गोरखालैंड मुद्दे पर पर केंद्र की पहल, पूर्व डिप्टी NSA पंकज सिंह होंगे वार्ताकार

यह स्पष्ट नहीं है कि पश्चिम बंगाल सरकार को इस नियुक्ति से पहले सूचित किया गया था या नहीं। राज्य सरकार के किसी अधिकारी ने इसकी पुष्टि नहीं की है।

Update: 2025-10-18 14:54 GMT
राजस्थान कैडर के 1988 बैच के आईपीएस अधिकारी पंकज कुमार सिंह अगस्त 2021 से दिसंबर 2022 में अपनी सेवानिवृत्ति तक बीएसएफ के महानिदेशक के रूप में कार्यरत रहे।
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केंद्र की भाजपा नेतृत्व वाली सरकार ने गोरखा समुदाय के प्रतिनिधियों से संवाद शुरू करने के लिए पूर्व उप राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) पंकज कुमार सिंह को वार्ताकार नियुक्त किया है। दशकों पुराने गोरखालैंड राज्य की मांग को लेकर यह केंद्र सरकार की एक नई कोशिश मानी जा रही है।

गृह मंत्रालय की घोषणा

गृह मंत्रालय द्वारा की गई इस नियुक्ति को उत्तर बंगाल की राजनीतिक स्थिति में बदलाव लाने की दिशा में एक ताज़ा पहल के रूप में देखा जा रहा है। यह नियुक्ति ऐसे समय हुई है, जब पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव 2026 की तैयारियां शुरू हो चुकी हैं। बता दें कि 3 अप्रैल को केंद्र और गोरखा प्रतिनिधियों के बीच तीन साल बाद औपचारिक वार्ता शुरू हुई थी, जिसमें गोरखालैंड की मांग और 11 उप-गोरखा जातियों को अनुसूचित जनजाति (ST) का दर्जा देने की मांग दोहराई गई थी।

कौन हैं पंकज कुमार सिंह?

पंकज कुमार सिंह 1988 बैच के राजस्थान कैडर के आईपीएस अधिकारी रहे हैं। वह अगस्त 2021 से दिसंबर 2022 तक बीएसएफ (BSF) के महानिदेशक रहे और इसके बाद जनवरी 2023 में डिप्टी एनएसए नियुक्त किए गए थे। जम्मू-कश्मीर और पूर्वोत्तर जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में काम कर चुके सिंह को संवेदनशील वार्ताओं और जटिल मुद्दों को संभालने का अनुभव है। एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने इस नियुक्ति को "मास्टरस्ट्रोक" बताते हुए कहा कि सिंह की "बेदाग छवि और कुशल बातचीत क्षमता" उन्हें इस जिम्मेदारी के लिए उपयुक्त बनाती है।

गोरखालैंड मुद्दा – एक ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

1980 के दशक से गोरखालैंड आंदोलन ने दार्जिलिंग, तराई और डुआर्स की राजनीति को प्रभावित किया है। भाजपा, जिसने 2019 लोकसभा चुनाव में "स्थायी राजनीतिक समाधान" का वादा किया था, ने 2024 के घोषणा पत्र में इस वादे का जिक्र नहीं किया, जिससे उसकी मंशा पर सवाल उठे थे। गौरतलब है कि पिछली बार यूपीए सरकार ने 2009 में लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) विजय मदान को वार्ताकार नियुक्त किया था, जिन्होंने 2011 में इस्तीफा दे दिया था।

राजनीतिक प्रतिक्रियाएं

वार्ताकार की नियुक्ति पर मिश्रित राजनीतिक प्रतिक्रियाएं आई हैं। तृणमूल कांग्रेस (TMC), जो बंगाल के विभाजन का विरोध करती है, ने इस कदम को चुनावी स्टंट बताया। TMC के दार्जिलिंग जिला अध्यक्ष एलबी राय ने इसे "राजनीतिक दिखावा" करार दिया। वहीं दूसरी ओर गोरखा नेताओं और दलों ने इस पहल का स्वागत किया है। बीजेपी सांसद राजू बिस्ता ने इसे "ऐतिहासिक उपलब्धि" बताते हुए कहा कि यह संवाद बिना किसी रक्तपात, अशांति या जान-माल की हानि के इस स्तर तक पहुंचा है। उन्होंने कहा कि यह दार्जिलिंग, तराई और डुआर्स के लोगों की जीत है।

गोरखा जनमुक्ति मोर्चा (GJM) के अध्यक्ष बिमल गुरंग और महासचिव रोशन गिरी ने प्रधानमंत्री मोदी और गृहमंत्री अमित शाह का धन्यवाद किया और इसे एक "सकारात्मक कदम" बताया। उन्होंने कहा कि संविधान के तहत स्थायी समाधान गोरखा समुदाय के अधिकारों और पूरे क्षेत्र के विकास के लिए जरूरी है। वहीं, गोरखा नेशनल लिबरेशन फ्रंट (GNLF) ने इसे “ऐतिहासिक कदम” करार देते हुए कहा कि इससे समावेशी और संवादात्मक प्रक्रिया की शुरुआत होगी।

यह स्पष्ट नहीं है कि पश्चिम बंगाल सरकार को इस नियुक्ति से पहले सूचित किया गया था या नहीं। राज्य सरकार के किसी अधिकारी ने इसकी पुष्टि नहीं की है। अब तक केंद्र सरकार ने इस मुद्दे पर सचिव या संयुक्त सचिव स्तर के अधिकारियों के माध्यम से वार्ता की थी, लेकिन पहली बार किसी पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार को नियुक्त किया गया है — जो इस मसले को राजनीतिक, रणनीतिक और सुरक्षा दृष्टि से गंभीरता से लेने का संकेत देता है।

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