संसद में मोदी का 'परजीवी' बयान,क्या अखिलेश के लिए खतरा बनेंगे राहुल?
बडे दल हमेशा से छोटे दलों के लिए खतरा रहे हैं.लेकिन सच यह है कि कांग्रेस जैसे दल को छोटे दलों की मदद लेनी पड़ रही है. इन सबके बीच PM मोदी का परजीवी बयान चर्चा में है.
Narendra Modi Parasite Statement: राष्ट्रपति के अभिभाषण पर हुई चर्चा का जवाब देते हुए पीएम नरेंद्र मोदी लय और ताल में थे. उन्होंने इंडिया ब्लॉक की कामयाबी पर निशाना तो साधा ही. लेकिन उससे अधिक निशाने पर कांग्रेस रही. कांग्रेस को परजीवी बताया. परजीवी की व्याख्या करते हुए कहा ऐसे लोग जिस पर सवार होते हैं उसे खा जाते हैं. अब उनकी व्याख्या के आधार पर क्या कांग्रेस यूपी में समाजवादी पार्टी के लिए खतरा बनेगी.
10 सीट और पीडीए
दरअसल इस सवाल के जवाब को समझने के लिए दो बिंदुओं को समझने की आवश्यकता है. यूपी में विधानसभा की कुल 10 सीटों के लिए उपचुनाव होना है और इस तरह की खबरें मीडिया में तैर रही हैं कि समाजवादी पार्टी एक या दो सीट से अधिक कांग्रेस को नहीं देना चाहती है. इसके साथ ही दूसरा बिंदु अखिलेश यादव के पीडीए समीकरण से है. पीडीए में वो पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक का जिक्र करते हैं. हालांकि सुविधा के मुताबिक समाजवादी पार्टी के नेता अल्पसंख्यक की जगह अगड़ों की बात भी कर लेते हैं.
अगर देश के सबसे बड़े सूबे में से एक उत्तर प्रदेश की बात करें तो कांग्रेस के खाते में 6 सीटें आई हैं जबकि समाजवादी पार्टी 37 सीट के साथ नंबर वन पर है. समाजवादी पार्टी और कांग्रेस की सीट संख्या के पीछे मायावती की पार्टी के अवसान को बताया जा रहा है. इस दफा के चुनावी ट्रेंड में गैर जाटव दलित जहां समाजवादी पार्टी के साथ जुटे हैं. वहीं जाटव मतदाता का एक वर्ग कांग्रेस के साथ गया. इसके अलावा अल्पसंख्यक समाज का कुछ हिस्सा राहुल गांधी के साथ गया. ऐसी सूरत में अगर कांग्रेस समाज के इन दोनों वर्गों को साधने के लिए बड़े पैमाने पर अभियान चलाती है तो जाहिर सी बात है कि वो समाजवादी पार्टी के वोटबैंक को ही खाली करने का काम करेगी. ऐसी सूरत में दोनों दलों का गठबंधन कब तक प्रभावी रहेगा.
क्या कहते हैं सियासी जानकार
सियासी पंडित कहते हैं कि देखिए राजनीति में हवा का रुख एक जैसा नहीं रहता. 2024 के चुनाव में कांग्रेस और समाजवादी पार्टी का साझा दुश्मन बीजेपी थी. दोनों दलों को लगा कि तात्कालिक तौर पर एक साथ आकर ही वो चुनौती दे सकते हैं.लिहाजा सीटों की संख्या पर दोनों दल असहमति के बीच एक स्टेज पर आए। लेकिन राजनीति में कोई भी दल किसी दूसरे के लिए स्पेस क्यों छोड़े या बनाए.जाहिर सी बात है कि यूपी में कांग्रेस के नेता यह चाहेंगे कि पार्टी को जमीनी स्तर पर मजबूत किया जाए.वैसी सूरत में दोनों दलों के बीच मतभेद का निर्माण होगा. इसके साथ ही अगर बीजेपी कमजोर होने लगी तो उस निर्वात को भरने के लिए भी इन दोनों दलों में संघर्ष होगा ही. अब ऐसी सूरत में कांग्रेस और सपा के बीच गठबंधन कितना लंबा चलेगा उसका फैसला समय खुद कर देगा।