यूपी बीजेपी के नए 'चौधरी' : 2027 से पहले संगठन, सत्ता और सामाजिक समीकरणों की बड़ी परीक्षा

पंकज चौधरी सात बार के सांसद हैं और ओबीसी में यादव के बाद दूसरी सबसे बड़ी आबादी वाले कुर्मी समुदाय से आते हैं.

Update: 2025-12-13 17:29 GMT
पंकज चौधरी (बीच में) के नाम का रविवार को औपचारिक रूप से ऐलान कर दिया जाएगा (फोटो : X/@officeofPCM)
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उत्तर प्रदेश में बीजेपी ने संगठन की कमान केंद्रीय मंत्री पंकज चौधरी को सौंपने की रविवार १४ दिसंबर को औपचारिक घोषणा हो जाएगी। उनके नेतृत्व में ही पार्टी 2027 का विधानसभा चुनाव लड़ेगी। ऐसे में प्रदेश अध्यक्ष बनते ही पंकज चौधरी के सामने सियासी, सामाजिक और संगठनात्मक, तीनों मोर्चों पर बड़ी चुनौतियां खड़ी हो गई हैं।

ओबीसी चेहरे के जरिए सामाजिक संतुलन की कोशिश

पंकज चौधरी पूर्वांचल के गोरखपुर से आते हैं। वे सात बार के सांसद हैं और ओबीसी वर्ग के कुर्मी समुदाय से ताल्लुक रखते हैं, जो यादवों के बाद उत्तर प्रदेश का दूसरा सबसे बड़ा ओबीसी समूह माना जाता है।

बीजेपी ने एक तरफ सरकार की कमान अगड़ी जाति के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के हाथ में रखी है, तो दूसरी तरफ संगठन की जिम्मेदारी ओबीसी चेहरे को देकर सामाजिक संतुलन साधने की कोशिश की है।

यह फैसला साफ संकेत देता है कि पार्टी 2024 के लोकसभा चुनाव में ओबीसी वोटों के खिसकने को गंभीरता से ले रही है, खासकर पूर्वांचल में हुए नुकसान को देखते हुए।

सरकार और संगठन के बीच तालमेल की चुनौती

प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर पंकज चौधरी के सामने सबसे बड़ी चुनौती सरकार और संगठन के बीच बेहतर तालमेल बनाना होगा। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सख्त प्रशासनिक कार्यशैली को लेकर बीजेपी के भीतर और सहयोगी दलों में भी समय-समय पर असंतोष की बातें सामने आती रही हैं।

2024 के चुनाव के बाद संगठन और सरकार के बीच कथित खींचतान खुलकर दिखी थी। डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य का “संगठन सरकार से ऊपर” वाला बयान इसी तनाव का संकेत था। ऐसे में पंकज चौधरी को संगठन को ब्लॉक और बूथ स्तर तक मजबूत करने के साथ-साथ कार्यकर्ताओं को यह भरोसा दिलाना होगा कि उनकी आवाज सुनी जा रही है।

पंकज चौधरी के सामने चुनौती यह भी होगी कि वे मुख्यमंत्री योगी की कार्यशैली के पूरक बनें, न कि संगठन के भीतर कोई समानांतर शक्ति केंद्र खड़ा करें।

संगठन में खुद को स्थापित करने की अग्निपरीक्षा

2014 के बाद यूपी बीजेपी की कमान जिन नेताओं के हाथ रही यानी केशव प्रसाद मौर्य, महेंद्रनाथ पांडेय, स्वतंत्र देव सिंह और भूपेंद्र चौधरी, उन्होंने अपने-अपने कार्यकाल में बड़ी चुनावी सफलताएं दर्ज कीं।

* केशव मौर्य के नेतृत्व में 2017 में 15 साल बाद बीजेपी सत्ता में लौटी

* महेंद्रनाथ पांडेय की अगुवाई में 2019 में सपा-बसपा गठबंधन को मात दी

* स्वतंत्र देव सिंह के दौर में 2022 में सत्ता दोहराई गई

अब पंकज चौधरी के सामने भी खुद को उसी कतार में साबित करने की चुनौती है। केंद्रीय मंत्री और अनुभवी सांसद होने के बावजूद संगठनात्मक नेतृत्व में अपनी सियासी पकड़ बनाना उनके लिए आसान नहीं होगा।

2024 की हार का सियासी हिसाब

2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को सबसे बड़ा झटका यूपी में लगा। 80 सीटों में से पार्टी सिर्फ 33 सीटें जीत पाई और 2019 की तुलना में 31 सीटों का नुकसान हुआ। इसका सीधा असर यह हुआ कि नरेंद्र मोदी को तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने के लिए सहयोगी दलों पर निर्भर रहना पड़ा।

इस चुनाव में समाजवादी पार्टी ने ओबीसी और दलित वोटों के बड़े हिस्से को अपने पक्ष में कर लिया और 37 सीटें जीतकर यूपी की सबसे बड़ी पार्टी बन गई। यही वह झटका है, जिसकी भरपाई अब पंकज चौधरी को करनी होगी।

सपा के PDA चक्रव्यूह को तोड़ने की चुनौती

अखिलेश यादव का पूरा सियासी फोकस PDA—पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक—समीकरण पर है। सपा का दावा है कि यूपी की 85 से 90 फीसदी आबादी इसी दायरे में आती है। इसी फॉर्मूले के दम पर सपा ने 2024 में बीजेपी को अयोध्या जैसी सीट पर भी शिकस्त दी।

बीजेपी का 2014 से चला आ रहा सामाजिक समीकरण 2024 में बिखरता नजर आया। पार्टी मानती है कि कुर्मी और अन्य गैर-यादव ओबीसी वोटों का खिसकना इसकी बड़ी वजह रहा। यही कारण है कि संगठन की बागडोर कुर्मी नेता पंकज चौधरी को सौंपी गई है।

उनके सामने गैर-यादव ओबीसी वोटों को दोबारा एकजुट करने और सपा के PDA मॉडल को काउंटर करने की रणनीति तैयार करने की बड़ी जिम्मेदारी होगी। कुर्मी समाज की मौजूदगी पूर्वांचल से लेकर बुंदेलखंड और रुहेलखंड तक फैली हुई है, जिसे बीजेपी अपने पक्ष में साधना चाहती है।

2027 में सत्ता की हैट्रिक का लक्ष्य

प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर पंकज चौधरी की पहली बड़ी परीक्षा 2026 के पंचायत चुनाव होंगे, जिसके बाद 2027 का विधानसभा चुनाव है। 10 साल की सत्ता के बाद एंटी-इनकंबेंसी, विधायकों के खिलाफ नाराजगी और बदला हुआ सामाजिक समीकरण बीजेपी के लिए बड़ी चुनौती हैं।

पंकज चौधरी के सामने सिर्फ संगठन को मजबूत करने और सामाजिक संतुलन साधने की नहीं, बल्कि 2027 में सत्ता की हैट्रिक लगाने की भी जिम्मेदारी होगी। टिकट वितरण से लेकर चुनावी नैरेटिव तय करने और कार्यकर्ताओं में जोश भरने तक, हर मोर्चे पर उनकी परीक्षा होगी।

अब सवाल यही है—क्या पंकज चौधरी बीजेपी को 2024 के झटके से उबारकर 2027 में जीत की पटरी पर वापस ला पाएंगे, या सपा का PDA फॉर्मूला यूपी की राजनीति की दिशा बदल देगा?

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