परिसीमन बैठक: स्टालिन का शक्ति प्रदर्शन और वैकल्पिक समाधान की तलाश

बैठक में इस बात पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा कि राज्य जनसंख्या आधारित परिसीमन का विरोध कैसे कर सकते हैं और वित्तीय रूप से अच्छा प्रदर्शन करने वाले राज्यों को 'दंडित' किए बिना इसे संचालित करने के तरीके प्रस्तावित किए जाएंगे.;

Update: 2025-03-20 15:24 GMT

तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन जनसंख्या आधारित परिसीमन के खिलाफ अपनी आवाज़ बुलंद कर रहे हैं और अब उन्हें देश के अन्य हिस्सों से भी राजनीतिक समर्थन मिल रहा है. उनके इस आंदोलन का मकसद यह सुनिश्चित करना है कि इस अभ्यास से आर्थिक रूप से सुदृढ़ राज्यों को कोई नुकसान न हो.

सर्वदलीय बैठक

22 मार्च को चेन्नई में स्टालिन की ओर से आयोजित की जा रही सर्वदलीय बैठक में कई राज्यों के मुख्यमंत्री और वरिष्ठ नेता शामिल होंगे. इस बैठक में यह मुद्दा उठाया जाएगा कि राज्य जनसंख्या आधारित परिसीमन का विरोध कैसे कर सकते हैं और इस प्रक्रिया को ऐसे तरीके से कैसे अंजाम दिया जा सकता है, जिससे आर्थिक रूप से मजबूत राज्यों को नुकसान न हो.

कौन-कौन होगा शामिल?

DMK सूत्रों के मुताबिक, केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन, तेलंगाना के ए रेवंत रेड्डी और पंजाब के भगवंत मान ने बैठक में अपनी भागीदारी की पुष्टि की है. इसके अलावा ओडिशा में बीजू जनता दल के प्रतिनिधि भी बैठक में शामिल होंगे. कर्नाटक के उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार की बैठक में भागीदारी को लेकर विवाद भी उठ चुका है. तमिलनाडु भाजपा के प्रमुख के. अन्नामलाई ने कर्नाटक को निमंत्रण भेजने पर विरोध का संकेत दिया है. क्योंकि दोनों राज्यों के बीच मेकेदातु डेम परियोजना को लेकर गंभीर विवाद चल रहा है.

पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और विभिन्न राज्यों के सेवानिवृत्त अधिकारियों, जिनमें आंध्र प्रदेश के ईएएस शर्मा भी शामिल हैं, ने भी बैठक में भाग लेने की सहमति दी है. हालांकि, आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू, जो केंद्र में एनडीए का हिस्सा हैं, को निमंत्रण भेजा गया था. लेकिन उन्होंने अब तक कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है.

आंदोलन का आह्वान

ईएएस शर्मा, जो दक्षिणी राज्यों के मुख्यमंत्री को संघीय अधिकारों की रक्षा के लिए एकजुट होने का आह्वान कर रहे हैं, ने The Federal से कहा कि दक्षिण और उत्तर के बीच स्पष्ट असंतुलन राजनीतिक और वित्तीय दृष्टि से गंभीर परिणाम ला सकता है. मैंने 1983 में एनटी रामाराव द्वारा आयोजित विपक्षी राज्यों के मुख्यमंत्री की बैठकों में भाग लिया था. उस समय एनटी रामाराव ने केंद्र से राज्य स्वायत्तता को कमजोर करने वाले निर्णयों को रद्द करने की अपील की थी. आज की स्थिति और भी चुनौतीपूर्ण है. उन्होंने कहा कि वर्तमान एनडीए सरकार, इंदिरा गांधी के समय से भी अधिक संघीय रुख के खिलाफ है और अब एक मजबूत आंदोलन की आवश्यकता है, जैसा कि एनटी रामाराव ने किया था.

