शिवसेना-यूबीटी ने आवासीय भवनों में मराठियों के लिए मांगा आरक्षण, जानें वजह
उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना (यूबीटी) ने राज्य में बनने वाले नए आवासीय भवनों में मराठी समुदाय के लिए 50 प्रतिशत कोटा देने का आह्वान किया है.
Shivsena UBT Demanded Marathis Reservation: महाराष्ट्र में सरकारी नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में मराठा आरक्षण के लिए आंदोलन खत्म होते दिख नहीं रहा है. वहीं, उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना (यूबीटी) ने अब राज्य में बनने वाले नए आवासीय भवनों में मराठी समुदाय के लिए 50 प्रतिशत कोटा देने का आह्वान किया है. महाराष्ट्र से मराठियों के पलायन को रोकने के उद्देश्य से शिवसेना (यूबीटी) एमएलसी अनिल परब ने राज्य में बनने वाले नए आवासीय भवनों में मराठियों के लिए 50 प्रतिशत कोटा मांगने के लिए एक निजी सदस्य विधेयक पेश किया.
बता दें कि कोई भी सदन सदस्य अपनी व्यक्तिगत हैसियत से एक निजी विधेयक प्रस्तुत कर सकता है, जिसमें नए कानून या मौजूदा कानून में बदलाव की मांग की जा सकती है.
उद्देश्य
प्रस्तावित विधेयक के अनुसार, यदि कोई डेवलपर आवासीय भवन में मराठी लोगों को 50 प्रतिशत आरक्षण देने में विफल रहता है तो उसे छह महीने तक की जेल हो सकती है. विधेयक में किसी भी भेदभाव के मामले में 10 लाख रुपये का जुर्माना लगाने की भी बात कही गई है. इस विधेयक को महाराष्ट्र विधानसभा के मानसून सत्र में पेश किए जाने की संभावना है.
वहीं, परब ने आरोप लगाया है कि मराठी भाषी लोगों को महाराष्ट्र में उनके खानपान और धर्म के आधार पर घर देने से मना किया जा रहा है. मुंबई में मराठी लोगों की संख्या दिन-ब-दिन कम होती जा रही है और खानपान या धर्म के नाम पर मराठी लोगों को घर देने से मना करने के कई मामले सामने आए हैं. 105 शहीदों के बलिदान के बाद महाराष्ट्र को मुंबई मिली है. लेकिन महाराष्ट्रियों को अब मुंबई में घर देने से मना किया जा रहा है. महाराष्ट्रियों के लिए किराए पर घर मिलना मुश्किल है. इसलिए राज्य में बनने वाली नई इमारतों में 50 प्रतिशत घर महाराष्ट्रियों के लिए आरक्षित होने चाहिए. इस संबंध में कानून बनाने की तत्काल आवश्यकता है.
शिव सेना-यूबीटी नेता ने कहा कि एक बिल्डर ने मराठियों को उनकी खाद्य प्राथमिकताओं के कारण आवासीय कॉलोनी में घर खरीदने की अनुमति नहीं दी. अगर कोई अपवाद नहीं है और महाराष्ट्र में मराठियों को आवास देने से इनकार करने के कई उदाहरण हैं.
विधेयक पर राजनीतिक
प्रतिद्वंद्वी राजनीतिक दलों ने इस मुद्दे को अब उठाने के लिए शिवसेना-यूबीटी की आलोचना की है. भाजपा विधायक अतुल भटखलकर ने साल 2019 के विधानसभा चुनावों के बाद सत्ता में रहने के दौरान इस बारे में कुछ नहीं करने के लिए पार्टी की आलोचना की. उन्होंने कहा कि महा विकास अघाड़ी सरकार ने राज्य में ढाई साल तक शासन किया और उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री थे. परब एमवीए सरकार में मंत्री थे. परब ने उस दौरान कुछ क्यों नहीं किया? इसके अलावा उनकी पार्टी दो दशकों से अधिक समय तक बीएमसी (बृहन्मुंबई नगर निगम) में सत्ता में थी. परब को यह बताना चाहिए कि उनकी पार्टी ने मुंबई में मराठी बिल्डरों को प्रोत्साहित करने के लिए क्या किया.
