झारखंड DGP सेवा विस्तार केस में केंद्र ने सोरेन सरकार को घेरा, द फेडरल का असर
झारखंड के डीजीपी अनुराग गुप्ता को रिटायरमेंट के बाग सेवा विस्तार दिए जाने पर विवाद गहरा गया है। केंद्र सरकार ने झारखंड सरकार के फैसले की नियमों का हवाल देकर खिंचाई की।;
केंद्र सरकार के गृह मंत्रालय (MHA) के निर्देशों की अनदेखी करते हुए झारखंड की हेमंत सोरेन सरकार ने अनुराग गुप्ता को राज्य के पुलिस महानिदेशक (DGP) के पद पर बरकरार रखा है। यह निर्णय सुप्रीम कोर्ट में संभावित टकराव की भूमिका बना रहा है, जहां यह मामला 6 मई को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध है।
सेवानिवृत्ति की उम्र के बाद भी नियुक्ति
The Federal की 18 अप्रैल की रिपोर्ट के अनुसार, अनुराग गुप्ता 26 अप्रैल को 60 वर्ष के हो गए, और नियमों के अनुसार उन्हें 30 अप्रैल की दोपहर तक सेवानिवृत्त हो जाना चाहिए था। लेकिन झारखंड सरकार की अधिसूचना के चलते उन्हें जुलाई 2026 तक DGP के रूप में सेवा में बने रहने की अनुमति दी गई है। अधिसूचना में कहा गया है कि 26 जुलाई 2024 से उन्हें दो वर्षों का निश्चित कार्यकाल दिया जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का उल्लंघन
झारखंड सरकार ने DGP की नियुक्ति के लिए केंद्र सरकार के अधीन संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) से तीन योग्य अधिकारियों के नाम नहीं मंगवाए, जो प्रकाश सिंह बनाम भारत सरकार मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित प्रक्रिया का उल्लंघन है। साथ ही, अखिल भारतीय सेवाओं (जिनमें आईपीएस भी शामिल हैं) के अधिकारियों की सेवा विस्तार की शक्ति केवल केंद्र सरकार के पास होती है, न कि राज्यों के पास।
गृह मंत्रालय का पत्र
18 अप्रैल की रिपोर्ट के चार दिन बाद, 22 अप्रैल को गृह मंत्रालय के पुलिस-1 डिवीजन ने झारखंड सरकार को पत्र लिखकर निर्देश दिया कि अनुराग गुप्ता को 30 अप्रैल को सेवानिवृत्त किया जाए। पत्र में कहा गया: “सेवानिवृत्ति के बाद सेवा विस्तार केवल केंद्र सरकार द्वारा ही दिया जा सकता है या फिर सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों के तहत नियुक्त किए गए राज्य के DGP को दो वर्ष का कार्यकाल मिल सकता है। लेकिन इस मामले में केंद्र सरकार ने अनुराग गुप्ता को सेवा विस्तार नहीं दिया है, इसलिए उनका पद पर बने रहना अखिल भारतीय सेवा (मृत्यु-सह-सेवानिवृत्ति लाभ) नियम, 1958 के नियम 16(1) का उल्लंघन है।”
सरकार का पक्ष और कानूनी चुनौती
झारखंड सरकार ने अब गृह मंत्रालय को उत्तर भेजने की प्रक्रिया शुरू कर दी है, जिसमें अनुराग गुप्ता को DGP बनाए रखने के कारण बताए जा रहे हैं। इस नियुक्ति को बीजेपी नेता बाबूलाल मरांडी ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है और इसे प्रकाश सिंह केस के आदेशों की अवमानना बताया है। उन्होंने झारखंड हाई कोर्ट में भी याचिका दाखिल की है, जिसे 16 जून को सुना जाएगा, जबकि सुप्रीम कोर्ट 6 मई को सुनवाई करेगा।
कोर्ट के पुराने निर्देश
2006 में सुप्रीम कोर्ट ने रिटायर्ड आईपीएस अधिकारी प्रकाश सिंह की याचिका पर फैसला देते हुए कहा था कि राज्यों को तीन वरिष्ठतम अधिकारियों की सूची UPSC से प्राप्त करनी होगी, और उन्हीं में से किसी एक को DGP बनाया जाएगा। चयनित अधिकारी को दो वर्षों का कार्यकाल मिलेगा, चाहे उसकी सेवानिवृत्ति की तारीख कोई भी हो। लेकिन झारखंड सरकार ने इस प्रक्रिया का पालन नहीं किया।
राज्य सरकार द्वारा बनाए गए नियम
राज्य सरकार ने अपनी ओर से एक समिति बनाकर नियुक्ति प्रक्रिया तय की, जिसमें एक पूर्व उच्च न्यायालय न्यायाधीश, मुख्य सचिव, गृह सचिव, झारखंड के एक पूर्व DGP, UPSC और JPSC के प्रतिनिधि शामिल थे। समिति ने तीन से पांच नाम सुझाए और इनमें से एक को दो वर्षों के लिए DGP नियुक्त किया गया। यह प्रक्रिया भी सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का उल्लंघन है, जिसमें स्पष्ट कहा गया था कि राज्य सरकारें नए नियम नहीं बना सकतीं।
संवैधानिक अधिकार पर बहस
यह सवाल अब भी बना हुआ है कि राज्य पुलिस प्रमुख की नियुक्ति का अधिकार केंद्र के पास है या राज्य के पास। संविधान की सूची I के एंट्री 70 के अनुसार, ऑल इंडिया सर्विसेस पर अधिकार केंद्र का है, लेकिन सूची II के एंट्री 2 के तहत 'पुलिस' राज्य का विषय है। इसी द्वंद्व को हल करने के लिए केंद्र ने सुझाव दिया था कि एक संयुक्त समिति (composite committee) बनाई जाए जिसमें राज्य और केंद्र दोनों के प्रतिनिधि हों और UPSC के माध्यम से नियुक्ति हो।
अब यह मामला सुप्रीम कोर्ट के समक्ष है, जहां 6 मई को सुनवाई होनी है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह सही समय है जब देश की सर्वोच्च अदालत इस मुद्दे पर अंतिम रूप से स्थिति स्पष्ट करे कि DGP की नियुक्ति में अंतिम अधिकार किसका है—केंद्र का या राज्य का।