IIWC: जहां विरासत, विचार और विविधता मिलते हैं एक साथ
बेंगलुरु स्थित भारतीय विश्व संस्कृति संस्थान (IIWC) 80 वर्षों से कला, साहित्य और मानवता को समर्पित सांस्कृतिक केंद्र के रूप में विश्वभर में विशिष्ट स्थान रखता है।;
पुराने बेंगलुरुवासियों के लिए अपनी शांत, सुंदर और सुरम्य शहर की बदली हुई, तेज़ और शोरगुल वाली तस्वीर को स्वीकार करना आसान नहीं है। शहर की पुरानी इमारतों और कुछ झीलों के अलावा अब कुछ ही चिन्ह बचे हैं जो पुराने बेंगलुरु की याद दिलाते हैं। लेकिन इसी बदलती दुनिया में एक ऐसा सांस्कृतिक केंद्र अब भी कायम है, जिसकी जड़ें द्वितीय विश्व युद्ध के दौर से जुड़ी हैं भारतीय विश्व संस्कृति संस्थान (IIWC)।
इतिहास की गोद में बसा संस्थान
बेंगलुरु के दक्षिण में बसे बसवनगुड़ी में बीपी वाडिया रोड पर एम.एन. कृष्णा राव पार्क के पास स्थित IIWC, इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एंड कल्चरल हेरिटेज (INTACH) द्वारा एक धरोहर भवन घोषित किया गया है। अब यह संस्था अपने 80वें वर्ष में प्रवेश करने जा रही है। आज भी इसकी लोकप्रियता बरकरार है, जहां लोग इसकी विशाल पुस्तकालय, कला दीर्घा और सभागार की शांतिपूर्ण आभा से खिंचे चले आते हैं।
संस्थापक बी.पी. वाडिया का सपना
IIWC की स्थापना 11 अगस्त 1945 को बहमनजी पेस्टनजी वाडिया (बी.पी. वाडिया) ने की थी, जो एक राष्ट्रवादी नेता, थियोसॉफिस्ट और श्रमिक कार्यकर्ता थे। जापान के आत्मसमर्पण के साथ द्वितीय विश्व युद्ध समाप्त होने पर वाडिया ने वैश्विक शांति की ओर कदम बढ़ाने का निश्चय किया और बेंगलुरु में एक सांस्कृतिक केंद्र की नींव रखी।
बी.पी. वाडिया ने अपने जीवन की दिशा बदलते हुए 1904 में टेक्सटाइल व्यापार छोड़कर थियोसोफिकल सोसायटी से जुड़ाव बढ़ाया और चेन्नई जाकर थियोसॉफिकल पब्लिशिंग हाउस का संचालन किया। उनकी पत्नी सोफिया वाडिया, जो कोलंबिया से थीं, भी इस उद्देश्य में उनके साथ थीं।
संस्था की स्थापना और उद्देश्य
वाडिया ने IIWC की स्थापना United Lodge of Theosophists के अंतर्गत एक ऐसे सांस्कृतिक मंच के रूप में की जहाँ आम नागरिकों को मानवता और वैश्विक समझ के मूल्यों पर आधारित जीवन शैली विकसित करने का अवसर मिले। 1957 में संस्था को विधिवत रूप से भारतीय विश्व संस्कृति संस्थान के रूप में पंजीकृत किया गया।
सांस्कृतिक समरसता का केंद्र
पूर्व गवर्नर जनरल सी. राजगोपालाचारी ने 1966 में IIWC में दिए एक व्याख्यान में कहा था कि यह संस्था न केवल भारतीय संस्कृति की सेवा करती है, बल्कि वैश्विक संस्कृति को समर्पित है और सांस्कृतिक विविधताओं में छिपी एकता को उजागर करती है। IIWC ने शुरुआती वर्षों में एक कॉस्मोपॉलिटन हॉस्टल भी शुरू किया था William Quan Judge Cosmopolitan Home जहां विभिन्न धर्म, जाति और राष्ट्रों से आए छात्र रहते थे। यह हॉस्टल 1969 में बंद कर दिया गया।
