BSP का ‘ रिवाइवल’ या ‘कमबैक’ प्लान? 9 साल बाद शक्ति प्रदर्शन करेंगी मायावती
मायावती की इस रैली से कई संकेत मिलेंगे। कांशीराम की पुण्यतिथि पर मायावती अपने मतदाताओं और समर्थकों को संदेश देंगी तो वहीं पहली बार पार्टी के दूसरे सबसे बड़े नेता के तौर आकाश आनंद भी इसमें शामिल होंगे।;
उत्तर प्रदेश की राजनीति में हाशिए पर पड़ी बहुजन समाज पार्टी का ‘कमबैक प्लान’ क्या तैयार हो गया है? क्या 9 अक्टूबर को लखनऊ में बसपा संस्थापक कांशीराम की पुण्यतिथि पर बसपा का शक्ति प्रदर्शन इसी रणनीति का हिस्सा होगा? क़रीब एक दशक बाद बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने न सिर्फ़ लखनऊ में बड़े आयोजन का ऐलान कर दिया है, बल्कि उसके लिए हर स्तर पर पार्टी नेताओं को ज़िम्मेदारियां भी दी गई हैं। इस आयोजन का महत्व इसी से समझा का सकता है कि पार्टी की बैठक में यह कह दिया गया है कि 9 अक्टूबर तक पार्टी के नेताओं-कार्यकर्ताओं को सिर्फ़ इस आयोजन के लिए काम करना होगा और उसे ऐतिहासिक बनाना होगा।
राजनीति का संकेत
बीएसपी 9 अक्टूबर को लखनऊ में बड़ी रैली करके अपने सियासी विरोधियों को चुनौती देंगी। 9 अक्टूबर को बीएसपी संस्थापक कांशीराम की पुण्यतिथि है। यह मौक़ा ख़ास इसलिए है, क्योंकि बीएसपी अध्यक्ष मायावती क़रीब नौ साल बाद इतना बड़ा सार्वजनिक कार्यक्रम करने वाली हैं। 2014 से राजनीति में लगातार बीएसपी कमजोर होती गई है। इसके बावजूद मायावती ने 2016 के बाद लखनऊ में अब तक इतना बड़ा आयोजन नहीं किया। ऐसे में इस आयोजन पर सबकी नज़र है। दरअसल, कांशीराम की पुण्यतिथि का आयोजन बीएसपी पहले भी करती रही है। लेकिन जिला स्तर पर कार्यकर्ता श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया जाता था। इस बार लखनऊ में इस दिन बड़ा आयोजन होगा। इसे मायावती का शक्ति प्रदर्शन माना जा रहा है।
9 अक्टूबर की रैली के लिए प्रदेश भर से कार्यकर्ताओं और नेताओं को बुलाया गया है। हाल ही में हुई पार्टी नेताओं और कोऑर्डिनेटरों की मीटिंग में मायावती ने इस आयोजन के लिए निर्देश देते हुए उसे ऐतिहासिक बनाने के लिए कहा है। नेताओं और पदाधिकारियों को निर्देश दिए गए हैं कि नौ अक्टूबर तक पार्टी का और कोई काम या अभियान नहीं होगा, बल्कि सिर्फ़ इस आयोजन के लिए काम करना होगा। इस दिन मायावती ख़ुद मंच से कार्यकर्ताओं, समर्थकों और अपने मतदाताओं को संबोधित करेंगी। पार्टी की बैठक में जहां सभी नेताओं और कोऑर्डिनेटर्स को ज़िम्मेदारी दी गई है कि वो अपने ज़िले से लोगों के आने की व्यवस्था करें। वहीं अभी से ‘लखनऊ चलो’ का नारा भी दिया गया है। माना जा रहा है कि इस दिन बीएसपी अध्यक्ष मंच से अपने समर्थकों को आगे पार्टी की दिशा और लक्ष्य के बारे में बताएँगी।
