गुजरात पुलिस की 'एंटी नेशनल' लिस्ट बनी मुसलमानों के लिए नई परेशानी

DGP के आदेश के बाद, गुजरात पुलिस ने 31,834 लोगों की जानकारी अपडेट की, जिनमें ज़्यादातर मुस्लिम हैं, जिनमें आतंक के आरोपों से बरी हुए लोग भी शामिल हैं, जिससे समुदायों में डर फैल रहा है।

Update: 2025-11-24 17:29 GMT

Gujarat Police And Muslims : 20 साल तक आतंकवाद के आरोप झेलने और 2021 में अदालत से बरी होने के बाद मोहम्मद आसिफ ने सोचा था कि अब उनकी ज़िंदगी पटरी पर लौट आएगी। लेकिन 21 नवंबर 2024 की सुबह जब पुलिस फिर से उनके दरवाज़े पर पहुंची, तो 20 साल पुरानी दहशत फिर लौट आई।

“दरवाज़ा खोला तो पुलिस खड़ी थी… मैं डर के मारे ठिठक गया,” आसिफ ने द फ़ेडरल से बात करते हुए कहा। “उन्होंने कहा यह सिर्फ़ ‘रूटीन चेक’ है, लेकिन हमारे लिए इसमें कुछ भी रूटीन नहीं है। मेरा नाम, पता, परिवार के नाम—सब नोट कर गए। अब फिर वही डर है कि कहीं फिर से वही सब न शुरू हो जाए।”

20 साल पहले लगी UAPA की चोट आज भी नहीं भरी

आसिफ कॉलेज में थे, पत्रकार बनने का सपना, जल्द शादी तभी एक सेमिनार से 125 लोगों के साथ पुलिस ने उन्हें उठा लिया। उन पर UAPA की कई धाराएँ लगा दी गईं और SIMI से जुड़े होने का आरोप लगाया गया। 2008 में जमानत मिली, लेकिन पुलिस का आना-जाना कभी बंद नहीं हुआ। आसिफ बताते हैं कि पुलिस बिना बताए कभी भी आ जाति थी … मेरे परिवार को परेशान करती थी। किसी तरह मसाले बेचकर जीवन शुरू किया, शादी की। लेकिन अब फिर डराने आ गए।
आसिफ के अनुसार, अदालत से बरी होने के बावजूद उनका नाम ‘एंटी-नेशनल्स’ की सूची में डाल दिया गया है।

पूरे गुजरात में दहशत घर-घर जाकर पुलिस कर रही है पुराने मामलों की जांच

आसिफ अकेले नहीं हैं। अहमदाबाद के जुहापुरा और सूरत के रांदर में जहाँ मुस्लिम आबादी अधिक है, पुलिस घर-घर जाकर उन लोगों का डेटा इकट्ठा कर रही है जो कभी SIMI या 2008 अहमदाबाद ब्लास्ट केस में आरोपी रहे, संदेह के घेरे में थे, या अदालत से बरी हो चुके हैं।

सूरत के रांदर के एक शख्स, जो 20 साल जेल में रहने के बाद 2021 में बरी हुए, कहते हैं कि मैं गिन भी नहीं सकता कितनी बार पुलिस हमारे घर आई है। वजह हर बार बदल जाती है, लेकिन निशाना हम ही रहते हैं। इस बार तो पुलिस मेरे रिश्तेदारों तक पहुंच गई… सबके फिंगरप्रिंट लिए, डेटा लिया। सिर्फ इसलिए कि मैं कभी एक केस में आरोपी था!

DGP का आदेश: 30 साल के ‘एंटी-नेशनल्स’ की सूची बनाओ

गुजरात पुलिस की यह कार्रवाई दरअसल DGP विकास सहाय के आदेश के बाद शुरू हुई।
आदेश के अनुसार पिछले 30 साल में जिन लोगों पर आतंकी गतिविधियों, UAPA, POTA, TADA, NDPS, हथियार मामले, फर्जी करेंसी जैसे अपराधों में किसी भी स्तर पर आरोप लगे,चाहे वे गिरफ्तार हुए हों, संदेह में हों, आरोपी हों, दोषी हों, बरी हो चुके हों। सभी की वार्षिक सूची तैयार की जाएगी, और उनके परिवारों, रिश्तेदारों तक का डेटा जुटाया जाएगा।

ATS के एक अधिकारी के अनुसार सूची में ज्यादातर नाम मुस्लिम समुदाय के हैं… हमें हर एक डीटेल अपडेट करनी है परिवार, रिश्तेदार, पुराने केस, फिंगरप्रिंट सब।

DGP के अनुसार अब तक 31,834 नाम अपडेट किए जा चुके हैं, इनमें से 11,880 लोग राज्य में मौजूद हैं, 2,326 की मौत हो चुकी है, 1,180 जेल में हैं और 4,506 गुजरात छोड़कर जा चुके हैं।

कानूनी विशेषज्ञ: यह संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन है

अहमदाबाद के वकील शमशाद पठान के अनुसार जुहापुरा में 16–17 साल के लड़कों तक के फिंगरप्रिंट लिए गए। यह सिर्फ़ अपराधियों का डेटा नहीं है, यह उन परिवारों का भी है जो अदालत से बरी हो चुके हैं। यह सीधा-सीधा उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।

पठान का कहना है कि पुलिस इसे ‘प्रिवेंटिव’ बता रही है, लेकिन लोगों में डर फैल गया है। आगे क्या कदम उठेगा किसी को नहीं पता।

डर से दहली हुई ज़िंदगियाँ: ‘हम कितनी बार अपनी बेगुनाही साबित करें?’

सवाल अब यह है कि ऐसे लोग, जो अदालत से पूरी तरह निर्दोष साबित हो चुके हैं, वे कब तक अपनी बेगुनाही का बोझ ढोते रहेंगे? कब तक उनका आधी रात को दरवाज़ा खटखटाती पुलिस से डरना जारी रहेगा?
और सबसे बड़ा सवाल क्या कोई भी सरकार किसी पूरे समुदाय को शक की निगाह से देखने का अधिकार रखती है?


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