तमिलानडु पुलिस के इतिहास में बड़ी कार्रवाई, कथित रेप केस में दो पर गिरी गाज
तमिलनाडु में दो पुलिस अधिकारियों को 18 वर्षीय युवती के कथित बलात्कार के मामले में तुरंत बर्खास्त किया गया। यह कार्रवाई शून्य सहिष्णुता और पुलिस सुधार का संदेश देती है।
तमिलनाडु में अधिकारियों द्वारा ‘अद्वितीय’ कार्रवाई में, दो पुलिस अधिकारियों को सेवा से बर्खास्त कर दिया गया है। यह कार्रवाई किसी न्यायालय द्वारा दोषसिद्धि पर आधारित नहीं बल्कि पुलिस आचार संहिता के गंभीर उल्लंघन के कारण की गई है। वरिष्ठ अधिकारियों ने कहा कि यह शून्य सहिष्णुता का सख्त संदेश देने के लिए लिया गया दुर्लभ निर्णय है।
कथित अपराध कैसे हुआ
घटना मंगलवार रात (30 सितंबर) की बताई जा रही है, जब दो महिलाएं एक मां और उनकी 18 वर्षीय बेटी आंध्र प्रदेश से तिरुवन्नामलाई के थोक सब्ज़ी बाजार जा रही थीं। वे एक मिनी लॉरी में टमाटर लेकर यात्रा कर रही थीं। उनके वाहन को तिरुवन्नामलाई ईस्ट पुलिस स्टेशन के दो गश्ती अधिकारी, पी. सुंदर और डी. सुरेश राज आंडल बाईपास के पास रोकते हैं।
महिलाओं से पूछताछ करने के बाद, कथित तौर पर इन दोनों ने लॉरी को आगे जाने दिया, लेकिन युवती को आगे की जांच के बहाने अपनी दो-पहिया वाहन पर बिठाकर एक सुनसान जगह ले गए और कथित रूप से बलात्कार किया।
जब मां ने मदद के लिए चिल्लाया और स्थानीय लोग बचाने आए, तो दोनों पुलिसकर्मी फरार हो गए। युवती को बेहोशी की हालत में पाया गया और तिरुवन्नामलाई सरकारी मेडिकल कॉलेज अस्पताल ले जाया गया। बाद में उसने बयान दिया, जिस आधार पर दोनों आरोपी अधिकारियों को गिरफ्तार कर उनकी सेवा से बर्खास्त कर दिया गया।
एक्टिविस्ट का स्वागत
सक्रिय कार्यकर्ता ए. देवनयन ने पुलिसकर्मियों के खिलाफ उठाए गए कदम का स्वागत किया और इसे कानूनी रूप से सही तथा नैतिक रूप से आवश्यक बताया। उन्होंने कहा, यह केवल कदाचार नहीं, बल्कि क्रूरता है। तत्काल बर्खास्तगी सही है क्योंकि यह आचार संहिता का गंभीर उल्लंघन है। यदि राज्य कार्रवाई में विलंब करता, तो जनता का विश्वास और कमज़ोर हो जाता।”
उन्होंने पुलिस में संस्थागत सुधार की आवश्यकता पर भी जोर दिया। उन्होंने कहा, “लिंग संवेदनशीलता केवल एक बार प्रशिक्षण नहीं हो सकती। यह नियुक्ति से शुरू होकर नियमित समीक्षा तक जारी रहनी चाहिए। अधिकारियों के व्यवहार की गुप्त जांच के साथ निगरानी प्रणालियां मजबूत करनी होंगी। हमें यह भी जांचना चाहिए कि क्या इन दोनों पुलिसकर्मियों ने पहले भी इसी तरह के कृत्य किए थे और बच निकले थे।
कार्रवाई और जिम्मेदारी
देवनयन ने यह भी कहा कि तमिलनाडु पुलिस को केवल बर्खास्तगी तक सीमित न रहकर जवाबदेही, निगरानी और दीर्घकालीन सुधारों पर जोर देना चाहिए।तमिलनाडु महिला आयोग की अध्यक्ष ए. कुमारी ने बताया कि संविधान के अनुच्छेद 311(2) के तहत असाधारण परिस्थितियों में विभागीय जांच के बिना सरकारी कर्मचारियों को बर्खास्त किया जा सकता है।
तमिलनाडु पुलिस के इतिहास में पहला मामला
हालांकि इससे पहले पुलिस अधिकारियों के खिलाफ लागू किया गया है, लेकिन यह संभवतः पहली बार है जब ड्यूटी पर तैनात अधिकारियों द्वारा किए गए यौन उत्पीड़न मामले में इसे इस्तेमाल किया गया। आम तौर पर बर्खास्तगी कोर्ट की दोषसिद्धि के बाद होती है, लेकिन इस मामले में गिरफ्तारी के तुरंत बाद ही, केवल कार्य व्यवहार और पीड़िता के शपथ पत्र के आधार पर यह कदम उठाया गया। सरकार ने इसे संस्थागत अखंडता बनाए रखने के लिए आवश्यक माना,” कुमारी ने कहा।
व्यापक प्रतिक्रिया और सुधार की मांग
यह मामला तमिलनाडु में व्यापक आक्रोश फैलाने वाला साबित हुआ है। महिला अधिकार समूहों ने तेज़ सुनवाई, पीड़िता सहायता और पुलिस सुधार की मांग की है।तमिलनाडु की सामाजिक कल्याण मंत्री गीथा जीवन ने हाल ही में राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड्स ब्यूरो (NCRB) के आंकड़ों का हवाला देते हुए राज्य की महिलाओं की सुरक्षा के प्रति मजबूत रुख का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि तमिलनाडु में यौन उत्पीड़न की दर राष्ट्रीय औसत से कम है — प्रति लाख आबादी 1.1 मामले, जबकि राष्ट्रीय औसत 4.7 है। साथ ही, तमिलनाडु में महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराधों में 90.6% मामलों में चार्जशीट दायर की जाती है, जो राष्ट्रीय औसत 75.5% से अधिक है।
यह कार्रवाई न केवल पीड़िता के लिए न्याय सुनिश्चित करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है, बल्कि पुलिस प्रशासन में जवाबदेही और सुधार की आवश्यकता को भी उजागर करती है।