क्या बीएसपी में जान फूंक पाएंगे आकाश आनंद, सामने है कई चुनौती?

मायावती ने आकाश आनंद को फिर से बीएसपी का राष्ट्रीय संयोजक बनाया है, लेकिन सवाल है कि क्या वह गिरते जनाधार और चंद्रशेखर जैसे नेताओं से मुकाबला कर पाएंगे?;

By :  Lalit Rai
Update: 2025-05-19 08:22 GMT
बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने अपने भतीजे आकाश आनंद को मार्च 2025 में सभी पदों से हटा दिया था। हालांकि अप्रैल के महीने में सार्वजनिक माफी मांगने के बाद एक बार फिर आकाश आनंद नेशनल कोऑर्डिनेटर बन चुके हैं।

Akash Anand Politics:  यूपी की सियासत में बहुजन समाज पार्टी का भविष्य क्या होगा यह सवाल खुद में बेहद खास है। इस सवाल के बीच बात यहां उस शख्स आकाश आनंद की करेंगे जो रिश्ते में बहन जी यानी मायावती का भतीजा है, पार्टी के नेशनल कोऑर्डिनेटर और उत्तराधिकारी थे। लेकिन मार्च के महीने में अपने भतीजे को बहन जी ने ना सिर्फ पदों से चलता कर दिया बल्कि पार्टी से निकाल दिया। हालांकि बहन जी का गुस्सा ठंडा हुआ और उन्होंने फिर आकाश आनंद को नेशनल कोऑर्डिनटर की जिम्मेदारी देते हुए कहा कि वो पार्टी में ऊर्जा का संचार करेंगे। लेकिन क्या इससे बीएसपी को फायदा होने वाला है। क्या आकाश आनंद,चंद्रशेखर आजाद का मुकाबला कर सकेंगे जो मौजूदा समय में अपनी पार्टी से इकलौता सांसद हैं। इन सबके बीच बीएसपी के प्रदर्शन को भी समझना जरूरी है।

वैसे तो मायावती का यूपी की सत्ता से नाता 1990 के दशक से है। लेकिन साल 2007 महत्वपूर्ण है। इस वर्ष बीएसपी ने बहुजन की जगह सर्वजन का नारा बुलंद किया और अपने दम पर सत्ता में आने में कामयाब रही। यूं कहें तो बीएसपी ने सर्वोत्तम प्रदर्शन किया था। लेकिन अपने प्रदर्शन को बहन जी यानी मायावती की पार्टी कायम नहीं रख सकी। चुनाव दर चुनाव ग्राफ गिरता गया। इन सबके बीच 2019 में मायावती ने वो फैसला किया जिसकी उम्मीद ना के बराबर थी। सियासी तौर पर निजी तौर पर बैर भाव रखने वाली मायावती 1993 के स्टेट गेस्ट हाउस कांड को भुला सपा की साइकिल पर सवार हुईं। फायदा भी हुआ लेकिन रास्ते अलग हो गए और उसका असर भी नजर आया। 2022 विधानसभा चुनाव, 2024 लोकसभा चुनाव में स्थिति ये हुई कि विधानसभा में महज एक विधायक और लोकसभा में पार्टी की आवाज बुलंद करने वाला एक सांसद नहीं है। खास बात यह है कि जो पार्टी यूपी में कभी 27-28 फीसद मत को अकेले हासिल करती थी आज वो मत प्रतिशत इकाई के आंकड़े में आ गया है। 2022 के चुनाव में जहां यह करीब 9 फीसद के करीब था वहीं यह संख्या अब करीब 6 फीसद है।