संस्थान का सुनहरा इतिहास और दिग्गज अतिथि
IIWC के इतिहास में कई नामचीन हस्तियों ने शिरकत की है मार्टिन लूथर किंग जूनियर, रविशंकर, सी.वी. रमन, विक्रम साराभाई, सर्वपल्ली राधाकृष्णन, पंचेन लामा आदि। Sophiya TenBroeck, जो 1960 के दशक में कार्यकारिणी समिति की सदस्य थीं, ने याद किया कि किस तरह रविशंकर का कार्यक्रम रात 12 बजे तक चला और दर्शक मंत्रमुग्ध हो गए।
बौद्धिक और सांस्कृतिक विरासत
संस्थान में अब तक 3,300 से अधिक व्याख्यान, 3,700 संगीत प्रस्तुतियाँ, 2,900 नृत्य प्रस्तुतियां और 1,150 से अधिक फिल्मों का प्रदर्शन किया गया है। IIWC की लाइब्रेरी, जिसकी शुरुआत 1947 में 4,200 पुस्तकों से हुई थी, अब 1 लाख से अधिक पुस्तकों का संग्रह बन चुकी है यह देश की सबसे बड़ी सार्वजनिक उपयोग की निजी पुस्तकालयों में से एक है।
लाइब्रेरी की प्रमुख रुक्मिणी कुमार बताती हैं कि संग्रह में A Survey of Persian Art (1939) से लेकर शेक्सपीयर सॉनेट्स और नेशनल जियोग्राफिक के 1916 के अंक तक शामिल हैं। डॉ. के. टी. बहनन जैसे दानदाताओं ने इसमें 4,000 महत्वपूर्ण ग्रंथ भेंट किए हैं।
कला दीर्घा और भविष्य की योजना
हाल के वर्षों में IIWC में एक आकर्षक आर्ट गैलरी भी जोड़ी गई है, जिसमें एस.जी. वासुदेव जैसे प्रतिष्ठित कलाकारों की प्रदर्शनियाँ लगी हैं। संस्थान के अध्यक्ष टी.एस. सत्यवती बताती हैं कि साल भर में लगभग 300 कार्यक्रम आयोजित होते हैं और आने वाले समय में दो नए ऑडिटोरियम, बहुउपयोगी स्थल और पुस्तकालय के संरक्षण की योजनाएँ हैं।संस्था IGNCA, ललित कला अकादमी, ICCR और बेंगलुरु इंटरनेशनल सेंटर जैसी संस्थाओं के साथ मिलकर विभिन्न सांस्कृतिक गतिविधियाँ कर रही है।
80 वर्षों का उत्सव और आगे की दिशा
80वें वर्ष में Eighty-80X10 नामक उत्सव आयोजित किया जा रहा है, जिसमें फिल्म महोत्सव, नाटक, संगीत-नृत्य प्रदर्शनियां, व्याख्यान और पुस्तक प्रकाशन शामिल होंगे।डॉ. रममणि जैसे वरिष्ठ नागरिकों के लिए यह संस्था “मानवता का प्रतीक” बन चुकी है एक ऐसी शांतिपूर्ण जगह जहाँ वे आत्मिक पोषण पाते हैं।
भारतीय विश्व संस्कृति संस्थान केवल एक भवन या संस्था नहीं, बल्कि एक विचार है एकता में विविधता, मानवता की सेवा और वैश्विक सांस्कृतिक समरसता का प्रतीक। यह संस्थान अगले 80 वर्षों में न केवल अपनी विरासत को जीवित रखेगा, बल्कि आने वाली पीढ़ियों को वैश्विक दृष्टिकोण से जोड़ने की प्रेरणा देता रहेगा।