कर्नाटक में नई जातिगत जनगणना की घोषणा, पुरानी रिपोर्ट खारिज

कर्नाटक सरकार ने एक बड़ा कदम उठाते हुए 2015 की विवादित जातिगत जनगणना रिपोर्ट से दूरी बना ली है और अब नया कानूनी रूप से मान्य और वैज्ञानिक सर्वेक्षण कराने जा रही है।;

Update: 2025-06-13 11:42 GMT

कर्नाटक सरकार ने एक बड़ा राजनीतिक और प्रशासनिक फैसला लेते हुए 2015 की विवादास्पद जातिगत जनगणना रिपोर्ट को दरकिनार कर दिया है और एक नया सामाजिक और शैक्षिक सर्वेक्षण कराने का निर्णय लिया है। यह निर्णय मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की अध्यक्षता में 12 जून को आयोजित एक विशेष कैबिनेट बैठक में लिया गया। यह बैठक विशेष रूप से पिछड़ा वर्ग आयोग की पुरानी रिपोर्ट पर अंतिम फैसला लेने के लिए बुलाई गई थी।

2015 का सर्वेक्षण

2015 में किए गए सर्वेक्षण को पूर्व मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी के कार्यकाल में पूरा किया गया था। इस सर्वेक्षण में राज्य की अनुमानित 6.35 करोड़ की आबादी में से लगभग 5.98 करोड़ लोगों की जानकारी एकत्रित की गई थी। यह सर्वेक्षण 54 मापदंडों के आधार पर घर-घर जाकर किया गया था, जिसमें करीब 1.6 लाख कर्मचारियों, जिनमें से अधिकतर शिक्षक थे, को लगाया गया था। मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने आरोप लगाया कि कुमारस्वामी ने उस समय के पिछड़ा वर्ग मंत्री पुत्तरंगा शेट्टी पर रिपोर्ट स्वीकार न करने का दबाव बनाया था। बाद में बीजेपी शासनकाल में जयप्रकाश हेगड़ेको आयोग का नया अध्यक्ष बनाया गया और उन्होंने संशोधित रिपोर्ट और सिफारिशें सौंपीं।

कानूनी आधार पर नया सर्वेक्षण अनिवार्य

मुख्यमंत्री ने स्पष्ट किया कि यह कोई "पुनः सर्वेक्षण" नहीं, बल्कि एक पूरी तरह से नया सर्वेक्षण होगा, जो कानून के अनुसार आवश्यक है। उन्होंने कहा कि 2014 के संवैधानिक संशोधन अधिनियम की धारा 11(1) के तहत पिछड़ा वर्गों से संबंधित सामाजिक व शैक्षिक सर्वेक्षण हर 10 साल में करना अनिवार्य है। इसलिए नया सर्वेक्षण कानूनी रूप से जरूरी है।

कैबिनेट में मतभेद

कैबिनेट बैठक के दौरान मंत्रियों के बीच तीखे मतभेद सामने आए। AHINDA समुदायों (अल्पसंख्यक, पिछड़ा वर्ग और दलित) से आने वाले मंत्रियों ने मांग की कि कांथराज रिपोर्ट को तुरंत लागू किया जाए। वहीं, लिंगायत और वोक्कालिगा समुदाय के मंत्रियों ने रिपोर्ट की वैज्ञानिकता और निष्पक्षता पर सवाल उठाए और एक नया सर्वेक्षण कराने की मांग की। उन्होंने रिपोर्ट को पक्षपाती और त्रुटिपूर्ण बताया।

राजनीतिक और सामाजिक असर

सरकार का यह निर्णय राज्य की राजनीतिक और सामाजिक संरचना पर गहरा प्रभाव डाल सकता है। नया डेटा भविष्य में आरक्षण नीति, कल्याणकारी योजनाओं और राजनीतिक प्रतिनिधित्व को प्रभावित करेगा। सिद्धारमैया सरकार ने यह भी स्पष्ट किया है कि नया सर्वेक्षण वैज्ञानिक, पारदर्शी और सभी वर्गों को शामिल करते हुए किया जाएगा। सर्वेक्षण की समयसीमा, पद्धति और क्रियान्वयन की योजना जल्द घोषित की जाएगी।

कांग्रेस हाईकमान की भूमिका

इस फैसले के पीछे कांग्रेस पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व की भी अहम भूमिका मानी जा रही है। हाल ही में सीएम सिद्धारमैया और उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार को दिल्ली तलब किया गया था, जहां हाईकमान ने कानूनी और राजनीतिक पहलुओं की समीक्षा के बाद नए सर्वेक्षण को मंजूरी दी।

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