गांव से संसार तक, मोरिंगा की रानी पोन्नरासी ने लिखी कामयाबी की कहानी

अगर आप में कुछ करने का जज्बा है तो मुश्किल आड़े नहीं आती। तमिलनाडु के डिंडीगुल की रहने वाली पोन्नरासी की चर्चा अब जिले से बाहर राज्य स्तर पर है। मोरिंगा की खेती से अलग पहचान बनाई।;

Update: 2025-04-17 04:14 GMT
10वीं की पढ़ाई बीच में ही छोड़ देने वाले पी पोन्नारसी (38) अब एक निर्यातक हैं। तस्वीर: प्रमिला कृष्णन

तमिलनाडु के डिंडीगुल की शांत गलियों में रहने वाली पी. पोन्‍नरासी की कहानी न केवल प्रेरणादायक है, बल्कि यह साबित करती है कि एक सामान्य गृहिणी भी दृढ़ संकल्प और सही मार्गदर्शन से वैश्विक उद्यमिता की मिसाल बन सकती है। कभी खेतों में काम करने वाली और दसवीं कक्षा में पढ़ाई छोड़ने वाली पोन्‍नरासी आज ‘तमिलनाडु की मुरुंगाई अरासी’ (मोरिंगा की रानी) के नाम से जानी जाती हैं।

38 वर्षीय पोन्‍नरासी ने अपने परिवार की 10 एकड़ की मोरिंगा (सहजन) की खेती को एक अंतरराष्ट्रीP Ponnarasi (38), a Class 10 dropout, is now an exporteय ब्रांड में बदल दिया है। उनके उत्पादों – मोरिंगा पाउडर, तेल और अन्य मूल्य-वर्धित वस्तुएं – अमेरिका, सिंगापुर और फ्रांस जैसे देशों में निर्यात की जाती हैं। कोविड-19 महामारी के दौरान जब अनेक उद्यमी प्रभावित हुए, तब पोन्‍नरासी के पास ग्राहकों के ऑर्डरों की भरमार थी।

कैसे बदली ज़िंदगी

“मोरिंगा ने मेरी ज़िंदगी बदल दी, इसने मुझे जीवन का उद्देश्य दिया,” पोन्‍नरासी ने बताया। पहले वे भी अन्य किसानों की तरह मंडी में एजेंट्स को ड्रमस्टिक बेचती थीं। लेकिन 2019 में तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित एक प्रशिक्षण शिविर में भाग लेने के बाद उन्होंने मोरिंगा के मूल्य-वर्धित उत्पादों के निर्माण की बारीकियां सीखीं।

उनके परिवार में पीढ़ियों से ड्रमस्टिक की खेती होती रही है। “कभी-कभी इसकी कीमत ₹100 प्रति किलो होती थी, तो कभी ₹5 पर भी बेचनी पड़ती थी। हमारे पास कमाई के सीमित विकल्प थे,” पोन्‍नरासी ने बताया।

प्रशिक्षण के बाद उन्होंने तेल निकालने, पत्तियों को सुखाने, और विभिन्न उत्पाद बनाने की तकनीक सीखी। आज वह 30 से अधिक उत्पाद बनाती हैं, जिनमें soup mix, तेल, इडली पाउडर, चाय बैग्स आदि शामिल हैं।

एक महिला, एक मिशन

सरकारी सहायता से उन्होंने एक ‘पैक हाउस’ बनवाया, निर्यात प्रमाण पत्र हासिल किया और सोशल मीडिया के ज़रिए अपने उत्पादों को प्रमोट करना शुरू किया। वे बताती हैं कि वह रोज़ाना 50 घरेलू और हर महीने लगभग 20 अंतरराष्ट्रीय पार्सल भेजती हैं।

उनकी सालाना आमदनी अब ₹12 लाख के आसपास है। उन्होंने अपने चारों बच्चों को निजी स्कूल में दाखिल कराया है, पुराने कर्ज चुकाए और अपना ऑफिस भी बनवाया है। अब वे अपनी वेबसाइट भी तैयार करवा रही हैं।

पोन्‍नरासी अब अन्य महिलाओं को भी ट्रेनिंग देती हैं और सोशल मीडिया का प्रयोग सिखाती हैं। उनकी सफलता से प्रेरित होकर सेलम जिले की जमुना अरुल ने भी मोरिंगा से बने उत्पादों को अपना व्यवसाय बना लिया है। जमुना बताती हैं, “पहले मैं सिर्फ अपने परिवार के स्वास्थ्य के लिए soup और पाउडर बनाती थी, लेकिन महामारी के दौरान immunity awareness ने मुझे व्यवसाय शुरू करने का विचार दिया।”

वैज्ञानिकों की राय और सरकार की योजना

मदुरै के होम साइंस कॉलेज की डॉ. एस. पार्वती के अनुसार, “मोरिंगा की सूखी पत्तियों में दूध से 17 गुना अधिक कैल्शियम, संतरे से 7 गुना अधिक विटामिन C, केले से 15 गुना पोटैशियम, पालक से 25 गुना आयरन, गाजर से 10 गुना विटामिन A और दही से 9 गुना प्रोटीन होता है।”

तमिलनाडु कृषि निर्यात निगम (TNAPEx) के अनुसार, राज्य में मोरिंगा की खेती 20,741 हेक्टेयर क्षेत्र में होती है और यह 841,807 मीट्रिक टन उत्पादन के साथ देश में अग्रणी है। सरकार ने 9 जिलों में ‘मोरिंगा निर्यात क्षेत्र’ बनाया है और मदुरै में विशेष सेवा केंद्र भी स्थापित किया है।

वैश्विक बाज़ार में तमिलनाडु की पहचान

TNAPEx के CEO के. अलगुसुंदरम के अनुसार, राज्य के 35 प्रमुख निर्यातक 600–800 एकड़ में मोरिंगा पत्तियों की खेती करते हैं, जिससे 720 मीट्रिक टन पत्तियों का पाउडर तैयार होता है। इसका मूल्य ₹30 करोड़ तक है। APEDA के अनुसार, 2025 तक वैश्विक मोरिंगा बाजार ₹1,000 करोड़ तक पहुंच सकता है।

तिरुनेलवेली जिले के नव्वलाड़ी गांव के उद्यमियों ने हाल ही में 60 मीट्रिक टन जैविक मोरिंगा की पत्तियों से 6 मीट्रिक टन पाउडर तैयार करवाया, जिसकी कीमत ₹20 लाख आँकी गई।

निष्कर्ष

पी. पोन्‍नरासी जैसी महिलाएं यह सिद्ध करती हैं कि पारंपरिक खेती में भी नवाचार और आत्मनिर्भरता की अपार संभावनाएं हैं। मोरिंगा, जो कभी सिर्फ भोजन का हिस्सा था, आज वैश्विक बाज़ार में तमिलनाडु को पहचान दिला रहा है। यह कहानी न केवल महिलाओं के सशक्तिकरण की मिसाल है, बल्कि एक नई ग्रामीण क्रांति का संकेत भी है।

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