क्या कर्नाटक कांग्रेस में डीके शिवकुमार अब पड़ रहे हैं कमजोर?

सीएम सिद्धारमैया की व्यापक अपील और एससी, एसटी, ओबीसी और अल्पसंख्यक समुदायों के मजबूत समर्थन ने शिवकुमार के लिए व्यापक स्वीकृति हासिल करना मुश्किल बना दिया है।;

Update: 2025-03-28 01:47 GMT

DK Shivakumar News: कर्नाटक के हाई-प्रोफाइल उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार, जो मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के बाद राज्य के सबसे प्रभावशाली नेता माने जाते हैं, इस समय राजनीतिक मोर्चे पर कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं। उनके कमजोर पड़ने से कई राजनीतिक हलकों में चर्चा तेज हो गई है।

शक्ति और रणनीति से बनी पहचान

शिवकुमार ने अपने राजनीतिक प्रभाव को चतुर चुनावी रणनीति के जरिए मजबूत किया, जिससे उन्होंने अपने राजनीतिक विरोधियों को करारा झटका दिया और कांग्रेस हाईकमान का महत्वपूर्ण समर्थन हासिल किया। 2018 के राजनीतिक संकट के दौरान उन्होंने कांग्रेस विधायकों को भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के खरीद-फरोख्त प्रयासों से बचाकर खुद को पार्टी के संकटमोचक के रूप में स्थापित किया।

इसके अलावा, उन्होंने खुद को कांग्रेस में वोक्कालिगा समुदाय का चेहरा बनाया, जिससे पूर्व प्रधानमंत्री और जनता दल (सेक्युलर) के संस्थापक एचडी देवेगौड़ा की पुरानी मैसूर क्षेत्र में पकड़ कमजोर हुई। गांधी परिवार के प्रति उनकी अटूट निष्ठा ने उन्हें पार्टी नेतृत्व का भरोसेमंद चेहरा बना दिया, जबकि चुनावों में उनकी रणनीतिक पकड़ ने उन्हें कर्नाटक की राजनीति में अपरिहार्य बना दिया।

सरकार में महत्वपूर्ण पद

इन उपलब्धियों के चलते 2023 में जब कांग्रेस ने कर्नाटक में सत्ता में वापसी की, तो शिवकुमार मुख्यमंत्री पद के स्वाभाविक दावेदार बन गए थे। हालांकि, वरिष्ठ नेता सिद्धारमैया को प्राथमिकता दी गई और शिवकुमार को उपमुख्यमंत्री पद और कुछ महत्वपूर्ण मंत्रालयों से संतोष करना पड़ा। इससे उन्होंने सरकार में अपना प्रभाव बनाए रखा।

लेकिन अब आंतरिक विरोध और राजनीतिक गलतियों के कारण उनकी पकड़ कमजोर होती जा रही है। मुख्यमंत्री बनने की उनकी महत्वाकांक्षा ने कांग्रेस पार्टी में भी खींचतान पैदा कर दी है।

सिद्धारमैया बनाम शिवकुमार

सिद्धारमैया की व्यापक जनस्वीकृति और अनुसूचित जाति (SC), अनुसूचित जनजाति (ST), अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) और अल्पसंख्यक समुदायों के समर्थन ने शिवकुमार की स्वीकार्यता को सीमित कर दिया है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता—जिनमें SC, ST, OBC और यहां तक कि वोक्कालिगा समुदाय के नेता भी शामिल हैं—शिवकुमार की आक्रामक राजनीति का विरोध कर रहे हैं। उनका मानना है कि शिवकुमार पार्टी की बजाय अपनी व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा को आगे बढ़ा रहे हैं।

हालांकि, लिंगायत और SC/ST समुदायों के लिए दो और उपमुख्यमंत्री बनाए जाने की मांग उठी थी, लेकिन शिवकुमार ने अपनी स्थिति को बरकरार रखा और वे अब भी एकमात्र उपमुख्यमंत्री हैं।

सिद्धारमैया की पकड़ मजबूत

सिद्धारमैया के पास 80 से अधिक विधायकों का समर्थन है, जबकि शिवकुमार ने हाईकमान के साथ अपने संबंधों के जरिए अपनी स्थिति बनाए रखी। जब कांग्रेस ने सिद्धारमैया को मुख्यमंत्री पद सौंपा, तो कहा गया था कि वे 2.5 साल तक पद संभालेंगे और उसके बाद शिवकुमार को मौका मिलेगा। लेकिन सिद्धारमैया के समर्थकों ने लगातार पूरे पांच साल तक उनके मुख्यमंत्री बने रहने की मांग उठाई।

