डीके शिवकुमार बनाम सिद्धारमैया: 'कर्नाटक में नवंबर में बदल सकता है सीएम'

डीके शिवकुमार ने खुले तौर पर जताई मुख्यमंत्री बनने की इच्छा, जबकि सिद्धारमैया दिखा रहे हैं प्रतिरोध; क्या कांग्रेस अपने एकमात्र दक्षिणी गढ़ में महाराष्ट्र जैसी अस्थिरता की ओर बढ़ रही है?;

Update: 2025-07-07 14:51 GMT
'डीके शिवकुमार के प्रयासों ने कांग्रेस को बहुमत दिलाने में अहम भूमिका निभाई थी और हाईकमान इस बात को जानता है'

कर्नाटक के उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार ने मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के कार्यकाल के बीच में ही उनकी जगह लेने की अपनी आकांक्षाओं को खुलकर जाहिर कर दिया है, जिससे राज्य की सत्तारूढ़ पार्टी में राजनीतिक हलचल तेज हो गई है। कांग्रेस की स्थिरता दांव पर है, ऐसे में सभी की निगाहें हाईकमान की ओर हैं कि क्या वह निर्णायक कदम उठाएगा।

मैसूर विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान के पूर्व प्रोफेसर चंबी पुराणिक ने इस स्थिति के राजनीतिक निहितार्थों की पड़ताल की।

क्या शिवकुमार की टिप्पणियां इस ओर इशारा करती हैं कि सत्ता-साझेदारी की व्यवस्था टूट रही है?

मैं इसे ‘टूटना’ नहीं कहूंगा। यह सिर्फ समय का सवाल है। शिवकुमार के कुछ समर्थक — जैसे रामनगर के विधायक इकबाल हुसैन — दावा करते हैं कि उनके पास 100 से अधिक विधायकों का समर्थन है, लेकिन अभी इस ताकत के प्रदर्शन का समय नहीं आया है।

इस दबाव के पीछे असल में उनके गुट की उस निराशा का हाथ है, जो उन्हें सरकारी संस्थाओं में प्रमुख पद न मिलने को लेकर है। यह जनसेवा से ज़्यादा राजनीतिक प्रासंगिकता बनाए रखने की कोशिश है।


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क्या सत्ता हस्तांतरण सहज तरीके से होगा?

हां, मुझे लगता है कि यह परिवर्तन स्मूद होगा, शायद नवंबर के आसपास। सिद्धारमैया राजनीतिक रूप से चतुर हैं और जानते हैं कि कब पीछे हटना है।

शिवकुमार में तमाम खूबियां हैं लेकिन वह थोड़ा आक्रामक हैं और उनमें परिपक्वता की कमी है, फिर भी वे दृढ़ निश्चयी हैं।

हाईकमान के समर्थन से यह बदलाव सहज ढंग से प्रबंधित किया जाएगा, ठीक वैसे ही जैसे दावणगेरे अधिवेशन में शिवकुमार ने सिद्धारमैया का हाथ उठाकर दिखाया था।

क्या कोई औपचारिक समझौता हुआ है कि कार्यकाल के बीच में नेतृत्व बदलेगा?

कोई सार्वजनिक दस्तावेज़ नहीं है, लेकिन व्यवस्था व्यावहारिक रूप से स्पष्ट है।

शिवकुमार के प्रयासों ने कांग्रेस को बहुमत दिलाने में अहम भूमिका निभाई थी और हाईकमान इस बात को जानता है।

सिद्धारमैया की लोकप्रियता उनके अनुभव और विभिन्न सामाजिक समूहों को एकजुट करने की क्षमता में है, लेकिन अब वक्त शिवकुमार के पक्ष में आता दिख रहा है।

उन्हें एकमात्र डिप्टी सीएम बनाया जाना इस बात का संकेत है कि पार्टी उन्हें आगे बढ़ाने की तैयारी कर रही है।

क्या शिवकुमार अपने बयानों के ज़रिए हाईकमान पर दबाव बना रहे हैं?

हां, लेकिन यह एक सोची-समझी रणनीति है और इसे अंदरखाने से समर्थन प्राप्त है।

कांग्रेस का नेतृत्व इस तरह की अभिव्यक्ति की अनुमति देता है। शिवकुमार संकेत दे रहे हैं कि वे तैयार हैं, लेकिन सीधे तौर पर सिद्धारमैया को चुनौती नहीं दे रहे।

उनकी हालिया टिप्पणी — "राजनीतिक प्रयास असफल हो सकते हैं, लेकिन प्रार्थनाएं नहीं" — उनके इरादों का सूक्ष्म लेकिन स्पष्ट संकेत है।

हाईकमान ने उन्हें आश्वस्त किया है कि उनकी बारी आएगी।

अगर हाईकमान देर करता है तो क्या इससे अस्थिरता या विधायकों के दलबदल का खतरा है?

संभावना नहीं के बराबर है। इस समय बीजेपी के पास ऐसा नेतृत्व नहीं है जो कांग्रेस में बड़ी फूट करवा सके।

अगर JDS और BJP मिल भी जाएं तो कुमारस्वामी ही उनके चेहरे होंगे, लेकिन कांग्रेस के पास 136 सीटों का बहुमत है जो उसे सुरक्षित बनाता है।

अगर कुछ विधायक जाते भी हैं, तो भी शिवकुमार और कांग्रेस स्थिति संभालने में सक्षम हैं।

इस पूरे परिदृश्य में बीजेपी और जेडीएस की भूमिका कैसे देखते हैं?

अगर कांग्रेस सत्ता हस्तांतरण को गलत ढंग से संभालती है, तो ओबीसी वोट JDS की ओर खिसक सकते हैं, जिससे तीन-तरफा मुकाबले में बीजेपी को फायदा मिल सकता है।

लेकिन इस समय बीजेपी की आंतरिक समस्याएं उसकी क्षमता को सीमित कर रही हैं।

येदियुरप्पा का प्रभाव अब भी खासकर लिंगायत समुदाय में है, लेकिन JDS के समर्थन के बिना बीजेपी कोई बड़ा फायदा नहीं उठा सकती।

क्या आप मानते हैं कि कांग्रेस कर्नाटक में अपना कार्यकाल पूरा करेगी?

हां। आंतरिक खींचतान के बावजूद कांग्रेस अपना कार्यकाल पूरा करेगी।

शिवकुमार खुद को अगला मुख्यमंत्री बनाने की दिशा में सुनियोजित ढंग से आगे बढ़ रहे हैं, और पार्टी मशीनरी जब समय आएगा तब स्थिर परिवर्तन सुनिश्चित करेगी।

कर्नाटक के मतदाता व्यवहारिक सोच वाले हैं और वे पार्टी को इस बात पर परखेंगे कि वह इस बदलाव को कितनी जिम्मेदारी से संभालती है।

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