चुनाव से पहले स्टालिन की परिसीमन पहल, DMK को मिलेगा फायदा?

DMK का यह कदम 2026 में उसे चुनावी लाभ देगा या नहीं, यह एक बड़ा सवाल है. क्या अन्य दल इस मुद्दे का सही तरीके से फायदा उठाने में असफल रहे हैं.;

Update: 2025-03-21 17:32 GMT

साल 2026 के तमिलनाडु विधानसभा चुनावों से पहले DMK ने परिसीमन को एक तकनीकी मुद्दे से बढ़ाकर महत्वपूर्ण राजनीतिक उपकरण बना दिया है. इस मुद्दे को लेकर कांग्रेस और क्षेत्रीय दल जैसे AIADMK संघर्ष कर रहे हैं. जबकि मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के नेतृत्व में DMK ने इसे तमिलनाडु की संसद सीटों के नुकसान से जोड़कर राजनीतिक चर्चा में प्रमुख बना लिया है. इस रणनीति ने DMK को राज्य के हितों का रक्षक और एक प्रभावी राजनीतिक ताकत के रूप में प्रस्तुत करने का मौका दिया है.

DMK का यह कदम 2026 में उसे चुनावी लाभ देगा या नहीं, यह एक बड़ा सवाल है. क्या अन्य दल इस मुद्दे का सही तरीके से फायदा उठाने में असफल रहे हैं. जबकि परिसीमन में चुनावी लाभ की काफी संभावना छिपी हुई है? 22 मार्च को स्टालिन सरकार ने चेन्नई में मुख्यमंत्री और राजनीतिक नेताओं की एक महत्वपूर्ण बैठक का आयोजन किया, जिसमें गैर बीजेपी पार्टियों और दक्षिणी राज्य सरकारों को केंद्र द्वारा प्रस्तावित परिसीमन के खिलाफ एकजुट किया गया. यह बैठक 5 मार्च को आयोजित सभी पार्टी बैठक का अनुसरण करती है, जिसमें स्टालिन ने तमिलनाडु की संसद सीटों के प्रतिनिधित्व को बचाने का आह्वान किया था. स्टालिन की यह पहल न केवल क्षेत्रीय राजनीति से बाहर निकलकर भारत भर में विपक्षी दलों को एकजुट करने की दिशा में है, बल्कि DMK के संघवाद के प्रति समर्थन को भी पुष्ट करती है, जो 2026 के तमिलनाडु चुनावों के लिए महत्वपूर्ण है. यह निर्णय तात्कालिक नहीं था; DMK ने 2024 में इस मुद्दे को संसद और पार्टी चर्चाओं में उठाया था, इसे राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) और वित्तीय वितरण जैसे मुद्दों से भी जोड़ा.

मद्रास विश्वविद्यालय के राजनीति और सार्वजनिक प्रशासन विभाग के पूर्व प्रमुख रामु मणिवन्नन ने द फेडरल से कहा कि स्टालिन ने परिसीमन के भावनात्मक प्रभाव को जल्दी समझ लिया. उन्होंने एक तकनीकी मुद्दे को तमिलों के लिए एक बड़े मुद्दे में बदल दिया.

DMK की रणनीति

DMK ने परिसीमन के मुद्दे को प्रमुख बनाने के लिए कई जनसभाएं आयोजित कीं, सोशल मीडिया अभियानों का सहारा लिया और गैर-बीजेपी मुख्यमंत्री से संपर्क किया. मार्च 10 तक सात मुख्यमंत्री स्टालिन से पत्र प्राप्त कर चुके थे. जबकि कांग्रेस ने इस मुद्दे पर हिचकिचाहट दिखाई और बीजेपी ने "कोई सीट नुकसान नहीं" का दावा किया, DMK की सक्रिय रणनीति ने उसे चर्चा का केंद्र बना दिया. जबकि उसके प्रतिस्पर्धी इसका सामना करने में संघर्ष कर रहे थे.