अंदरूनी कलह और आरोप

इससे शिवकुमार को पार्टी नेतृत्व से अपनी दावेदारी के लिए दबाव बनाना पड़ा, जिससे कांग्रेस के अंदर दो खेमे बन गए।इसके अलावा, शिवकुमार पर कई आरोप भी लगे हैं। कांग्रेस के अंदर ही उनके विरोधियों ने मैसूरु MUDA घोटाले के उजागर होने के लिए उन्हें जिम्मेदार ठहराया, जिसमें अवैध भूमि सौदों का मामला था। इस घोटाले ने सिद्धारमैया की प्रतिष्ठा को गहरा धक्का पहुंचाया, क्योंकि राज्यपाल ने उनके खिलाफ मामला दर्ज करने की मंजूरी दी—उनके राजनीतिक करियर में यह पहला बड़ा मामला था।

हनी ट्रैप का मामला

जब सिद्धारमैया इस कानूनी लड़ाई में उलझे हुए थे और धीरे-धीरे इससे उबर रहे थे, तब उनके एक करीबी सहयोगी को हनी ट्रैप मामले का सामना करना पड़ा। मंत्री केएन राजन्ना, जो सिद्धारमैया के करीबी माने जाते हैं, ने खुलकर कहा कि उन्हें फंसाने की साजिश रची गई थी।

रिपोर्टों के अनुसार, जिस गिरोह ने राजन्ना को फंसाने की कोशिश की, वही 48 अन्य मामलों में भी शामिल था। इससे कांग्रेस में संदेह पैदा हुआ कि शिवकुमार का इसमें कोई हाथ हो सकता है। जब मीडिया ने उनसे सवाल पूछा, तो उन्होंने जवाब दिया, "वे आपको तभी नमस्ते करेंगे, जब आप उन्हें नमस्ते करेंगे," जिससे और अटकलें लगने लगीं।

जारकीहोली विवाद

कर्नाटक कांग्रेस में अनिश्चितता का माहौल तब और गहरा गया जब पार्टी कार्यकर्ताओं और नेताओं ने शिवकुमार की भूमिका पर सवाल उठाने शुरू कर दिए।एक अन्य विवाद में, शिवकुमार और राकेश जारकीहोली के बीच पुरानी दुश्मनी फिर से चर्चा में आ गई। जारकीहोली, जो 2019 में कांग्रेस-जेडीएस सरकार गिराने में अहम भूमिका निभा चुके थे, हनी ट्रैप विवाद में फंसे थे। उनके खिलाफ वीडियो लीक होने के बाद उन्होंने बीजेपी सरकार में मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया।

अब यह खबर आई कि वही टीम, जिसने जारकीहोली को हनी ट्रैप में फंसाया था, मंत्री राजन्ना को फंसाने की भी कोशिश कर रही थी। इससे कांग्रेस के भीतर संदेह बढ़ गया कि शिवकुमार कहीं इस साजिश में शामिल तो नहीं थे।

कुमारस्वामी के आरोप

जेडीएस नेता और पूर्व मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी ने भी शिवकुमार पर प्रज्वल रेवन्ना (देवेगौड़ा के पोते) को गिराने की साजिश रचने का आरोप लगाया। देवेगौड़ा परिवार और शिवकुमार लंबे समय से प्रतिद्वंद्वी रहे हैं, दोनों व्यक्तिगत और राजनीतिक रूप से आमने-सामने रहते हैं।

संविधान संशोधन विवाद

शिवकुमार का हालिया बयान, जिसमें उन्होंने मुस्लिमों को 4% आरक्षण देने के लिए संविधान संशोधन की बात की थी, ने राष्ट्रीय स्तर पर भारी विवाद खड़ा कर दिया। कांग्रेस लंबे समय से बीजेपी पर "संविधान विरोधी" होने का आरोप लगाती रही है, लेकिन शिवकुमार के बयान ने पार्टी को असहज स्थिति में डाल दिया।

विरोधियों की एकजुटता

अब ऐसा लग रहा है कि कर्नाटक में शिवकुमार के खिलाफ राजनीतिक विरोधी एकजुट हो रहे हैं।बुधवार को मंत्री सतीश जारकीहोली ने एचडी देवेगौड़ा से मुलाकात की और शिवकुमार के खिलाफ अपनी चिंताओं को साझा किया। इसके अलावा, जी परमेश्वर की एचडी कुमारस्वामी से मुलाकात ने भी शिवकुमार की परेशानी बढ़ा दी।

विशेष रूप से, परमेश्वर और जारकीहोली दोनों ही सिद्धारमैया के करीबी माने जाते हैं, जिससे यह घटनाक्रम और भी महत्वपूर्ण हो जाता है। देवेगौड़ा और कुमारस्वामी अब बीजेपी के साथ गठबंधन में हैं, जिससे शिवकुमार की स्थिति और भी कमजोर होती दिख रही है।

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