म्यांमार के कचिन में हालात बदले, भारत का दुर्लभ पृथ्वी खनन योजना रुकी
भारत का कचिन दुर्लभ पृथ्वी खनन योजना स्थानीय परिस्थितियों और KIA-सैन्य संघर्ष के कारण प्रभावित, मिजोरम रेल कड़ी से रणनीतिक कनेक्टिविटी जारी।
भारत, म्यांमार के कचिन राज्य में स्थित दुर्लभ पृथ्वी (Rare Earth) खनिज क्षेत्रों तक पहुँचने के प्रयास स्थानीय परिस्थितियों में बदलाव के कारण फिलहाल रुके हुए हैं। इसके बावजूद नई दिल्ली, आयात और लॉजिस्टिक्स सुगम बनाने के लिए कनेक्टिविटी बढ़ाने के अपने लक्ष्यों के प्रति प्रतिबद्ध है।
मिजोरम में नई रेल कड़ी
म्यांमार से सटे मिजोरम में सैरांग तक भारत की नई रेल कड़ी को रणनीतिक इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट के रूप में देखा जा रहा है, जो भारत को पड़ोसी देश के खनिज-समृद्ध क्षेत्रों के करीब ला सकती है। 13 सितंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा उद्घाटन किए गए बैराबी–सैरांग रेलवे लाइन को और 223 किमी बढ़ाकर ह्मावंगबुचुआह तक पहुँचाया जाएगा। यह छोटा बॉर्डर शहर भारत के उत्तर-पूर्वी क्षेत्र को म्यांमार के कालाडान मल्टीमोडल ट्रांजिट ट्रांसपोर्ट (KMTT) प्रोजेक्ट से सड़क मार्ग से जोड़ेगा और उत्तर-पूर्वी भारत को सीतवे बंदरगाह (Rakhine, म्यांमार) तक रणनीतिक पहुंच देगा।
हालांकि, कचिन में खनन क्षेत्रों से बड़ी मात्रा में दुर्लभ पृथ्वी खनिज भारत तक पहुँचाने में रोड या रेल कनेक्शन की कमी इसे सीमित कर सकती है।
दुर्लभ रेयर अर्थ मेटल
दुर्लभ पृथ्वी तत्वों में 17 धातुएं शामिल हैं, जैसे लैंथेनाइड्स, स्कैंडियम और यट्रियम, जो हाई-परफॉर्मेंस मैग्नेट, इलेक्ट्रिक वाहन बैटरी, पवन टरबाइन और इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों में आवश्यक हैं। विशेष रूप से डिसप्रोशियम और टर्बियम जैसी भारी दुर्लभ पृथ्वी तत्वें उच्च शक्ति वाले स्थायी मैग्नेट के निर्माण में अहम हैं। कचिन में खनन मुख्य रूप से इन्हीं भारी दुर्लभ पृथ्वी तत्वों पर केंद्रित है।
सिल्वेल रोड का विकल्प
एक संभावित विकल्प इतिहासिक सिल्वेल रोड को पुनः खोलना था। यह द्वितीय विश्व युद्ध कालीन मार्ग असम के लेडो से अरुणाचल प्रदेश के पंगसाउ पास होकर म्यांमार के म्यिटक्यिना और भामो होते हुए चीन तक जाता है। लेडो रेलवे हेड से जुड़ा है और लेडो-भामो दूरी लगभग 620 किमी है।
कचिन तक पहुंचने का दूसरा विकल्प मणिपुर के मोरेह के जरिए है। जिरिबाम-इंफाल रेल लिंक मार्च 2028 तक चालू होने की संभावना है, जबकि मोरेह तक विस्तार केवल योजना चरण में है। फिलहाल भारत ने सिल्वेल रोड को पुनर्जीवित करने का निर्णय नहीं लिया है।
भू-राजनीतिक महत्व
कचिन के दुर्लभ पृथ्वी भंडार का महत्व चीन, भारत और अमेरिका की बढ़ती भू-राजनीतिक रुचि के कारण बढ़ गया है। चीन इन खनिजों पर अपनी पकड़ बनाए रखना चाहता है, जबकि भारत और अमेरिका इन पर ध्यान देकर बीजिंग पर निर्भरता कम करना चाहते हैं।पिछले वर्ष के व्यापार आंकड़े दिखाते हैं कि चीन के दुर्लभ पृथ्वी आयात का लगभग 57% म्यांमार से हुआ था।
कचिन में खनन और भारतीय पहल
जून में भारतीय खनन मंत्रालय ने मुम्बई स्थित सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी इंडियन रेयर अर्थ्स लिमिटेड और हैदराबाद की मिडवेस्ट एडवांस्ड मैटेरियल्स प्राइवेट लिमिटेड को कचिन खानों से नमूने लाने और उनकी गुणवत्ता तथा मात्रा का आकलन करने का काम सौंपा। ये खनन क्षेत्र फिलहाल कचिन इंडिपेंडेंस आर्मी (KIA) के नियंत्रण में हैं।
कचिन में खनन मुख्य रूप से डिसप्रोशियम और टर्बियम पर केंद्रित है, जो इलेक्ट्रिक वाहनों और पवन टरबाइन में उच्च शक्ति वाले स्थायी मैग्नेट बनाने के लिए जरूरी हैं। खनन स्थल मुख्यतः चिपवे और पंगवा के आसपास स्थित हैं, जो चीन की सीमा के करीब हैं, तथा न्हकवंग पा क्षेत्र में भी खनन गतिविधि होती है।
योजना में बाधा
हालांकि भारत और KIA के बीच कुछ "सार्थक" चर्चा हुई, म्यांमार की सैन्य सरकार द्वारा कचिन में KIA नियंत्रित दुर्लभ पृथ्वी और जेड क्षेत्रों पर आक्रमण ने योजना को प्रभावित किया। KIA प्रवक्ता नव बू ने मीडिया को बताया कि सैन्य सरकार ‘स्पेशल रीजन-1’ पर कब्ज़ा करने की योजना बना रही है, जो चिपवे, त्सावलाव, पंगवा, कंपीकेटी और वैंगमॉव नगरों को शामिल करता है।भारत फिलहाल कचिन में युद्ध स्थिति पर नजर रख रहा है, लेकिन सरकार-से-सरकार समझौते के जरिए भी दुर्लभ पृथ्वी खनन को आगे बढ़ाने के लिए खुला है।