एकनाथ शिंदे के गढ़ में BJP की सेंध? जनता दरबार ऐलान के बीच बढ़ी तनाव की अटकलें!
Mahayuti alliance: ठाणे में पोस्टर और बड़े होर्डिंग्स लगाए गए हैं. जिसे शिंदे की जिले में सत्ता पर सीधी चुनौती के रूप में देखा जा रहा है.;
Tension in Mahayuti: महाराष्ट्र के सत्तारूढ़ महायुति गठबंधन में शायद सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है. क्योंकि, कुछ इस तरह की चर्चा आम बात हो गई है कि बीजेपी और एकनाथ शिंदे की शिवसेना के बीच दरार पड़ गई है. लगातार शिंदे बनाम बीजेपी के बीच सोमवार को राज्य के वन मंत्री और बीजेपी नेता गणेश नाइक ने ठाणे में 'जनता दरबार' लगाने की घोषणा की. ठाणे उपमुख्यमंत्री और शिवसेना प्रमुख एकनाथ शिंदे का गढ़ माना जाता है. ऐसे में बीजेपी नेता के इस बयान ने सियासी गलियारों में हलचल मचा दी है.
इसको लेकर ठाणे में पोस्टर और बड़े होर्डिंग्स लगाए गए हैं. जिसे शिंदे की जिले में सत्ता पर सीधी चुनौती के रूप में देखा जा रहा है. नाइक ने 3 फरवरी को नवी मुंबई के वाशी में भी एक 'दरबार' आयोजित किया था. जो ठाणे में ही स्थित है और उन्होंने अपने कार्यक्रम के राजनीतिक महत्व को नकारते हुए कहा कि इसका एकमात्र उद्देश्य लोगों की समस्याओं का समाधान करना है.
शिंदे की शिवसेना और ठाणे के लोकसभा सांसद नरेश महास्के ने भी इस मुद्दे को हल्के में लिया और कहा कि लोगों को अपने राजनीतिक नेताओं से मिलने में आपत्ति क्यों है? ठाणे के टाउनहॉल पर विवाद महत्वपूर्ण है. क्योंकि नाइक और शिंदे के बीच की प्रतिद्वंद्विता कई साल पुरानी है. जब शिंदे शिवसेना के अविभाजित गुट (उद्धव ठाकरे के नेतृत्व में) से थे और नाइक अविभाजित एनसीपी (शरद पवार के नेतृत्व में) से थे. तब दोनों ठाणे और नवी मुंबई में प्रभाव के लिए प्रतिस्पर्धा कर रहे थे. हालांकि, अब कम से कम कागज पर वे एक ही पक्ष में हैं.
'मुझे हल्के में मत लो': एकनाथ शिंदे
इसके पीछे असंतोष और असुरक्षा का एक तत्व है, जो पिछले सप्ताह उभरकर सामने आया, जब शिंदे ने आलोचकों और प्रतिद्वंद्वियों को चेतावनी देते हुए कहा कि "मुझे हल्के में मत लो." उपमुख्यमंत्री शिंदे ने 2022 में उद्धव ठाकरे की सरकार गिराने में भाजपा की भूमिका का भी याद दिलाया.
शिंदे की शिवसेना और भाजपा के बीच तनाव पिछले साल उस समय से खत्म नहीं हुआ है. जब दोनों के बीच मुख्यमंत्री पद को लेकर विवाद हुआ था. एक पद जिसे शिंदे ने अपने शासन और प्रशासन के अच्छे प्रदर्शन के कारण अपना अधिकार माना था.
महायुति में उतार-चढ़ाव
पिछले कुछ महीनों में शिंदे शिवसेना के 55 सांसदों और विधायकों के लिए 'Y' श्रेणी की सुरक्षा कवर को वापस लेने या घटाने को लेकर विवाद उत्पन्न हुआ. यह सुरक्षा खतरों के नियमित आकलन के बाद हुआ. लेकिन शिंदे शिवसेना ने इसे अपमान के रूप में लिया. इसके अलावा रायगढ़ और नासिक जिलों के लिए 'सुरक्षामंत्रियों' की नियुक्तियों पर भी तनाव था. अब एक और संभावित विवाद है- किसानों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) तय करने में गड़बड़ी के आरोप, जो पहले की शिंदे सरकार के तहत हुआ था.
बीजेपी का कंट्रोल
शिंदे शिवसेना और भाजपा के बीच किसी भी असंतोष या मतभेद का फडणवीस सरकार की स्थिरता पर कोई असर पड़ने की आशंका नहीं है. भाजपा के पास विधानसभा में 132 सीटें हैं और राज्य के दूसरे उपमुख्यमंत्री अजित पवार द्वारा नेतृत्व किए गए एनसीपी गुट के पास 41 सीटें हैं. इससे भाजपा को बहुमत की सीमा से 28 सीटों का बफर मिलता है, भले ही शिंदे के पास 57 विधायक हों. इसका मतलब है कि शिवसेना प्रमुख को अपनी पूरी इच्छा के अनुसार सीधा प्रभाव नहीं मिल सकता.