राज्य में सत्तारूढ़ पार्टी एकनाथ शिंदे की अगुआई वाली शिवसेना ने भी परब पर निशाना साधते हुए कहा कि यह मुद्दा आगामी महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों के मद्देनजर उठाया गया है. शिवसेना प्रवक्ता अरुण सावंत ने कहा कि क्या अनिल परब और उनकी शिवसेना (यूबीटी) इतने दिनों तक सो रही थी? उन्हें मराठी मानुष को न्याय दिलाने के लिए यह काम बहुत पहले कर लेना चाहिए था. लेकिन 25 साल तक मुंबई पर राज करने के बाद भी शिवसेना मराठी लोगों को रोजगार और कारोबार मुहैया कराने में विफल रही.
न्यायालय में कानूनी जांच
कानूनी विशेषज्ञों ने परब द्वारा प्रस्तावित विधेयक की व्यवहार्यता पर संदेह व्यक्त किया है, जिसका उद्देश्य मुंबई में नए आवासों में से 50 प्रतिशत महाराष्ट्रियों के लिए आरक्षित करना है. उनका तर्क है कि यह संभवतः न्यायिक समीक्षा में टिक नहीं पाएगा. क्योंकि यह समानता के संवैधानिक सिद्धांत के विपरीत है. बॉम्बे हाई कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश आरडी धानुका ने कहा कि इस तरह के कोटे कानून के तहत अस्वीकार्य हैं. मुंबई की हाउसिंग सोसाइटियों द्वारा धर्म या समुदाय के आधार पर सदस्यता को प्रतिबंधित करने के प्रयास को अदालतों ने असंवैधानिक माना है.
सच्चाई
जैसा कि परब ने बताया कि अतीत में ऐसे कई उदाहरण रहे हैं, जहां विभाजनकारी प्रथाएं सामने आईं और लोगों को उनके धर्म या जाति के आधार पर खरीद/किराए के लिए संपत्ति देने से मना कर दिया गया. ऐसे ही एक मामले में पिछले साल सितंबर में मुलुंड पश्चिम हाउसिंग सोसायटी में एक 35 वर्षीय महिला को कार्यालय में जगह देने से कथित तौर पर इनकार कर दिया गया और उसके साथ दुर्व्यवहार किया गया. क्योंकि वह कथित तौर पर महाराष्ट्रीयन थी. इसके बाद मुलुंड पुलिस ने 80 वर्षीय प्रवीणचंद्र तन्ना और उनके 55 वर्षीय बेटे नीलेश तन्ना, जो बिल्डिंग के सचिव हैं, के खिलाफ मामला दर्ज किया. क्योंकि उन्होंने तृप्ति देवरुखकर को, जो शिव सदन बिल्डिंग में 150 वर्ग फीट की जगह किराए पर लेना चाहती थीं, अपने डिजिटल मार्केटिंग और सोशल मीडिया वेंचर को चलाने से कथित तौर पर रोका था. दोनों पर आईपीसी की धारा 341 (गलत तरीके से रोकना), 323 (स्वेच्छा से चोट पहुंचाना) और 504 (शांति भंग करने के इरादे से जानबूझकर अपमान करना) के तहत मामला दर्ज किया गया और बाद में जमानत पर रिहा कर दिया गया.
साल 2015 में एक महाराष्ट्रीयन व्यक्ति को मलाड में एक अपार्टमेंट खरीदने से मना कर दिया गया था. क्योंकि बिल्डर महाराष्ट्रियों, मुसलमानों और अन्य मांसाहारी खरीदारों को अपार्टमेंट नहीं बेच रहा था. साल 2009 में, अभिनेता इमरान हाशमी ने भी इसी तरह की कहानी सार्वजनिक की थी, जहां उन्हें उनके धर्म के कारण अपार्टमेंट देने से मना कर दिया गया था.