बीजेपी का बंगाल मिशन: सीटें बढ़ाने के लिए ममता और तृणमूल के वंशवाद को निशाना
बीजेपी ने बंगाल चुनाव 2026 की रणनीति तय कर ली। पार्टी का फोकस ममता पर नहीं, बल्कि तृणमूल कार्यकर्ताओं और वंशवाद पर है, सीटों की बढ़त का लक्ष्य।
By : The Federal
Update: 2025-11-24 13:00 GMT
BJP's Bengal Strategy : बीजेपी की मजबूत चुनावी मशीनरी ने इस महीने मतदाता धोखाधड़ी के आरोपों के बावजूद अपनी गति बरकरार रखी और अब उसका लक्ष्य पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और उनकी पार्टी तृणमूल कांग्रेस है।
बंगाल में विधानसभा चुनाव अगले साल मार्च-अप्रैल में होने हैं। पार्टी सूत्रों की माने तो बिहार में बड़ी जीत का उत्सव मनाने के बाद बीजेपी अब कोलकाता से “दीदी” को हटाने की रणनीति बना रही है।
ममता नहीं, तृणमूल के कार्यकर्ताओं पर नजर
सूत्रों के अनुसार, इस बार बीजेपी का मुख्य फोकस केवल ममता बनर्जी पर नहीं होगा। पार्टी उन तृणमूल कार्यकर्ताओं को निशाना बनाएगी जिनकी अभिषेक बनर्जी (ममता के भतीजे और कोलकाता के डायमंड हार्बर से तीन बार सांसद) के प्रति कोई खास निष्ठा नहीं है।
बीजेपी का मानना है कि पार्टी के ज़मीन स्तर पर समर्थन को कमजोर करना ज़रूरी है। इसका मतलब यह नहीं कि ममता को पूरी तरह नजरअंदाज किया जाएगा। बीजेपी उनके परिवार और वंशवाद के मुद्दे का भी इस्तेमाल करेगी, खासकर अभिषेक बनर्जी के ऊपर। पार्टी का तर्क है कि उनका ‘लगाव’ ममता जितना मजबूत नहीं है, और यही विपक्ष को ज़मीन पर फायदा दे सकता है।
पूर्व में दलबदल और अब रणनीति
2021 के विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी ने कई तृणमूल नेताओं को अपनी तरफ करने में कामयाबी पाई थी। इनमें सबसे बड़े नाम सुवेंदु अधिकारी का था, जिन्होंने अभिषेक बनर्जी के बढ़ते प्रभाव से नाराज़ होकर पार्टी बदली और नंदीग्राम सीट पर ममता को हराया।
इस बार बीजेपी का कहना है कि ऐसी कोई योजना नहीं है कि दलबदलुओं पर निर्भर रहा जाए। ऐसा इसलिए क्योंकि इससे वोट शेयर में खास बढ़ोतरी की उम्मीद नहीं है। इसके बजाय, पार्टी तृणमूल के मौजूदा कार्यकर्ताओं पर ध्यान केंद्रित करेगी, जिससे चुनाव प्रचार और मजबूत होगा और संसाधनों का बेहतर उपयोग हो सकेगा।
जातिय समीकरण
बिहार में बीजेपी और उसके सहयोगी JDU ने जातिगत गणित बखूबी समझा और पिछड़ी जातियों व अल्पसंख्यक समुदाय के उम्मीदवारों को उतारकर 243 में से 200 सीटें जीत ली थीं। बंगाल में स्थिति अलग है। यहां जाति राजनीति प्रमुख मुद्दा नहीं है, और ध्रुवीकरण इतना व्यापक नहीं है। इसलिए बीजेपी क्षेत्रीय और धार्मिक समीकरणों का संतुलन बनाएगी।
हिंदू-मुस्लिम समीकरण
बंगाल की लगभग 30 प्रतिशत आबादी मुस्लिम है, लेकिन मुस्लिम-बहुल क्षेत्र केवल 30-40 सीटों तक सीमित हैं, यानी कुल सीटों का 14 प्रतिशत से भी कम। तृणमूल इन इलाकों में मजबूत है, लेकिन यह कुल सीटों पर असर नहीं डालता।
बीजेपी का मानना है कि हिंदू मतदाताओं में ध्रुवीकरण का फायदा उठाकर पार्टी अन्य क्षेत्रों में मजबूत स्थिति बना सकती है।
बाहरी मुद्दा
बीजेपी ममता बनर्जी पर आरोप लगाती रही है कि बंगाल-बांग्लादेश सीमा पर उनका ध्यान नहीं है और अवैध घुसपैठियों को वोटबैंक बनाने दिया जा रहा है। वहीं तृणमूल बीजेपी को राज्य में ‘बाहरी’ बताकर गुजरात, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह को ‘अभियान विरोधी बंगाल’ के रूप में पेश करती रही है।
बीजेपी की पकड़ और आंकड़े
बीजेपी ने पिछले चार चुनावों (दो राज्य और दो लोकसभा) में 100 से अधिक सीटें जीती हैं। इसका मतलब है कि पार्टी के पास राज्य में अच्छी पैठ है और पार्टी इन्हीं क्षेत्रों पर जोर देकर 160-170 सीटों का लक्ष्य हासिल करना चाहती है।
हालांकि, उम्मीदवार चयन में सावधानी जरूरी है। यही कारण है कि इस बार दलबदलियों पर ज्यादा भरोसा नहीं किया जा रहा।
प्रदर्शन का विश्लेषण
बीजेपी बंगाल में धीरे-धीरे अपनी स्थिति मजबूत कर रही है। उत्तरी और दक्षिणी जिलों में इसकी पकड़ और वोट शेयर बढ़ रहा है। 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने 18 सीटें जीती और 40.25% वोट शेयर हासिल किया।
2021 के विधानसभा चुनाव में पार्टी ने 77 सीटें जीती और 38.14% वोट शेयर लिया।
इस साल के लोकसभा चुनाव में बीजेपी छह सीटें गंवा चुकी है।
इसके विपरीत, तृणमूल का सर्वश्रेष्ठ वोट शेयर लगभग 48 प्रतिशत है। इसका मतलब है कि बीजेपी को जीत के लिए अतिरिक्त छह प्रतिशत वोट जुटाने होंगे। यह चुनौती पार्टी की संगठन क्षमता और चुनाव प्रचार की दक्षता को परखेगी।