पिंजरे में बंद तोते से 'दिखावटी मोर' में तब्दील CBI! बंगाल के अनसुलझे मामले तो यही कर रहे बयां
CBI: यह सिर्फ आरजी कर बलात्कार मामला नहीं है, बंगाल में सीबीआई के अनसुलझे मामलों की लंबी सूची ने आलोचकों को यह पूछने पर मजबूर कर दिया है कि क्या यह भाजपा शासन में पिंजरे में बंद तोते से 'दिखावटी मोर' में तब्दील हो गया है?;
RG Kar rape-murder case: बंगाल में यह सवाल पूछा जा रहा है कि क्या भाजपा (BJP) के शासन में केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) यूपीए काल के पिंजरे में बंद तोते से 'दिखावटी मोर' में तब्दील हो गई है? आरजी कार बलात्कार-हत्या मामले में अपने षड्यंत्र के दावों को सिद्ध करने के लिए केंद्रीय एजेंसी (CBI) कोर्ट में कोई भी सबूत पेश नहीं कर पाई. इस वजह से आखिरकार दोनों आरोपियों को जमानत मिल गई. बता दें कि सीबीआई (CBI) ने आरजी कर मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल के पूर्व प्रिंसिपल संदीप घोष और ताला पुलिस थाने के पूर्व प्रभारी अभिजीत मंडल को 14 सितंबर को सूबत नष्ट करने और आपराधिक साजिश रचने के आरोप में गिरफ्तार किया था.
विफलता
जांच एजेंसी (CBI) द्वारा निर्धारित 90 दिनों के भीतर उनके खिलाफ आरोप तय करने में असमर्थता के कारण 13 दिसंबर को विशेष अदालत ने दोनों को जमानत दे दी थी, जिससे न्याय के लिए विरोध फिर से भड़क उठा. एजेंसी ने दावा किया कि उसके पास शव परीक्षण को प्रभावित करने और मामले को पटरी से उतारने के प्रयासों के सबूत हैं. इसमें कथित तौर पर यह भी सबूत है कि पीड़िता का अंतिम संस्कार उसके परिवार के सदस्यों की इच्छा के विरुद्ध जल्दबाजी में किया गया था. एजेंसी (CBI) के पास सीसीटीवी फुटेज से छेड़छाड़ और शव बरामद होने के बाद दोनों आरोपियों के बीच टेलीफोन पर हुई बातचीत के सबूत भी थे. ये कुछ ऐसे सुराग थे, जिनसे सीबीआई (CBI) को कथित तौर पर यह निष्कर्ष निकालने में मदद मिली कि घोष और मंडल अपराध को दबाने की कोशिश कर रहे थे.
विरोध-प्रदर्शन
अब सवाल यह है कि अगर सीबीआई (CBI) के पास पर्याप्त सबूत हैं तो वह आरोपपत्र दाखिल करने में विफल क्यों रही? इस विफलता ने इसके दावों की सत्यनिष्ठा पर गंभीर प्रश्न उठा दिए हैं तथा जांच पर भी संदेह उत्पन्न कर दिया है, जिसके कारण 31 वर्षीय पीजी प्रशिक्षु डॉक्टर के लिए न्याय की मांग को लेकर विरोध प्रदर्शनों का एक नया दौर शुरू हो गया है, जिसके साथ 9 अगस्त को अस्पताल परिसर में क्रूरतापूर्वक बलात्कार किया गया था तथा उसकी हत्या कर दी गई थी. मामले में सीबीआई की जांच से निराश पश्चिम बंगाल संयुक्त चिकित्सक मंच (डब्ल्यूबीजेपीडी) ने अपना विरोध प्रदर्शन फिर से शुरू कर दिया है. मंच, पीड़िता के माता-पिता और राजनीतिक दल न्याय की मांग को लेकर सड़कों पर उतर आए हैं.
14 दिसंबर को पश्चिम बंगाल भाजपा (BJP) ने साल्ट लेक के सीजीओ कॉम्प्लेक्स स्थित सीबीआई कार्यालय तक मार्च निकाला. इस रैली में पीड़िता के माता-पिता भी शामिल हुए. पीड़िता के पिता ने मीडिया से कहा कि हम न्याय पाने के लिए अंत तक लड़ेंगे. कानूनी लड़ाई के साथ-साथ सड़कों पर लड़ाई भी जारी रहेगी. सोशलिस्ट यूनिटी सेंटर ऑफ इंडिया (कम्युनिस्ट) और सीपीआई (एम) से संबद्ध स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया भी सड़कों पर उतर आए और न्याय के लिए अपने आंदोलन को तेज करने की धमकी दी. पश्चिम बंगाल भाजपा (BJP) ने 17 दिसंबर से कोलकाता में 10 दिवसीय धरना प्रदर्शन की योजना बनाई है.