सर्वदलीय बैठक का प्रस्ताव

तमिलनाडु में 5 मार्च को आयोजित एक राज्यस्तरीय सर्वदलीय बैठक में लगभग 40 राजनीतिक दलों ने भाग लिया. इस बैठक में सभी दलों ने केंद्र सरकार से मांग की कि लोकसभा सीटों की संख्या को स्थिर रखा जाए और 2026 के बाद 30 वर्षों तक संवैधानिक सीमाएं बनाए रखी जाएं. इस बैठक में एक प्रस्ताव पारित किया गया, जिसमें कहा गया कि तमिलनाडु का वर्तमान 7.18 प्रतिशत लोकसभा सीटों का हिस्सा परिसीमन के दौरान घटित नहीं किया जाना चाहिए. बैठक में बोलते हुए स्टालिन ने कहा कि 1971 की जनगणना को 2026 से 30 वर्षों तक लोकसभा सीटों के परिसीमन का आधार बनाना चाहिए. हम संसदीय सीटों की संख्या में वृद्धि की भी मांग करते हैं. उन्होंने यह भी कहा कि परिसीमन की तलवार दक्षिणी राज्यों के सिर पर लटक रही है.

नाराजगी और दबाव

राजनीतिक विश्लेषक आर इलांगोवन ने The Federal से बातचीत में कहा कि 22 मार्च की बैठक संसद में प्रतिनिधित्व और केंद्र से राज्यों को मिलने वाले फंड के वितरण पर पुनर्विचार के लिए अहम साबित हो सकती है. इलांगोवन ने बताया कि अधिकांश राज्य, खासकर गैर-बीजेपी शासित राज्यों में, पिछले कुछ वर्षों में बजट आवंटन में असंतोष बढ़ा है. बीजेपी शासित और गैर-बीजेपी शासित राज्यों के बीच फंड वितरण में असमानता बढ़ती जा रही है. स्टालिन का संघीय अधिकारों के लिए संघर्ष 2026 में होने वाले तमिलनाडु विधानसभा चुनाव में उनके अभियान को मजबूत कर सकता है. नई शिक्षा नीति (NEP) का विरोध, स्कूल शिक्षा के लिए अधिक फंड की मांग और अब परिसीमन का विरोध यह सभी संघीय मुद्दे तमिलनाडु के चुनावी मुद्दे बन गए हैं. डीएमके की राज्य स्वायत्तता की लड़ाई एनडीए शासन के तहत और तेज हो गई है.

वैकल्पिक समाधान की जरूरत

इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर पॉपुलेशन साइंसेज के वरिष्ठ वैज्ञानिक टीवी शेखर और अन्य विशेषज्ञों ने परिसीमन पर सर्वदलीय बैठक का स्वागत करते हुए कहा कि यह एक मंच प्रदान करता है, जहां वैकल्पिक समाधान तलाशे जा सकते हैं. शेखर ने The Federal से कहा कि परिसीमन को और अधिक समय तक टाला नहीं जा सकता. उन्होंने कहा कि संसदीय प्रतिनिधित्व को बेहतर बनाने के लिए परिसीमन जरूरी है. लेकिन इससे पहले केंद्रीय फंड के प्रवाह को लेकर दक्षिणी राज्यों को आश्वासन मिलना चाहिए. उन्होंने सुझाव दिया कि उत्तर प्रदेश जैसे अधिक जनसंख्या वाले राज्यों में एक सांसद द्वारा 30 लाख लोगों का प्रभावी प्रतिनिधित्व करना संभव नहीं हो सकता. इसके बजाय दक्षिणी राज्यों में सीटों की संख्या बनाए रखते हुए, उत्तर भारतीय राज्यों को अतिरिक्त सीटें दी जा सकती हैं. साथ ही, यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि दक्षिणी राज्यों को मिलने वाले फंड में कोई कमी न हो.

शेखर ने राज्यसभा के पुनर्गठन का भी प्रस्ताव दिया, जिसमें कहा कि राज्यसभा में अधिक सीटें दी जा सकती हैं, ताकि राज्य-विशेष मुद्दों को बेहतर तरीके से संबोधित किया जा सके. राज्यसभा में सदस्य राज्य विधानसभाओं द्वारा चुने जाते हैं और यह लोकसभा की तुलना में राज्य-विशेष मुद्दों के लिए एक बेहतर मंच हो सकता है.

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