयक लौटा दिए थे और आगे स्पष्टीकरण मांगा था. इस तरह इस साल जनवरी से अब तक लौटाए गए विधेयकों की कुल संख्या 11 हो गई है. निराश उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार ने प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि राज्यपाल ने भाजपा विधायकों की बात सुनने के बाद 15 विधेयक लौटा दिए हैं. अगर राज्यपाल को केवल भाजपा की बातों पर ही काम करना है तो लोकतांत्रिक व्यवस्था में सरकार की क्या भूमिका है? हम स्पष्टीकरण देने के लिए तैयार हैं. स्पष्टीकरण मांगने में कुछ भी गलत नहीं है. लेकिन मैं प्रार्थना करता हूं कि भगवान राज्यपाल को सद्बुद्धि प्रदान करें. हाल ही में कांग्रेस विधायक दल की बैठक में विधायकों ने राज्यपाल के कामों पर कड़ा असंतोष जताया. उन्होंने राष्ट्रपति मुर्मू से मिलने के अलावा पार्टी हाईकमान से भी इस मुद्दे पर चर्चा करने का प्रस्ताव रखा.

कन्नड़ भाषा का मुद्दा

इस वर्ष की शुरुआत में राज्यपाल ने राज्य सरकार के उस अध्यादेश को लौटा दिया था, जिसमें व्यापारिक प्रतिष्ठानों में कन्नड़ बोर्ड स्थापित करना अनिवार्य किया गया था. सरकार ने एक अध्यादेश जारी कर व्यावसायिक प्रतिष्ठानों में 60 प्रतिशत कन्नड़ भाषा के उपयोग को अनिवार्य कर दिया था. इसे लागू करने के लिए राज्यपाल की मंजूरी की जरूरत थी. लेकिन गहलोत ने इसे खारिज कर दिया और कहा कि विधेयक को विधानसभा में पेश कर पारित किया जाए. ऐसा किया गया. मैंगलोर विश्वविद्यालय में 42वें दीक्षांत समारोह में राज्यपाल कार्यालय और विश्वविद्यालय प्रशासन के बीच टकराव के कारण अव्यवस्था फैल गई. समारोह की अध्यक्षता कर रहे गहलोत ने अपने सुरक्षा अधिकारी के माध्यम से बार-बार निर्देश जारी किए, जिससे कार्यवाही पर नियंत्रण हो गया और अव्यवस्था फैल गई. सूत्रों के अनुसार कुलपति प्रो. पीएल धर्मा को सरकार ने नियुक्त किया था. जबकि राज्यपाल कार्यालय में किसी और व्यक्ति का नाम था. इसका नतीजा यह हुआ कि विश्वविद्यालय में भयावह दृश्य देखने को मिले.

Tags:    

Similar News