एक और बात उस आयोजन को ख़ास बनाएगी। 2007 में बीएसपी की सरकार बनने के बाद मायावती ने कांशीराम स्मारक स्थल बनवाया था। इस स्मारक से कई बार बीएसपी अध्यक्ष दलित चेतना का नारा देकर अपने वोटरों को बीएसपी के लक्ष्य और राजनीतक दिशा से जोड़ती रही हैं। इस बार मायावती अपने कोर वोटरों को क्या संदेश देती हैं यह बात पार्टी की आगे की राजनीति को देखते हुए अहम है। पार्टी के एक नेता ने बताया कि बहनजी की राजनीतिक समझ पर उनके समर्थकों और कार्यकर्ताओं को भरोसा रहा है। ऐसे में यहाँ वो क्या कहती हैं यह बहुत महत्वपूर्ण होगा।ज़ाहिर है कांशीराम की पुण्यतिथि पर होने वाले कार्यक्रम को किसी राजनीतिक रैली की तरह ही माना जा रहा है और उसी तरह का संदेश होगा।
आकाश आनंद को जिम्मेदारी
दरअसल हाल ही में बीएसपी कई तरह से अपने रिवाइवल के लिए कोशिशें करती दिख रही है। पार्टी ने हर स्तर पर अपने को मज़बूत करने के लिए संगठन को नए सिरे से तैयार करना शुरू किया है तो वहीं मायावती ने यूपी में अगले साल होने वाले पंचायत चुनाव और बिहार विधानसभा चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी है। इससे पार्टी के कार्यकर्ताओं में इस बात की भी उम्मीद जगी है कि मायावती ने यूपी की राजनीति में कमबैक का प्लान तैयार किया है। इसलिए भी इस रैली को यूपी विधानसभा चुनाव की तैयारी के आग़ाज़ के तौर पर देखा जा रहा है। इधर भतीजे आकाश आनंद को मायावती ने न सिर्फ़ बिहार चुनाव की ज़िम्मेदारी दी है, बल्कि राष्ट्रीय संयोजक के रूप में पार्टी का दूसरे नम्बर का नेता भी बना दिया है। ऐसे में क्या मायावती आकाश आनंद को लेकर कोई संदेश देती हैं, इस बात को लेकर भी कयास लगाए का रहे हैं।
वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप कपूर इसको पार्टी का ‘रिवाइवल प्लान’ मानते हैं। उनका कहना है कि राजनीति में बीएसपी को आज के समय में अपना औचित्य साबित करना है। पिछले कई साल से मायावती केंद्र और राज्य की बीजेपी सरकार को सलाह ही देते हुए दिखती रही हैं। इसी वजह से उनको बीजेपी की ‘बी’ टीम भी कहा जाता रहा है। जबकि उन्हीं के मुद्दे अंबेडकर, संविधान और दलित को राहुल गांधी उठाते रहे हैं। वहीं अखिलेश दलित नायकों की जयंती-पुण्यतिथि पर कार्यक्रम करते रहे हैं और पीडीए में भी उनको शामिल किया है। ऐसे में मायावती के लिए अपने वोटरों को और विरोधियों को यह संदेश देना ज़रूरी हो गया है।
लगातार कमजोर होती गई बीएसपी
बीएसपी और ख़ुद मायावती के लिए यह रैली इसीलिए अहम है, क्योंकि लगातार पिछले एक दशक से बीएसपी कमजोर होती गई है। 2007 से 2012 तक पूर्ण बहुमत की सरकार के बाद बीएसपी को चुनाव में बुरी तरह झटका लगा और पार्टी सिर्फ़ 80 सीटों पर ही सिमट गई। इसके बाद से लगातार पार्टी का ग्राफ घटता रहा है। 2017 में सिर्फ 19 विधायक जीत पाए तो 2022 में सिर्फ एक ही विधायक ने जीत दर्ज़ की। बीएसपी के वोट प्रतिशत में भी ज़बरदस्त गिरावट आई। 2007 में जहाँ पार्टी को 30 प्रतिशत वोट विधानसभा चुनाव में मिले। वहीं 2022 में पार्टी को 12 प्रतिशत वोट मिले। इधर मायावती की पार्टी को आने वाले समय में सेकंड लाइनर नेताओं की कमी भी हो सकती है। पार्टी के कई वरिष्ठ नेता एक-एक करके पार्टी छोड़कर गए हैं। ऐसे में पार्टी के पुनर्गठन में साथ कमबैक के लिए बड़ा प्लान बनाना चुनौतीपूर्ण है। मायावती इस रैली में जुटी भीड़ और समर्थन से आगे के लिए अपनी पॉलिटिकल बार्गेनिंग भी बढ़ा सकती हैं।