कर्नाटक में विशेष कैबिनेट बैठक, जाति जनगणना पर बड़ा फैसला ले सकती है सरकार

कर्नाटक सरकार अब एक मुश्किल स्थिति में है। क ओर उसके परंपरागत मतदाता AHINDA वर्ग की नाराजगी है। दूसरी ओर प्रभावशाली जातियों का दबाव। नई जनगणना की घोषणा फिलहाल एक सुरक्षित राजनीतिक विकल्प हो सकता है।;

Update: 2025-06-12 08:38 GMT

कर्नाटक सरकार आज एक विशेष कैबिनेट बैठक कर रही है, जिस पर पूरे देश की निगाहें टिकी हुई हैं। यह बैठक ऐसे समय हो रही है, जब कांग्रेस हाईकमान ने राज्य सरकार को 2015 में हुई जाति जनगणना की रिपोर्ट को मंज़ूरी देने से रोक दिया है। मुख्यमंत्री सिद्धारमैया आज इस बैठक की अध्यक्षता करेंगे, जिसमें मंत्री हाईकमान से मिले निर्देशों पर चर्चा करेंगे और आगे की रणनीति तय करेंगे।

10 साल से दबा डेटा

यह विवादास्पद रिपोर्ट 2015 में तब तैयार की गई थी, जब सिद्धारमैया पहली बार मुख्यमंत्री थे। रिपोर्ट कर्नाटक राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग के तत्कालीन अध्यक्ष जी. कांताराज के नेतृत्व में तैयार की गई थी। लेकिन इसे कभी सार्वजनिक नहीं किया गया। माना जाता है कि रिपोर्ट में वोक्कालिगा और लिंगायत जैसी प्रभावशाली जातियों की जनसंख्या कम और पिछड़े वर्गों व अल्पसंख्यकों की संख्या अधिक दर्शाई गई थी। इससे राज्य की राजनीतिक समीकरण बदल सकते थे, जिसके चलते रिपोर्ट को लगभग एक दशक तक दबा कर रखा गया।

वापसी के बाद फिर उठा मुद्दा

सिद्धारमैया के 2023 में दोबारा मुख्यमंत्री बनने के बाद, इस रिपोर्ट को सामने लाने की मांग ने ज़ोर पकड़ा। लेकिन उन्होंने इसे कैबिनेट में चार बार टाल दिया—यह आशंका जताते हुए कि प्रभावशाली जातियों का विरोध हो सकता है। 11 अप्रैल को दिल्ली में राहुल गांधी और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे से मुलाकात के बाद सिद्धारमैया ने दावा किया था कि हाईकमान ने रिपोर्ट को पेश करने की सहमति दे दी है। इसके बाद दो विशेष कैबिनेट बैठकें हुईं। लेकिन विवाद थमता नहीं दिखा।

जब रिपोर्ट आखिरकार कैबिनेट में पेश की गई तो कई मंत्रियों ने आपत्ति जताई। मुख्य आपत्तियां वोक्कालिगा और लिंगायत नेताओं की ओर से आईं—उन्होंने कहा कि उनकी जातियां 2015 की जनगणना में पूरी तरह से शामिल नहीं थीं और डेटा असंतुलित तथा अवैज्ञानिक है। इसके अलावा मुस्लिम समुदाय के उपवर्गों को रिपोर्ट में अलग से दर्ज नहीं किया गया, जबकि हिंदू उपजातियों को किया गया था, जिससे डेटा में असंतुलन बताया गया।

नई जाति गणना की तैयारी?

सूत्रों के अनुसार, आज की कैबिनेट बैठक में सरकार नई जाति जनगणना कराने की घोषणा कर सकती है। कांग्रेस हाईकमान की सलाह पर सरकार यह कदम उठाने जा रही है। सरकार के अनुसार, 2015 की रिपोर्ट अब पुरानी हो चुकी है और इसे 2011 की जनगणना पर आधारित माना गया था। केंद्र सरकार 2026 में नई जनगणना करने वाली है, ऐसे में पुराना डेटा प्रासंगिक नहीं रहेगा। परंपरा के अनुसार, जाति सर्वेक्षण केवल 10 वर्षों तक मान्य माना जाता है।

राजनीतिक दबाव और विरोध

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि सरकार ने दबाव में आकर रुख बदला है। वोक्कालिगा और लिंगायत जैसे प्रभावशाली समुदायों के नेताओं ने सार्वजनिक तौर पर विरोध जताया और सरकार को चेतावनी दी। हालांकि, मंत्रियों ने कैबिनेट में खुलकर विरोध नहीं किया। लेकिन कई समुदायों के नेताओं ने प्रदर्शन किए, जिससे निर्णय में देरी हुई।

AHINDA वर्ग में नाराज़गी

वहीं, AHINDA (अल्पसंख्यक, पिछड़ा वर्ग और दलित) समूह—जो कांग्रेस का कोर वोटबेस माना जाता है—इस बदलाव से खुद को ठगा महसूस कर रहा है। इन वर्गों की लंबे समय से मांग थी कि रिपोर्ट लागू की जाए। लेकिन अब उन्हें लग रहा है कि सरकार ने दबाव में आकर उनकी मांगें अनदेखी कर दीं। विपक्षी दलों ने भी कांग्रेस पर हमला बोला है और सवाल किया है कि अगर 2015 की रिपोर्ट लागू नहीं होनी थी तो उस पर खर्च हुआ करोड़ों रुपयों का जिम्मेदार कौन होगा?

राजनीतिक नुकसान की आशंका

राजनीतिक विश्लेषक डी. उमापति ने कहा कि मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने पिछड़े वर्गों के उत्थान का एक ऐतिहासिक अवसर गंवा दिया है। दबाव में आकर पीछे हटना नेतृत्व की कमजोरी दर्शाता है। कांग्रेस एक ओर प्रभावशाली जातियों का समर्थन बनाए रखना चाहती है। वहीं AHINDA वर्ग का भरोसा भी खो सकती है।

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