चुनावी लाभ

क्या परिसीमन का मुद्दा DMK को 2026 में लगातार दूसरी बार जीत दिलाएगा? राजनीतिक विश्लेषक इस सवाल पर गहराई से विचार कर रहे हैं और उनका मानना है कि इसका तर्क है. साल 2024 के लोकसभा चुनावों में DMK ने तमिलनाडु में सभी 39 सीटों पर जीत हासिल की और 2021 में विधानसभा चुनाव में 133 सीटों के साथ सफलता पाई. हालांकि, सत्ता में पांच साल बाद एंटी-इंकंबेंसी का खतरा हमेशा बना रहता है. परिसीमन को बीजेपी के नेतृत्व में तमिलनाडु के खिलाफ एक हमले के रूप में प्रस्तुत करने से DMK ने द्रविड़ पहचान और नई दिल्ली के प्रति विरोध भावना का लाभ उठाया है, जो इसके पिछले चुनावी सफलताओं में महत्वपूर्ण कारक रहे हैं.

मणिवन्न ने कहा कि बीजेपी DMK के खिलाफ एक रुख अपना रही है. इसलिए DMK क्यों अपनी रणनीति बदलने लगेगा? DMK तो बीजेपी की कार्रवाई पर प्रतिक्रिया कर रहा है और संसद में वह बीजेपी का प्रमुख प्रतिद्वंद्वी बन चुका है.

गठबंधन की रणनीति

साल 2026 में DMK का सामना एक सशक्त AIADMK, बढ़ते हुए बीजेपी और अभिनेता विजय के नेतृत्व वाले नए दल तमिलगा वेत्त्री कझगम (TVK) से होगा. जनमत सर्वेक्षणों के अनुसार, परिसीमन का मुद्दा तमिलनाडु में गहरे प्रभाव में है. क्योंकि मतदाता उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्यों के लिए अपनी राजनीतिक शक्ति खोने के बारे में चिंतित हैं, जो 50-70 लोकसभा सीटें प्राप्त करने की संभावना रखते हैं. कांग्रेस, VCK और वामपंथी दलों के साथ गठबंधन DMK को 2021 के चुनाव में प्राप्त 40 प्रतिशत वोट शेयर को बनाए रखने में मदद कर सकता है, खासकर अगर वह बीजेपी को एक बड़े खतरे के रूप में प्रस्तुत करने में सफल होता है. हालांकि, चुनौती यह है कि यदि इस मुद्दे पर अत्यधिक ध्यान केंद्रित किया गया तो यह इंडिया गठबंधन के उत्तरदलों को नाराज कर सकता है और TVK के साथ विभाजित चुनाव में वोटों का बंटवारा हो सकता है.

AIADMK का रुख

AIADMK ने ऐतिहासिक रूप से तमिलनाडु की संसद सीटों की रक्षा की है. खासकर जब मुख्यमंत्री जे. जयललिता ने 2002 में परिसीमन के स्थगन का समर्थन किया था. लेकिन एडप्पादी के पलानीस्वामी (EPS) के नेतृत्व में पार्टी ने एक निष्क्रिय रुख अपनाया है. मार्च 5 की बैठक में उनकी भागीदारी से यह संकेत मिलता है कि वे 39 सीटों को बनाए रखने के समर्थन में हैं. लेकिन DMK को "अवसरवादी" कहने वाली उनकी आलोचना में कोई ठोस तर्क नहीं था. एक विश्लेषक ने कहा कि AIADMK कठिन स्थिति में है. वह तमिल हितों का विरोध नहीं कर सकती. लेकिन उसके पास नेतृत्व की दृढ़ता नहीं है. 2024 में AIADMK का खराब प्रदर्शन, जिसमें उसे सिर्फ 20 प्रतिशत वोट मिले, ने उसकी संगठनात्मक ताकत को कमजोर कर दिया है, जिससे वह DMK के मुकाबले पीछे रह गया है.

कांग्रेस की स्थिति

कांग्रेस ने परिसीमन के मुद्दे पर स्पष्टता नहीं दिखाई. कभी इस मुद्दे पर प्रमुख भूमिका निभाने वाली कांग्रेस आज इसे क्षेत्रीय पार्टियों के साथ चर्चा में छोड़ देती है. तमिलनाडु कांग्रेस के नेताओं ने मार्च 5 की बैठक में भाग लिया. लेकिन सांसद मणिकम तागोर ने स्वीकार किया कि कांग्रेस "राष्ट्रीय नीति" का इंतजार कर रही है, जो DMK को बढ़त दे रही है. कांग्रेस उत्तर-दक्षिण विभाजन की राजनीति को सही से नहीं समझ पा रही, जिससे उसकी स्थिति कमजोर हुई है. आज कांग्रेस एक विचारधारात्मक संकट और नेतृत्व की कमी से जूझ रही है, जैसा कि मणिवन्नन ने कहा.

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