‘श्रम सुधार’ या कर्मचारी शोषण? कर्नाटक सरकार के 10 घंटे 'वर्क डे' प्रस्ताव पर बवाल
कर्नाटक में 10 घंटे कार्यदिवस लागू करने की संभावना ने आर्थिक विकास और कर्मचारी हितों के बीच संतुलन पर बहस को तेज कर दिया है। यह देखा जाना बाकी है कि यह प्रस्ताव उद्योगों के लिए वरदान बनता है या कर्मचारियों के लिए एक और चुनौती।;
कर्नाटक सरकार ने राज्य की श्रम नीतियों में बड़ा बदलाव करते हुए दुकानों, व्यावसायिक प्रतिष्ठानों और IT/ITeS/BPO क्षेत्रों के लिए काम के घंटे बढ़ाने का प्रस्ताव पेश किया है। इस संशोधन के तहत कर्मचारियों को अब रोजाना अधिकतम 10 घंटे तक काम करना पड़ सकता है. वहीं, तिमाही ओवरटाइम सीमा 50 घंटे से बढ़ाकर 144 घंटे कर दी जाएगी। रिपोर्ट्स के अनुसार, छोटे उद्यमों को इन नियमों से छूट मिलेगी।
वर्तमान स्थिति
प्रति दिन कार्य समय: 9 घंटे
ओवरटाइम की अनुमति: 1 घंटा
कुल अधिकतम कार्य समय: 10 घंटे
तिमाही ओवरटाइम सीमा: 50 घंटे
प्रस्तावित संशोधन
- कार्य दिवस को आधिकारिक रूप से 10 घंटे करना.
- ओवरटाइम की तिमाही सीमा को 144 घंटे करना.
सरकार का कहना है कि यह बदलाव तेजी से बदलती सेवाक्षेत्र की मांगों को पूरा करने और नियोक्ताओं को लचीलापन देने के लिए किया जा रहा है।
विरोध के सुर
हालांकि, प्रस्ताव के समर्थन में उद्योग जगत के कई लोगों ने इसे स्पष्टता और व्यावसायिक अनुकूलता बढ़ाने वाला कदम बताया है। वहीं, मजदूर संगठनों और स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने इस पर गंभीर आपत्ति जताई है। उनका कहना है कि
कर्मचारियों में शारीरिक और मानसिक थकावट बढ़ेगी। वर्क-लाइफ बैलेंस और अधिक बिगड़ेगा। पीक सीजन में लंबे समय तक काम करवाने की प्रवृत्ति को बढ़ावा मिलेगा।
केंद्र सरकार की पहल
कर्नाटक सरकार ने यह कदम केंद्र सरकार की उस सिफारिश के तहत उठाया है, जिसमें राज्यों से कार्य समय सीमा में लचीलापन लाने के लिए कानून संशोधन की बात कही गई थी। इससे पहले छत्तीसगढ़, गुजरात, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में ऐसे संशोधन हो चुके हैं। इसी महीने आंध्र प्रदेश ने भी 10 घंटे कार्यदिवस नीति का प्रस्ताव रखा है। अगस्त 2024 में कर्नाटक सरकार को 14 घंटे कार्यदिवस के प्रस्ताव को भारी विरोध के बाद वापस लेना पड़ा था।
छोटे उद्योगों को राहत
सरकार ने साफ किया है कि यह प्रस्तावित कानून छोटे व्यवसायों पर लागू नहीं होगा। इसे "श्रम सुधार" बताते हुए सरकार का कहना है कि यह कदम राज्य को उद्योगों के बदलते स्वरूप के अनुरूप बनाने की दिशा में है। हालांकि, अभी यह स्पष्ट नहीं है कि यह नीति सभी क्षेत्रों में लागू होगी या केवल कुछ चुनिंदा क्षेत्रों तक सीमित रहेगी। इस पर सरकार की ओर से आधिकारिक स्पष्टीकरण का इंतजार है।
विधानसभा में होगी चर्चा
प्रस्तावित संशोधन पर जल्द ही कर्नाटक विधानसभा के आगामी सत्र में चर्चा होनी है। अनुमान है कि जैसे-जैसे यह बहस आगे बढ़ेगी, कर्मचारी संगठन, यूनियनें और कारोबारी समुदाय अपना-अपना पक्ष और दबाव बढ़ाएंगे।