आकाश आनंद के सामने चुनौती

जाटव-गैर जाटव वोटों में बंटवारा

चंद्रशेखर आजाद का उभार

समाजवादी पार्टी का दलित राजनीति में रुचि

लाभार्थी वर्ग के जरिए बीजेपी की जगह बनाने की कोशिश

बीएसपी के कैडर में ऊर्जा की कमी

बीएसपी की सीटों में ना सिर्फ गिरावट आई बल्कि मत प्रतिशत में गिरावट आई। खास बात यह है कि मायावती का कोर वोट बैंक जाटव भी कहीं न कहीं छिटकता हुआ नजर आया। इस संबंध में यूपी की सियासत पर पैनी नजर रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार शरत प्रधान द फेडरल देश से खास बात कहते हैं कि अब जमाना बदल रहा है, कोई भी राजनीतिक दल अगर इस सच्चाई को नहीं समझेगा तो उसे मुंह की खानी पड़ेगी। अगर बीएसपी का प्रदर्शन दिनोंदिन गिरा खासतौर से 2014 के बाद तो उसके पीछे बड़ी वजह यह है कि बहन जी युवाओं की चेतना को समझ नहीं सकीं। उनको ऐसा लगता रहा कि 1980, 1990 और 2000 की राजनीति काम करेगी। लेकिन 2010 के बाद धीरे धीरे परिवर्तन आने लगा। प्रदेश की बड़ी आबादी के हाथ में मोबाइल आ गए। लोगों ने डेटा पर पैसे खर्च करना शुरु किया। देश और दुनिया की घटनाओं को समालोचना के नजरिए से देखना शुरू किया और उसका असर यह हुआ कि मतदाता वर्ग भी पार्टी के बंधन से किसी खास शख्सियत के बंधन से बाहर निकलने की कोशिश करने लगा। 

शरत प्रधान से द फेडरल देश का अगला सवाल आकाश आनंद को लेकर था कि  राजनीति के आकाश में बहन जी के भतीजे कितना उड़ान भर पाएंगे। इस सवाल के जवाब में बेबाकी से वो कहते हैं कि बहन जी की इच्छा और भरोसा जब तक बना रहे है। वो कहते हैं कि बहन जी की कार्यप्रणाली को देखें तो वो बहुत देर तक किसी को बर्दाश्त नहीं कर पाती हैं। वो अपने आपको एक ऐसे वटवृक्ष के तौर पर पेश करती हैं जहां पार्टी का बड़ा पदाधिकारी हो या सामान्य कार्यकर्ता उसे अपनी महत्वाकांक्षा को उभार देने के लिए जगह नहीं है। अब आप उनके भतीजे आकाश आनंद को लें। आम चुनाव 2024 के समय वो बीजेपी के खिलाफ आक्रामक रुख अख्तियार कर चुके थे। लेकिन राजनीतिक परिपक्वता की कमी का हवाला दे बीच चुनाव प्रचार से वापस बुला लिया। जब उन्हें लगा कि आकाश आनंद अपने ससुर और पत्नी के प्रभाव में आकर पार्टी का नुकसान कर रहे हैं तो बाहर करने में समय नहीं लगाया। कहने का अर्थ ये है कि अगर आप बीएसपी के हिस्सा हैं तो मानसिक तौर सरेंडर करिए। 

शरत प्रधान अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहते हैं कि अब जमाना बदल चुका है। बीजेपी के सत्ता में आने के बाद वंचित शोषित समाज में वर्गीकरण हुआ है जिसे आमतौर पर लाभार्थी या लाभुक कहते हैं। बीएसपी के नेता जिस जाटव और गैर जाटव समाज को अपनी संपत्ति मानते थे अब वो समाज भी अलग तरह से सोच रहा है खासतौर से युवा। उदाहरण के लिए चंद्रशेखर आजाद भले ही खुद कामयाबी की बड़ी लकीर ना खींच सकें। वो बीएसपी की गणित खराब कर सकते हैं। ऐसे में आकाश आनंद के सामने चुनौती और मौका दोनों हैं। वो युवा है, नई सोच के साथ आगे बढ़ने की इच्छा रखते हैं। आप कह सकते हैं कि उनके सामने मैदान है, फैसला उन्हें करना है कि किस तरह से आगे बढ़ना चाहेंगे। सियासत रेत की तरह है जो कभी किसी की मुट्ठी में लंबे समय तक कैद नहीं रहती। 

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