दिल्ली हाईकोर्ट : 'शारीरिक सम्बन्ध' का मतलब यौन उत्पीड़न कैसे? POCSO मामले का आरोपी बरी
दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा कि शारीरिक सम्बन्ध का मतलब यौन उत्पीड़न कैसे हुआ? इसे साबित करने के लिए पर्याप्त सबूत नहीं है, संदेह के लाभ के चलते आरोपी को बरी किया जाता है।;
By : Abhishek Rawat
Update: 2024-12-29 17:48 GMT
POCSO Case Accused Acquitted : दिल्ली उच्च न्यायालय ने POCSO अधिनियम के तहत दोषी ठहराए गए एक व्यक्ति को बरी कर दिया है। अदालत ने कहा कि नाबालिग पीड़िता द्वारा "शारीरिक संबंध" शब्द का इस्तेमाल करने का मतलब सीधे तौर पर यौन उत्पीड़न नहीं माना जा सकता।
न्यायमूर्ति प्रतिभा एम. सिंह और अमित शर्मा की खंडपीठ ने 23 दिसंबर को दिए अपने फैसले में आरोपी को बरी करने का आदेश दिया। अदालत ने कहा कि ट्रायल कोर्ट ने इस निष्कर्ष पर पहुंचने में तर्क और साक्ष्यों का समुचित विश्लेषण नहीं किया।
क्या कहा अदालत ने?
अदालत ने कहा, "सिर्फ यह तथ्य कि पीड़िता नाबालिग थी, यह साबित करने के लिए पर्याप्त नहीं है कि यौन उत्पीड़न हुआ था। पीड़िता ने 'शारीरिक संबंध' शब्द का इस्तेमाल किया, लेकिन इसका सटीक संदर्भ स्पष्ट नहीं है। इसे यौन उत्पीड़न या बलात्कार में बदलने के लिए ठोस साक्ष्य आवश्यक हैं।" अदालत ने कहा कि सिर्फ ये कहना की 'सम्बन्ध बनाया', इस बात के लिए पर्याप्त नहीं है कि वो POCSO अधिनियम की धारा 3 या IPC की धारा 376 के तहत अपराध को स्थापित कर पाए।
अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि POCSO अधिनियम के तहत सहमति का सवाल नहीं उठता, लेकिन केवल अनुमान के आधार पर अपराध तय नहीं किया जा सकता।
मामला क्या था?
मार्च 2017 में, एक महिला ने अपनी 14 वर्षीय बेटी के लापता होने की शिकायत दर्ज कराई थी। पुलिस ने नाबालिग को फरीदाबाद से आरोपी के साथ बरामद किया था। पुलिस के अनुसार नाबालिग ने बयान में ये कहा था कि उसके साथ सम्बन्ध बनाये गए, जिसके बाद आरोपी के खिलाफ POCSO के तहत मामला दर्ज किया गया, जिसमें यौन उत्पीड़न की धारा भी जोड़ी गयी। इस मामले में ट्रायल कोर्ट ने दिसंबर 2023 में आरोपी को दोषी ठहराते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई थी।
संदेह का लाभ
दिल्ली हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि संदेह का लाभ आरोपी को मिलना चाहिए। अदालत ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को "तर्कहीन" करार देते हुए रद्द कर दिया।