ओबीसी कोटा पर हाईकोर्ट की रोक के बाद तेलंगाना सरकार को सुप्रीम कोर्ट से झटका

सुप्रीम कोर्ट ने स्थानीय निकाय चुनावों में ओबीसी कोटा बढ़ाकर 42 प्रतिशत करने के तेलंगाना के कदम पर रोक लगाने वाले हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ तेलंगाना की याचिका खारिज कर दी और हाईकोर्ट को मामले पर फैसला करने का निर्देश दिया।

Update: 2025-10-16 08:46 GMT

Supreme Court On OBC Quota In Telangana : तेलंगाना में अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) आरक्षण को 42% तक बढ़ाने के राज्य सरकार के फैसले को लेकर गुरुवार (16 अक्टूबर) को बड़ा घटनाक्रम हुआ। सुप्रीम कोर्ट ने तेलंगाना सरकार की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें राज्य सरकार ने हाईकोर्ट के अंतरिम आदेश को चुनौती दी थी।

तेलंगाना हाईकोर्ट ने 9 अक्टूबर को सरकार के फैसले पर अंतरिम रोक लगाते हुए कहा था कि स्थानीय निकाय चुनावों में OBC आरक्षण बढ़ाने का निर्णय चुनावी प्रक्रिया शुरू होने के बाद नहीं लिया जा सकता।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा हाईकोर्ट अपने तरीके से फैसला दे

न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और संदीप मेहता की पीठ ने कहा कि हाईकोर्ट इस मामले की सुनवाई करते समय सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से प्रभावित हुए बिना निर्णय दे सकता है। यानी राज्य सरकार की अपील खारिज होने के बावजूद, हाईकोर्ट को पूरी स्वतंत्रता रहेगी कि वह इस मामले की मेरिट पर फैसला करे।

जस्टिस नाथ ने पूछा, "आरक्षण चुनाव से पहले क्यों नहीं लाया गया?"

सुनवाई के दौरान, जस्टिस नाथ ने राज्य की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता डॉ. अभिषेक मनु सिंघवी से सवाल किया कि सरकार ने चुनाव की अधिसूचना से पहले यह आरक्षण क्यों नहीं लागू किया।
इस पर सिंघवी ने बताया कि तेलंगाना के राज्यपाल ने बिल को मंजूरी नहीं दी थी और उसे लंबित रखा था। लेकिन सुप्रीम कोर्ट के तमिलनाडु गवर्नर केस के फैसले के अनुसार, यह बिल अब "माने हुए अनुमोदन" (deemed assent) से कानून बन चुका है। उन्होंने दलील दी कि बिना इस कानून को चुनौती दिए ही, उस पर रोक लगा दी गई।

"कानून को कैसे चुनौती दी जा सकती है?" 

इस पर न्यायमूर्ति नाथ ने सवाल किया, “कानून को कैसे चुनौती दी जा सकती है?” सिंघवी ने कहा कि अब यह बिल कानून बन चुका है और उस पर कार्यवाही भी शुरू हो चुकी है।
वहीं, याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ वकील गोपाल शंकरनारायणन ने कहा कि चुनौती सरकार के उस आदेश के खिलाफ है, जिससे आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत से ऊपर चली गई।
उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के के. कृष्णमूर्ति बनाम भारत संघ और विकास किशनराव गावली मामलों का हवाला देते हुए कहा कि किसी भी स्थानीय निकाय में आरक्षण देने से पहले “तीन परीक्षण” (triple tests) पूरे होने जरूरी हैं।
उन्होंने बताया, “पहले यह सीमा 15% (SC), 10% (ST) और 25% (OBC) थी यानी कुल 50% के भीतर।”

50% सीमा पर फिर बहस

शंकरनारायणन ने याद दिलाया कि सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश के मामलों में भी साफ कहा था कि स्थानीय निकाय चुनावों में आरक्षण 50% से ज़्यादा नहीं हो सकता।
इस पर सिंघवी ने पलटवार करते हुए कहा कि 50% की यह सीमा कोई “कठोर नियम” नहीं है, और राज्य सरकार ने बढ़ोतरी से पहले तीनों परीक्षण पूरे किए हैं।
लेकिन जस्टिस नाथ ने कहा, “आपके मुताबिक बिल और अध्यादेश तो अभी पूरी प्रक्रिया में हैं।”
जब सिंघवी ने कहा कि कानून पहले से लागू है, तो जस्टिस मेहता ने दोहराया कि ‘गावली’ केस का फैसला स्पष्ट रूप से 50% की सीमा पार करने की अनुमति नहीं देता।

सुप्रीम कोर्ट का निष्कर्ष: “चुनाव जारी रखें, हाईकोर्ट तय करेगा”

सिंघवी ने अंत में कहा कि ‘गावली केस’ में सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा था कि अगर राज्य के पास ठोस आंकड़े (empirical data) हों तो 50% सीमा से ऊपर भी आरक्षण दिया जा सकता है, और तेलंगाना ऐसा करने वाला एकमात्र राज्य है जिसने सर्वे कराया है।
इसके बाद पीठ ने कहा “राज्य अपने चुनाव जारी रख सकता है, राज्य की अपील खारिज की जाती है। यह आदेश हाईकोर्ट की स्वतंत्र सुनवाई को प्रभावित नहीं करेगा।”


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