UP Panchayat Polls: सहयोगी दल दिखा रहे ताकत, क्या BJP के लिए खतरे की घंटी?
यूपी में पंचायत चुनाव से पहले एनडीए के सहयोगी अपना दल, सुभासपा और निषाद पार्टी ने कार्यकर्ताओं को चुनाव के लिए तैयार होने के लिए कहा है। क्या ये बीजेपी के लिए मुश्किल का सबब बनेंगे।;
हमेशा चुनाव मोड में रहने वाली बीजेपी ने उत्तर प्रदेश में अगले साल के शुरू में होने वाले पंचायत चुनाव की तैयारी ज़ोर शोर से शुरू कर दी है। ऐसे में पार्टी बैठकों में अपने कार्यकर्ताओं को इस ज़िम्मेदारी के लिए तैयार करने में जुट गई है। लेकिन इस बीच एनडीए के सहयोगी दल अपनी ताकत दिखाने के लिए तैयार दिख रहे हैं। ऐसे में क्या पंचायत चुनाव को लेकर अपना दल, सुभासपा और निषाद पार्टी की तैयारी बीजेपी का खेल बिगाड़ सकती है? वहीं, यह भी कयास लगाए जा रहे हैं कि ये महज आगे होने वाले विधानसभा चुनाव में सीटों के बंटवारे से पहले अपने जातीय वोटों की ताक़त दिखाने की रणनीति है?
उत्तर प्रदेश में अगले साल जनवरी-फरवरी में होने वाले पंचायत चुनाव को विधानसभा चुनाव के सेमीफाइनल के तौर पर देखा जा रहा है। वजह यह कि हर पार्टी ज़मीन पर अपने कार्यकर्ताओं की मज़बूत टीम तैयार करना चाहती है और चुनाव से पहले जनता के बीच अपनी उपस्थिति दिखाना चाहती है। सत्तारूढ़ बीजेपी के सहयोगियों ने भी पंचायत चुनाव को लेकर मोर्चा संभाल लिया है। एनडीए के तीनों सहयोगियों अपना दल (सोनेलाल), सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी और निषाद पार्टी ने गठबंधन और सरकार में हिस्सेदारी के बावजूद अपने कार्यकर्ताओं को संदेश दे दिया है कि पंचायत चुनाव में ज़मीनी कार्यकर्ताओं को पूरी हिस्सेदारी मिलेगी। ज़ाहिर है जिले से लेकर गांव तक छोटे कार्यकर्ता उत्साहित नज़र आ रहे हैं।
एनडीए के तीनों सहयोगियों ने किया ऐलान
देखा जाए तो तीनों सहयोगियों की ये कोशिश उनकी रणनीति का संकेत दे रही है। यूपी में मौजूदा समय में बीजेपी की सबसे पुरानी सहयोगी अपना दल ( सोनेलाल ) की प्रमुख केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल ने लखनऊ में अपने कार्यकर्ताओं का उत्साह बढ़ाते हुए पंचायत चुनाव अकेले लड़ने का संकेत दिया। उन्होंने इसके लिए कार्यकर्ताओं को एकजुट होने के लिए कहा। कुछ समय से योगी आदित्यनाथ सरकार के विभागों में नियुक्तियों को लेकर निशाना साधने के बाद उनकी इस तैयारी और ऐलान को लेकर सियासी हलकों में चर्चा तेज हो गई है। हालांकि, अनुप्रिया पटेल मीडिया से बातचीत में यह कहने से बचती हुई दिखाई दी. लेकिन बस इतना कहा कि हर पार्टी के ज़मीनी और छोटे कार्यकर्ताओं की इच्छा पंचायत चुनाव लड़ने की होती है।
वहीं, 'कभी हां और कभी ना’ के अंदाज़ में एनडीए में बने रहने वाले ओम प्रकाश राजभर ने भी खुलकर अलग चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी है। निषाद पार्टी के डॉ संजय निषाद ने भी अपने लोगों और समाज की भागीदारी की बात कहते हुए पंचायत चुनाव में अपने कार्यकर्ताओं को खड़ा करने के लिए ताल ठोंक दी है।
प्रेशर पॉलिटिक्स या रणनीति
दरअसल, एनडीए के सहयोगियों की इस कवायद को 2027 में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले प्रेशर पॉलिटिक्स की रणनीति के तौर पर भी देखा जा रहा है। भले ही पंचायत चुनाव सिंबल पर न हो, लेकिन इन क्षेत्रीय पार्टियों के कार्यकर्ताओं के अलग चुनाव लड़ने से बीजेपी का नुकसान हो सकता है. इसके साथ ही विपक्ष भी एनडीए के सहयोगियों से तनातनी को भुना सकता है। पंचायत चुनाव स्थानीय स्तर कर कई बार मज़बूत प्रत्याशी को जीत मिलती है। ऐसे में अपने ही सहयोगी दल के प्रत्याशी अगर ज़्यादा जीत कर आते हैं तो विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी के ऊपर उनको चुनाव में ज़्यादा महत्व देने का दबाव बढ़ सकता है। वहीं, दूसरी वजह ज़मीन पर अपने कार्यकर्ताओं का हौंसला बढ़ाए रखना भी है। क्योंकि बीजेपी भी पंचायत चुनाव के बहाने अपने ज़मीनी कार्यकर्ताओं को मौक़ा देने और उनको संतुष्ट करने को प्राथमिकता देगी। पार्टी में हर क्षेत्र के लिए वेटिंग भी बहुत ज़्यादा है। ऐसे में तीनों सहयोगियों को बहुत ज़्यादा हिस्सेदारी की उम्मीद नहीं है।
हालांकि, राजनीतिक विश्लेषक रतन मणि लाल इसे सहयोगी दलों के लिए ‘ ज़रूरी कवायद ‘ मानते हैं। उनका कहना है कि इस तरह की पार्टियां एक सीमित वोट पर ही अपना प्रभाव रखती है। उनको पता है कि वो राज्य स्तरीय पार्टी नहीं बन सकती। ऐसे में बीजेपी से अलग होना इनके लिए भी नुक़सान का सौदा है। हालांकि, अपने कार्यकर्ताओं को मोटीवेट करने और पार्टी मूल्यांकन करने के लिए यह सही समय है।
जातीय जनगणना का ट्रंप कार्ड
हालांकि, मोदी सरकार द्वारा जातीय जनगणना कराने की घोषणा के फैक्टर को नजरंदाज नहीं किया जा सकता है। दरअसल, इन सहयोगी दलों को राजनीति उनकी जातियों पर आधारित है। ऐसे में एनडीए के सहयोगी रहते हुए न सिर्फ़ ये दल जातीय जनगणना की मांग खुले तौर पर करते रहे हैं, बल्कि अपने वोटरों को इसका मैसेज देते रहे हैं। ये दल इस घोषणा के बाद अपना क्रेडिट लेना चाहेंगे तो वहीं बीजेपी भी इन जातियों का समर्थन लेने की भी कोशिश करेगी। इन दलों के वोट पटेल, निषाद, राजभर, बिंद, कश्यप पर भी बीजेपी की नजर है।