सीबीआई और राजनीतिक आका
राजनीतिक टिप्पणीकार और कॉमनवेल्थ फेलो देबाशीष चक्रवर्ती ने कहा कि सीबीआई की जांच से लोगों के निराश होने के कई वैध कारण हैं. एजेंसी (CBI) अपने अधिकार क्षेत्र में आने वाले कई हाई-प्रोफाइल मामलों में अपने दावों को साबित करने में बार-बार विफल रही है. देश की प्रमुख जांच एजेंसी (CBI) को स्वायत्तता के अभाव के कारण लंबे समय से आलोचना का सामना करना पड़ रहा है. कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार के दौरान सुप्रीम कोर्ट के एक न्यायाधीश द्वारा "पिंजरे में बंद तोता" कहे जाने वाली सीबीआई पर ऐतिहासिक रूप से अपने राजनीतिक संरक्षकों के हितों की रक्षा के लिए भ्रष्टाचार के मामलों को कमतर आंकने का आरोप लगाया जाता रहा है. आज, एजेंसी एक बार फिर आलोचनाओं के घेरे में है. इस बार आलोचकों का आरोप है कि यह एजेंसी (CBI) विपक्ष के नेतृत्व वाली सरकारों को चुनिंदा तरीके से निशाना बनाती है.
चक्रवर्ती ने कहा कि निष्पक्षता बनाए रखने के बजाय, सीबीआई (CBI) की कार्रवाई सत्तारूढ़ पार्टी के राजनीतिक विरोधियों से जुड़े मामलों में दांव को बढ़ाती प्रतीत होती है, जिससे पक्षपात के आरोपों को बढ़ावा मिलता है और जनता का विश्वास कम होता है. आरजी कार एकमात्र ऐसा मामला नहीं है जिसमें सीबीआई (CBI) मामले को लेकर बनी चर्चा के अनुरूप काम करने में विफल रही. राज्य में एजेंसी (CBI) द्वारा जांच किए जा रहे अन्य मामलों में भी ऐसा हुआ है.
बंगाल में विफलता
उदाहरण के लिए, सारदा चिटफंड मामले से लेकर नौकरी के लिए नकदी घोटाले तक, लगभग सभी मामलों में यह ज्यादा प्रगति करने में विफल रही है. इस वर्ष की शुरुआत में, सर्वोच्च न्यायालय ने पश्चिम बंगाल सरकार के उस मुकदमे को विचारणीय माना था, जिसमें केंद्र सरकार पर सीबीआई के दुरुपयोग का आरोप लगाया गया था. एजेंसी ने दिखावे के लिए हाल ही में एक और प्रयास किया है, जिसमें उसने 2021 के बंगाल चुनाव के बाद की हिंसा के मामलों को राज्य से बाहर स्थानांतरित करने की मांग की है, जिसमें दावा किया गया है कि 'बंगाल की अदालतों में प्रतिकूल माहौल व्याप्त है.
सुप्रीम कोर्ट की फटकार
"निंदनीय आरोपों" पर गंभीर आपत्ति जताते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने सितंबर में राज्य की संपूर्ण न्यायपालिका पर आक्षेप लगाने के लिए सीबीआई (CBI) की खिंचाई की थी. कहने की जरूरत नहीं कि सीबीआई के निस्तेज प्रदर्शन से भाजपा नाराज है, जो अदालत द्वारा मामले को बरकरार रखे जाने के बाद राजनीतिक लाभ पाने की उम्मीद कर रही है. पार्थ चटर्जी, संदीप घोष, अभिजीत मंडल - तृणमूल के सभी महा-बदमाशों को जमानत मिल गई. सीबीआई (CBI) को एक नपुंसक एजेंसी के रूप में देखा जाता है, जो 90 दिनों के भीतर चार्जशीट दाखिल करने में असमर्थ या अक्षम है.
पूर्व भाजपा प्रदेश अध्यक्ष तथागत रॉय ने एक्स पर पोस्ट किया, जिसमें भाजपा (BJP) नेता अमित शाह को टैग किया गया कि एक पूर्व भाजपा नेता के रूप में, मुझे जनता के सवालों का जवाब देने में मुश्किल होती है, जो सभी भाजपा (BJP) पर 'सेटिंग' का आरोप लगाते हैं. मां काली के नाम पर, कुछ कहो या करो! राज्य विधानसभा के लिए 2026 के चुनाव में बस एक साल बाकी है! भाजपा का सफाया हो जाएगा!
बंगाल में अनसुलझे मामले
चटर्जी राज्य के पूर्व शिक्षा मंत्री हैं। उन्हें सीबीआई (CBI) ने कैश फॉर जॉब घोटाले में गिरफ्तार किया था. उच्चतम न्यायालय ने पिछले सप्ताह कथित नौकरी के बदले नकदी घोटाले से संबंधित धन शोधन मामले में चटर्जी को सशर्त जमानत देने के लिए एक फरवरी की समय सीमा तय की थी और साथ ही उनके खिलाफ मुकदमे में तेजी लाने का निर्देश दिया था. बंगाल में सीबीआई के अनसुलझे मामलों की सूची में रवींद्रनाथ टैगोर का नोबेल चोरी मामला, नंदीग्राम मामला, तापसी मलिक हत्या मामला, चिटफंड घोटाले से जुड़े कई मामले, नारद स्टिंग ऑपरेशन, कोयला तस्करी, मवेशी तस्करी, चुनाव बाद हिंसा मामला आदि शामिल हैं. लेकिन ऐसा लगता है कि सीबीआई के अनसुलझे मामलों की लंबी सूची सिर्फ़ बंगाल तक ही सीमित नहीं है. केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) की नवीनतम वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार, सीबीआई द्वारा जांचे गए 6,900 से ज़्यादा भ्रष्टाचार के मामले देश भर की अलग-अलग अदालतों में लंबित हैं.