डिजिटल इंडिया का अनुभव, कर्नाटक जाति सर्वेक्षण में तकनीक की छाप
कर्नाटक जाति सर्वेक्षण में AI, जियो-टैगिंग और मोबाइल ऐप का इस्तेमाल किया गया, जिससे डेटा सटीक, तेज़ और पारदर्शी ढंग से रिकॉर्ड हो रहा है।
त्योहारों के दौरान काम करना, जब परिवार, पड़ोसी और दोस्त छुट्टियों का आनंद ले रहे हों, आसान नहीं होता। और अगर काम किसी ऐसी चीज़ से जुड़ा हो जिसमें आपका कोई अनुभव न हो, तो चुनौती और बढ़ जाती है। कर्नाटक के गड़ग जिले के स्कूल शिक्षक रमेश मेनासिनाकाई ने बताया कि उन्हें शुरू में चिंता हुई जब उन्हें पता चला कि राज्य द्वारा आयोजित नए सामाजिक और शैक्षिक सर्वेक्षण के लिए उन्हें एंयूमेरेटर के रूप में काम करना होगा, और इसके लिए उन्हें एक नए ऐप का इस्तेमाल करना होगा। उन्होंने पहले कभी जियो-टैगिंग जैसी तकनीक का उपयोग नहीं किया था।
मेनासिनाकाई अकेले नहीं थे। कई अन्य एंयूमेरेटरों ने भी बताया कि सर्वेक्षण के लिए बनाए गए एंयूमेरेशन डेटा कलेक्शन सिस्टम (EDCS) मोबाइल ऐप के बारे में जानकर शुरू में apprehensive (चिंतित) थे। 22 सितंबर को कर्नाटक पिछड़ा वर्ग आयोग (KBCC) ने नया सामाजिक और शैक्षिक सर्वेक्षण शुरू किया, जिसका उद्देश्य राज्य की आबादी की सामाजिक, शैक्षिक, आर्थिक और राजनीतिक स्थिति का रिकॉर्ड तैयार करना है।
यह सर्वेक्षण, जिसे आमतौर पर जाति-सर्वे कहा जाता है, कर्नाटक में पहला प्रयास नहीं है। 2015 में तत्कालीन KBCC अध्यक्ष एच. कंथराजू द्वारा किए गए प्रयास को कुछ प्रमुख समुदायों से कड़ी आपत्ति का सामना करना पड़ा था और सरकार ने रिपोर्ट को स्वीकार नहीं किया। 2024 में पूर्व अध्यक्ष जयप्रकाश हेगड़े ने 2015 के डेटा की समीक्षा कर नई रिपोर्ट प्रस्तुत की, लेकिन 2025 में इसे भी खारिज कर दिया गया। इसके बाद पूरी तरह नया और वैज्ञानिक सर्वेक्षण करने का निर्णय लिया गया।
वर्तमान आयोग, जिसका नेतृत्व मधुसूदन आर. नाइक कर रहे हैं, से कहा गया है कि वे सुनिश्चित करें कि सर्वेक्षण में सटीकता, पारदर्शिता और आधुनिक तकनीकों का सही उपयोग हो। आयोग के अधिकारियों के अनुसार, यह सर्वेक्षण केवल लोगों की गिनती तक सीमित नहीं है, बल्कि नीति निर्माण, कल्याण योजनाओं और विकास योजना के लिए एक विश्वसनीय डेटाबेस तैयार करने का प्रयास है।
KBCC के सदस्य सचिव K.A. दयानंद ने कहा, “2015 में एच. कंथराजू आयोग की रिपोर्ट के खिलाफ आपत्तियों के बाद यह तय हुआ कि इस सर्वेक्षण में तकनीक का उपयोग किया जाएगा। चार ऐप्स का इस्तेमाल किया जा रहा है — आधार KYC ऐप, फेशियल ऑथेंटिकेशन ऐप, EDCS सर्वे ऐप और जियो-लोकेशन ऐप। इन चार सॉफ्टवेयर टूल्स की मदद से डेटा जल्दी और सही ढंग से रिकॉर्ड किया जा रहा है।”
सर्वेक्षण की तैयारी अगस्त में शुरू हुई थी और एंयूमेरेटरों को सितंबर के पहले सप्ताह से प्रशिक्षण दिया गया। दो चरणों का प्रशिक्षण 19 सितंबर तक पूरा हो गया। ग्रेटर बेंगलुरु में सर्वेक्षण 4 अक्टूबर से शुरू हुआ, और 17,000 कर्मचारियों को प्रशिक्षित किया गया। रमेश मेनासिनाकाई ने बताया कि प्रशिक्षण के बाद उनका डर दूर हो गया। “एक हफ्ते के प्रशिक्षण के बाद मैंने देखा कि हम कितनी तेजी से हर घर को रिकॉर्ड कर सकते हैं और किसी के छूटने की जांच कर सकते हैं। ऐसा लगता है कि हम केवल आंकड़े गिनने से बड़ा काम कर रहे हैं।”
