‘मनुष्यता के महानायक’ रचनाकार रामदरश मिश्र की जन्मशती पर ‘इंद्रप्रस्थ भारती’ के विशेषांक का हुआ विमोचन

रामदरश मिश्र के तेरह उपन्यास, बारह कहानी-संग्रह, दो आत्मकथा, नौ कविता-संग्रह, तीन ग़ज़ल-संग्रह, चार निबन्ध-संग्रह और सात संस्मरण से जुड़ी पुस्तकें प्रकाशित हैं।

Update: 2024-08-25 09:09 GMT

बनाया है मैंने यें घर धीरे धीरे

खुले मेरे ख्वाबों के पर धीरे धीरे

हिन्दी अकादमी ने वरिष्ठ रचनाकार रामदरश मिश्र के 100 वर्ष पूरे होने पर एक संगोष्ठी का आयोजन किया और रामदरश मिश्र की जन्मशती पर प्रकाशित अकादमी की पत्रिका इंद्रप्रस्थ भारती के विशेषांक का भी विमोचन किया। प्रतिष्ठित साहित्यकार रामदरश मिश्र की लम्बी साहित्य यात्रा अब तक समय के कई मोड़ों से गुजरी और नित्य नूतनता की छवि को प्राप्त होती गई। कविता की कई शैलियों जैसे गीत, छोटी कविता, लम्बी कविता में उनकी सर्जनात्मक प्रतिभा ने अपनी प्रभावशाली अभिव्यक्ति के साथ-साथ ग़ज़ल में भी उन्होंने अपनी सार्थक उपस्थिति रेखांकित की। इसके अतिरिक्त उपन्यास, कहानी, संस्मरण, यात्रा-वृत्तांत, डायरी, निबन्ध आदि सभी विधाओं में उनका साहित्यिक योगदान बहुमूल्य और अविस्मरणीय है। रामदरश मिश्र के तेरह उपन्यास, बारह कहानी-संग्रह, दो आत्मकथा, नौ कविता-संग्रह, तीन ग़ज़ल-संग्रह, चार निबन्ध-संग्रह और सात संस्मरण से जुड़ी पुस्तकें प्रकाशित हैं। उनकी रचनाएँ विभिन्न स्तरों के पाठ्यक्रमों में पढ़ाई जा रही हैं और देश के अनेक विश्वविद्यालयों में उनके साहित्य पर अनेक शोध कार्य हो चुके हैं और लगातार हो रहे हैं।


कार्यक्रम का उदघाटन हिन्दी अकादमी के उपाध्यक्ष कवि सुरेंद्र शर्मा द्वारा किया गया। अतिथि के रूप में रामदरश मिश्र जी उपस्थित रहे। वक्ताओं के रूप में ओम निश्चल, डॉ.अनिल जोशी, प्रो.स्मिता मिश्रा ने अपने अपने विचार प्रस्तुत किए।

'ये हिंदी अकादमी का गौरव है'
कार्यक्रम का आरंभ रामदरश मिश्र के जीवन पर बने वृत्तचित्र से किया गया। कवि सुरेंद्र शर्मा ने कहा, रामदरश मिश्र जी हमारे बीच उपस्थित हैं ये हिन्दी अकादमी का गौरव है और ये इतिहास रचा है हिन्दी अकादमी ने। मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रामदरश मिश्र ने अपनी कुछ विशेष कविताओं का काव्य पाठ किया। वेदप्रकाश ‘अमिताभ’ के मुताबिक़, मिश्र जी उस समय अपनी रचनाओं में समय से आगे चल रहे थे। साधारण व्यक्तित्व वाले व्यक्ति कोई भी जाकर मिल लें। मिश्र जी की रचनाएँ मूल्य देती हैं, मूल्य को रचती हैं और मूल्यों को भी ख़ारिज करती हैं। ओम निश्चल ने अपने वक्तव्य में कहा, रामदरश मिश्र जी का हृदय विशाल है। वो सबको एक समान देखते थे। ह्रदय की भाषा कविता की भाषा है। और ये कविता रामदरश जी रचते थे।


रामदरश मिश्र को पढ़ना उस पुण्य पथ से गुजरना है जिससे बहुत कम लोग गुजरते हैं। अनिल जोशी ने रामदरश जी के लेखन की विस्तृत जानकारी दी। परिवार के बीच में रचना करते हैं। उनकी रचनाओं में घर दिखता है। मनुष्यता के महानायक को हम अपने बीच में देख रहे हैं । प्रो स्मिता मिश्र ने अपने वक्तव्य में रामदरश मिश्र की की कुछ साहित्य की उपलब्धियों को बताने के साथ साथ उनकी साहित्य यात्रा व रचना यात्रा का विस्तृत वर्णन किया। इस अवसर पर इंद्रप्रस्थ भारती का जुलाई-अगस्त का अंक रामदरश मिश्र जी को समर्पित कर विशेषांक आया है।

त्रिवेणी सभागार में साहित्यकारों का संगम
दर्शकों से भरे त्रिवेणी सभागार में कथाकार बलराम, प्रो. रवि शर्मा मधुप, हास्य कवि अरुण जैमिनी, प्रो. वेदमित्र शुक्ल, वरिष्ठ संपादक सौरभ कुमार गुप्त, विनीत पाण्डेय, उन्मेष गुप्त, विनय विनम्र, शशांक मिश्र, रघुवर दत्त शर्मा राघव, केशव मोहन पाण्डेय, कुमार सुबोध, ओंकार त्रिपाठी, अलका सिन्हा, मनीषा शुक्ला, शिवशंकर लोधा, अतुल प्रभाकर, सपना दत्ता, मो. इस्हाक़ खान, कृष्ण कुमार कनक, चिराग़ जैन, संतोष कुमार मिश्रा, डॉ राहुल, मृदुल अवस्थी और जयशंकर द्विवेदी आदि संकड़ों साहित्यकारों, कवि पत्रकारों लेखकों ने कार्यक्रम में उपस्थिति देकर आनंद लिया।

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