बिहार अब होगा स्पेशल! जानें, विशेष श्रेणी-विशेष राज्य में क्या है फर्क

बिहार के नेता विशेष श्रेणी राज्य की मांग पहले से करते रहे हैं, लेकिन NDA में बने समीकरण के बाद जेडीयू नेताओं को लगता है कि अब उनकी मुंहमांगी मुराद पूरी हो सकती है.

By :  Lalit Rai
Update: 2024-06-07 02:21 GMT

What is Special Category Status:  बिहार अब स्पेशल क्यों हो सकता है. यह सवाल आपके भी मन में उठ रहे होंगे. दरअसल आम चुनाव 2024 के नतीजों के बाद जिस तरह से सत्ता की कुंजी जेडीयू के हाथ में आई है उसके बाद से अब इस विषय की गूंज सियासी गलियारों में सुनाई देने लगी है. जेडीयू के नेता इस बात पर बल दे रहे हैं कि अब बिहार को स्पेशल स्टेटस देना चाहिए. नीतीश कुमार की अध्यक्षता वाली बिहार कैबिनेट ने पिछले साल एक प्रस्ताव भी पारित किया था, जिसमें केंद्र से राज्य को विशेष राज्य का दर्जा देने का अनुरोध किया गया था.केंद्र ने पहले कहा था कि वह 14वें वित्त आयोग की सिफारिश के मद्देनजर किसी भी राज्य की "विशेष श्रेणी के दर्जे" की मांग पर विचार नहीं करेगा. एससीएस की शुरुआत 1969 में पहाड़ी इलाकों, रणनीतिक अंतरराष्ट्रीय सीमाओं और आर्थिक और बुनियादी ढांचे के पिछड़ेपन वाले कुछ पिछड़े राज्यों को लाभ पहुंचाने के लिए की गई थी.

जेडीयू नेताओं की मांग
जेडी(यू) के वरिष्ठ नेता और बिहार के मंत्री विजय कुमार चौधरी का कहना है कि जेडी(यू) एनडीए का हिस्सा है और इसके साथ ही रहेगा. लेकिन जेडी (यू) की बिहार की वित्तीय स्थिति और अर्थव्यवस्था से जुड़ी कुछ मांगें हैं जिन्हें केंद्र को पूरा करना चाहिए. बिहार के लिए विशेष श्रेणी के दर्जे की हमारी मांग पूरी तरह से जायज है और इसे पूरा किया जाना चाहिए.हम बिहार के लिए एससीएस की अपनी मांग पर कायम हैं.बिहार सरकार 2011-12 से राज्य के लिए एससीएस की मांग कर रही है. इससे पहले, बिहार विधानमंडल के दोनों सदनों द्वारा इस संबंध में एक प्रस्ताव पारित किया गया था.बिहार सबसे योग्य राज्य है जिसे केंद्र से विशेष वित्तीय सहायता की आवश्यकता है.

क्या है विशेष श्रेणी

विशेषज्ञों के अनुसार विशेष श्रेणी का दर्जा प्राप्त करने से राज्यों को कुछ राजकोषीय और कर लाभ प्राप्त करने में मदद मिलती है, जिसका उद्देश्य उन्हें कुछ भौगोलिक और सामाजिक-आर्थिक प्रतिकूलताओं के बावजूद निवेश आकर्षित करने और आर्थिक विकास को बढ़ावा देने में मदद करना है.एससीएस के तहत केंद्र सरकार अपनी प्रायोजित योजनाओं के लिए 90 प्रतिशत धनराशि उपलब्ध कराती है। अन्य राज्य जो इस श्रेणी में नहीं आते हैं.उन्हें केंद्र से 60 से 70 प्रतिशत धनराशि मिलती है.जबकि शेष धनराशि का प्रबंधन उन्हें अपने वित्त से करना पड़ता है. इन राज्यों को उत्पाद शुल्क और सीमा शुल्क,आयकर और कॉर्पोरेट कर पर सब्सिडी भी मिलती है.

क्या होता है विशेष राज्य
संविधान में मूल तौर पर स्पेशल कैटिगरी स्टेटस का जिक्र नहीं था. हालांकि 1969 में पांचवें वित्त आयोग ने सिफारिश करते हुए कहा कि पिछड़े हुए राज्यों को विशेष श्रेणी का दर्जा देना चाहिए और उसके बाद विशेष श्रेणी दर्जा की बात जमीन पर उतरी.1969 में हिमाचल प्रदेश, पूर्वोत्तर के राज्यों जैसे मणिपुर, मेघालय,अरुणाचल प्रदेश, उत्तराखंड तेलंगाना समेत 11 राज्यों को विशेष श्रेणी वाले राज्य का दर्जा दिया गया.2014 में जब आंध्र प्रदेश से तेलंगाना का गठन हुआ तो उस वक्त तेलंगाना को विशेष दर्जा मिला. हालांकि 14वें फाइनेंस की सिफारिश के बाद पूर्वोत्तर और तीन पहाड़ी राज्यों को छोड़ने के बाद विशेष श्रेणी के दर्ज को ही समाप्त कर दिया गया, विशेष राज्य का मतलब यह है कि उसे विधायी यानी कानूनी और राजनीतिक अधिकारों में स्वायत्ता मिलती है जबकि विशेष श्रेणी दर्जा सिर्फ आर्थिक और वित्तीय मामलों से जुड़ा हुआ है.

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