AI और तकनीक का रोल
सर्वेक्षण में कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। दयानंद के अनुसार, डेटा दो चरणों में एकत्र किया जा रहा है। प्राइमरी डेटा कलेक्शन में एंयूमेरेटर सीधे घरों से सामाजिक, शैक्षिक और आर्थिक जानकारी इकट्ठा करते हैं। सेकेंडरी डेटा कलेक्शन में राज्य विभाग, कर्नाटक लोक सेवा आयोग (KPSC) और कर्नाटक परीक्षा प्राधिकरण (KEA) द्वारा प्रत्येक समुदाय को मिलने वाली नौकरियों की जानकारी दी जाती है। AI डेटा को प्रोसेस और कंसॉलिडेट करने में मदद करता है, त्रुटियों को हटाता है और अंतिम रिपोर्ट तैयार करता है। AI के इस्तेमाल से लाखों घरों का व्यवस्थित सर्वेक्षण संभव हुआ है, जो पहले कभी नहीं किया गया था।
EDCS ऐप और मोबाइल डेटा संग्रह
EDCS ऐप, जिसे ई-गवर्नेंस विभाग, ऊर्जा विभाग और इलेक्ट्रॉनिक सेवा वितरण निदेशालय के विशेषज्ञों ने मिलकर विकसित किया, एंयूमेरेटरों को डेटा इकट्ठा, अपलोड और रियल-टाइम में सत्यापित करने की सुविधा देता है। प्रत्येक घर को एक यूनिक हाउसहोल्ड आईडी (UHID) दी जाती है, जो बिजली मीटर रेवेन्यू रजिस्ट्रेशन नंबर और जियो-लोकेशन से लिंक होती है। ऐप यह सुनिश्चित करता है कि कोई घर दो बार गिना न जाए और डेटा में हेरफेर न हो।
एंयूमेरेटर 60 सवालों के माध्यम से सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक जानकारी इकट्ठा करते हैं। डेटा तुरंत सुरक्षित सरकारी सर्वर पर अपलोड होता है। ऐप में “सर्च” फीचर है, जिससे घरों का त्वरित पता लगाया जा सकता है और डेटा की पुष्टि की जा सकती है। जो लोग व्यक्तिगत रूप से डेटा नहीं देना चाहते, उनके लिए ऑनलाइन सेल्फ-डिक्लेरेशन विकल्प उपलब्ध है।
शुरुआत में ऐप में तकनीकी चुनौतियाँ थीं — सर्वर डाउन, OTP देरी और क्रैश। लेकिन तकनीकी समस्याओं के समाधान के बाद अब प्रतिदिन 12–16 लाख घरों का सर्वेक्षण संभव हो गया है।
अनुभव और चुनौतियां
ग्रामीण और शहरी स्कूलों के शिक्षक, जैसे अनिल कुमार शेट्टी (उदुपी), प्रिय पाटिल (दावंगेरे), और दीपक गोवड़े (बेंगलुरु) ने बताया कि तकनीक के इस्तेमाल से पहले भ्रम और डेटा लॉस जैसी समस्याएँ थीं। लेकिन धीरे-धीरे सभी समस्याओं का समाधान हो गया।
एंयूमेरेटरों ने साझा किया कि तकनीक ने केवल डेटा संग्रह में तेजी ही नहीं लाई, बल्कि लोगों के विश्वास को भी बढ़ाया। वरिष्ठ शिक्षक सुषमा (मायसूरु) ने कहा कि ऑनलाइन सेल्फ-डिक्लेरेशन पोर्टल की वजह से त्योहारों के दौरान भी लोग बाद में डेटा सबमिट कर सकते हैं।
कर्नाटक जाति-सर्वेक्षण मॉडल जियो-टैगिंग, AI और मोबाइल डेटा संग्रह का संयोजन भविष्य में भारत में चुनाव आयोग के विशेष संक्षिप्त सर्वेक्षण (SIR) के लिए भी एक व्यावहारिक ब्लूप्रिंट साबित हो सकता है।
सर्वेक्षण में 1.7 लाख कर्मचारियों को लगाया गया है, जिनमें शिक्षक, विभागीय कर्मचारी और समूह C स्टाफ शामिल हैं। त्योहारों के दौरान अतिरिक्त भत्ता और विशेष छुट्टी की सुविधा दी गई है। प्रत्येक ब्लॉक में 100–150 घर आते हैं, और शिक्षकों को प्रति ब्लॉक ₹20,000 का भुगतान किया जा रहा है।
कॉपल की युवा शिक्षिका प्रियंका आर ने कहा, “UHID नंबरों का बिजली मीटर और जियो-लोकेशन से लिंक होना भविष्य की तकनीक जैसा अनुभव देता है। ऐसा लगता है कि ‘डिजिटल इंडिया’ का सपना यहीं साकार हो रहा है।”