अब अजमेर शरीफ को लेकर हिंदू पक्ष का दावा, वहां मौजूद था शिव मंदिर, कोर्ट ने मंजूर की याचिका

अजमेर की एक अदालत ने केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय और एएसआई को एक हिंदू संगठन द्वारा दायर मुकदमे पर नोटिस जारी किया. इसमें अजमेर शरीफ को हिंदू मंदिर बताया गया है.

Update: 2024-11-28 05:22 GMT

Ajmer Dargah Sharif: यूपी के संभल में स्थित जामा मस्जिद के बाद अब राजस्थान के अजमेर दरगाह शरीफ में सर्वे किया जा सकता है. क्योंकि अजमेर की एक अदालत ने हिंदू पक्ष की याचिका स्वीकार कर ली है. इसमें अजमेर शरीफ को हिंदू मंदिर बताया गया है.

राजस्थान के अजमेर की एक अदालत ने बुधवार को केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय और आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (एएसआई) को एक हिंदू संगठन द्वारा दायर मुकदमे पर नोटिस जारी किया. इस याचिका में ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह के स्थल पर दावा किया गया है कि 13वीं शताब्दी के सूफी संत की कब्र पर सफेद संगमरमर के मंदिर के निर्माण से पहले वहां एक शिव मंदिर के अस्तित्व के “ऐतिहासिक सूबत” था. अब अजमेर मुंसिफ आपराधिक और सिविल (पश्चिम) अदालत 20 दिसंबर को दिल्ली स्थित हिंदू सेना के सिविल मुकदमे की सुनवाई करेगी.

अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय द्वारा गठित एक वैधानिक निकाय दरगाह ख्वाजा साहब समिति इस मामले में तीसरी प्रतिवादी है. हिंदू सेना के तीन वकीलों में से एक अधिवक्ता योगेश सुरोलिया का कहना है कि कानूनी टीम ने अदालत को पूर्व न्यायिक अधिकारी और शिक्षाविद हर बिलास सारदा की 1911 की पुस्तक 'अजमेर: ऐतिहासिक और वर्णनात्मक' की एक प्रति सौंपी, जिसमें कथित तौर पर उल्लेख किया गया है कि इस स्थल पर "पहले से मौजूद" शिव मंदिर के अवशेषों का उपयोग दरगाह के निर्माण में किया गया था.

साथी अधिवक्ता राम स्वरूप बिश्नोई ने कहा कि हमने अदालत को सूचित किया कि मंदिर में तब तक लगातार धार्मिक अनुष्ठान होते रहे, जब तक कि इसे ध्वस्त नहीं कर दिया गया. तीसरे वकील विजय शर्मा ने याचिकाकर्ता के इस तर्क को सत्यापित करने के लिए परिसर का एएसआई द्वारा सर्वेक्षण करने की मांग की कि दरगाह के गुंबद में "मंदिर के टुकड़े" हैं और "तहखाने में एक गर्भगृह की उपस्थिति के सबूत हैं".

बता दें कि यह मुकदमा ज्ञानवापी मामले जैसा ही है, जिसमें कई हिंदू वादी शामिल हैं. जो तर्क देते हैं कि यूपी के वाराणसी में मस्जिद एक नष्ट मंदिर के अवशेषों पर बनाई गई थी. एएसआई ने पहले ही वहां अदालत के आदेश पर सर्वेक्षण किया है. मथुरा में कृष्ण जन्मभूमि मुकदमा एक और मुकदमा है, जो उस भूमि के स्वामित्व को लेकर विवाद से संबंधित है, जहां अब शाही ईदगाह स्थित है.

अजमेर दरगाह मामले में हिंदू सेना के अध्यक्ष विष्णु गुप्ता ने सितंबर में याचिका दायर की थी. लेकिन अधिकार क्षेत्र के विवाद के कारण मुकदमे की योग्यता पर प्रारंभिक सुनवाई में देरी हुई थी. जिला और सत्र न्यायाधीश ने फिर मुंसिफ कोर्ट (पश्चिम) को मुकदमा स्थानांतरित कर दिया. सुनवाई में और देरी हुई. क्योंकि नामित अदालत ने अंग्रेजी में याचिका का हिंदी में अनुवाद करने और सबूतों और हलफनामे के साथ प्रस्तुत करने के लिए कहा.

एक वकील ने कहा कि मुकदमे के 38 पन्नों में संदर्भ के कई बिंदु हैं, जो दिखाते हैं कि दरगाह जहां स्थित है, वहां पहले एक शिव मंदिर था. ज्ञानवापी मामले की तरह इस मुकदमे को नकारने के लिए पूजा स्थल अधिनियम 1991 को लागू नहीं किया जा सकता है. दरगाह के वंशानुगत देखभालकर्ताओं का प्रतिनिधित्व करने वाली संस्था अंजुमन मोइनिया फखरिया के सचिव सैयद सरवर चिश्ती ने सूफी दरगाह के स्थल पर शिव मंदिर के अस्तित्व के बारे में हिंदू पक्ष के तर्कों को निराधार बताया. उन्होंने एक वीडियो-रिकॉर्डेड बयान में कहा कि ये तुच्छ दावे देश के सांप्रदायिक सौहार्द को नुकसान पहुंचाने के उद्देश्य से हैं. दरगाह मक्का और मदीना के बाद मुसलमानों के लिए सबसे अधिक पूजनीय स्थानों में से एक है. इस तरह की हरकतें दुनिया भर के श्रद्धालुओं की भावनाओं को बहुत ठेस पहुंचाती हैं.

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