राज-उद्धव की जोड़ी फिर एकजुट, लेकिन कांग्रेस क्यों रही दूर?

पुनर्मिलन कितना सफल रहा—यह तो समय बताएगा, लेकिन कांग्रेस की गैरमौजूदगी ने महाराष्ट्र की सियासी तस्वीर में शक्ति सामंजस्य और असमंजस्य दोनों को उजागर कर दिया है।;

Update: 2025-07-08 10:56 GMT

शनिवार को शिवसेना (UBT) प्रमुख उद्धव ठाकरे और महाराष्ट्र नव निर्माण सेना (MNS) अध्यक्ष राज ठाकरे दो दशक बाद सार्वजनिक पर एक-दूसरे से मिले। हालांकि, इस मिलन समारोह में कांग्रेस को भी आमंत्रित किया गया था। लेकिन कोई प्रतिनिधि नहीं पहुंचा। ऐसे में कांग्रेस की गैरमौजूदगी ने महा विकास अघाड़ी (MVA) में मतभेदों की अटकलों को हवा दे दी।

कांग्रेस क्यों रही दूर ठाकरे पुनर्मिलन से?

कांग्रेस को आमंत्रित जरूर किया गया था, लेकिन दिल्ली, महाराष्ट्र या मुंबई प्रदेश स्तर से कोई नेता मंच पर मौजूद नहीं था। इसके पीछे तीन कारण बताए जा रहे हैं:

1. राज ठाकरे के विभाजनकारी राजनीतिक अंदाज से असहजता।

2. मुंबई में प्रवासी मतदाताओं को नाराज करने का डर।

3. क्षेत्रीय और राष्ट्रीय रुझानों के बीच संतुलन बनाए रखने में कठिनाई।

MVA का ढांचा हिल सकता है?

विशेषकर कांग्रेस की नैया डगमगाने की आशंका है। भाजपा के एक‑भाषा‑एक‑राष्ट्र मॉडल से अलग, कांग्रेस का समावेशी और केंद्रीय नजरिया है—जो शिवसेना और MNS जैसी क्षेत्रीय भावनाओं पर आधारित पार्टियों से मेल नहीं खाता। भाजपा से अलग कांग्रेस भाषाई विविधता और संघवाद के हिमायती की पहचान रखती है। लेकिन जैसे-जैसे स्थानीय मुद्दे—जैसे हिंदी का प्रभुत्व या क्षेत्रीय भाषा को लेकर भावनाएं—गौरत्व प्राप्त करती हैं, कांग्रेस का ‘धारणा स्पष्ट नहीं होना’ मुश्किलें खड़ी कर रहा है।


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अन्य राज्यों में भी है यही दुविधा

तमिलनाडु में DMK और कर्नाटक में नव विकसित ‘कन्नड़-प्रथम’ रुझान उदय के कारण कांग्रेस को फिर वही चुनौती—भाषा पर अपना रुख सार्वजनिक रूप में स्पष्ट किए बिना संतुलन बनाए रखने का सामना करना पड़ रहा है। महाराष्ट्र में जैसे-जैसे नगर निगम और बिहार विधानसभा चुनाव नजदीक आते जा रहे हैं, प्रवासी-नागरिक मुद्दे पर कांग्रेस के मौन का असर नकारात्मक हो सकता है। ठहराव और अस्पष्टता से कांग्रेस का राष्ट्रीय और क्षेत्रीय संदेश धुंधला होता जा रहा है।

पुनर्मिलन कितना सफल रहा—यह तो समय बताएगा, लेकिन कांग्रेस की गैरमौजूदगी ने महाराष्ट्र की सियासी तस्वीर में शक्ति सामंजस्य और असमंजस्य दोनों को उजागर कर दिया है। आने वाले चुनाव और प्रदर्शन इस सियासी संतुलनतः गोलबंदी की परीक्षा लेने वाले हैं।

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