लिंगायत समुदाय ने सरकारी जनगणना पर उठाए सवाल, कर्नाटक में शुरू किया निजी जाति सर्वेक्षण
लिंगायत समूहों का कहना है कि उनकी जनसंख्या में गिरावट गलत आत्म-रिपोर्टिंग के कारण है. क्योंकि उनमें से कई ने आरक्षण लाभ पाने की उम्मीद में खुद को उप-संप्रदाय बताया है.;
कर्नाटक में वीरशैव-लिंगायत समुदाय की घटती जनसंख्या को लेकर खलबली मच गई है. सरकारी आंकड़ों के लीक होने के बाद समुदाय के नेताओं ने अपनी असली जनसंख्या जानने के लिए एक निजी जाति सर्वेक्षण आयोजित करने का निर्णय लिया है.
महासभा ने तैयार किया सॉफ़्टवेयर
अखिल भारतीय वीरशैव लिंगायत महासभा, जो इस समुदाय का प्रतिनिधित्व करती है, ने इस सर्वेक्षण को सफल बनाने के लिए एक सॉफ़्टवेयर तैयार किया है. महासभा के सचिव एचएम रेणुका प्रसन्ना ने द फेडरल से बातचीत करते हुए कहा कि हमने एक सॉफ़्टवेयर विकसित किया है, जो समुदाय के सभी उप-संप्रदायों को शिक्षा, रोजगार, आर्थिक स्थिति और उप-जाति के बारे में जानकारी दर्ज करने की अनुमति देगा. इस सर्वेक्षण को उचित समय पर शुरू किया जाएगा.
जनसंख्या में गिरावट की आशंका
यह कदम बैकवर्ड क्लासेज़ कमीशन से लीक हुए आंकड़ों पर आधारित है, जिनमें कर्नाटक में लिंगायतों की जनसंख्या में गिरावट को दर्शाया गया था. रिपोर्ट के अनुसार, लिंगायत जनसंख्या 17-18 प्रतिशत से घटकर 10 प्रतिशत के आसपास आ गई है, जिससे इस समुदाय में हड़कंप मच गया है.
AHINDA वोट बैंक
कर्नाटक के राजनीतिक हालात को देखते हुए पिछड़ी जातियों के नेताओं का दबाव सरकार पर है कि वह जल्दी से जाति सर्वेक्षण लागू करे. इसका उद्देश्य AHINDA वोट बैंक (अल्पसंख्यक, पिछड़ी जातियां और दलित) की ताकत का सही आकलन करना है. सिद्धारमैया सरकार ने इस सर्वेक्षण को कैबिनेट में पेश करने का संकेत दिया है, ताकि यह स्पष्ट किया जा सके कि AHINDA समूहों की जनसंख्या लिंगायतों और वोक्कालिगा समुदायों से अधिक है.
लिंगायत और वोक्कालिगा समुदाय में नाराजगी
लिंगायत और वोक्कालिगा समुदायों के नेताओं को सरकारी जाति सर्वेक्षण रिपोर्ट में आई गिरावट से आश्चर्य हुआ है. लीक हुई जानकारी के मुताबिक, लिंगायतों की जनसंख्या 10 प्रतिशत से भी कम हो गई है और वोक्कालिगाओं की संख्या भी घटकर 8 प्रतिशत रह गई है. दोनों समुदायों के नेता यह मानते हैं कि यह आंकड़े उनकी राजनीति में महत्वपूर्ण स्थान को नजरअंदाज करते हैं.
भाजपा का आरोप
बीजेपी ने आरोप लगाया है कि मुख्यमंत्री सिद्धारमैया जाति सर्वेक्षण का उपयोग राजनीतिक लाभ लेने के लिए कर रहे हैं. उनका कहना है कि यह सर्वेक्षण जानबूझकर लिंगायत और वोक्कालिगा समुदायों को कम आंकने के लिए डिजाइन किया गया है. वहीं, महासभा का लक्ष्य समुदाय के सभी उप-संप्रदायों की वास्तविक संख्या का आकलन करना है. महासभा ने कर्नाटक के विभिन्न जिलों और तालुका में समितियां बनाई हैं और सर्वेक्षण इन्हीं इकाइयों के माध्यम से किया जाएगा. यह सर्वेक्षण पूरी तरह से निजी होगा, ताकि जनसंख्या को सही तरीके से रेखांकित किया जा सके.
आरक्षण का मुद्दा
वीरशैव-लिंगायत समुदाय में करीब 101 उप-संप्रदाय हैं, जिनकी पहचान कर्नाटक के आरक्षण सूची में अलग-अलग श्रेणियों में की गई है. इन उप-संप्रदायों में से कई श्रेणी-1 और 2A में आते हैं, जिससे वे सरकारी योजनाओं का लाभ उठा सकते हैं. हालांकि, इन समुदायों के बहुत से लोग सरकारी रिकॉर्ड में लिंगायत के रूप में पंजीकरण नहीं कराते, जिससे जनसंख्या का सही आंकलन करना मुश्किल हो जाता है.
आरक्षण की चिंता
वीरशैव-लिंगायत समुदाय के कई प्रमुख उप-संप्रदाय जैसे जंगम, अराध्य, पंचमासली आदि बनजिगा और अन्य, सरकार के रिकॉर्ड में लिंगायत के रूप में पंजीकरण नहीं कराते. क्योंकि वे आरक्षण लाभ को लेकर चिंतित रहते हैं. वे डरते हैं कि यदि वे लिंगायत के रूप में पंजीकरण कराते हैं तो उन्हें आरक्षण में कोई लाभ नहीं मिलेगा और उन्हें अन्य प्रमुख समूहों के साथ प्रतिस्पर्धा करनी पड़ेगी.
महासभा की योजना
वीरशैव-लिंगायत महासभा ने स्पष्ट किया है कि सरकारी जाति सर्वेक्षण उनके समुदाय की सही जनसंख्या को नकारात्मक रूप से प्रस्तुत करता है, जिसके परिणामस्वरूप शिक्षा, रोजगार और राजनीतिक प्रतिनिधित्व में भेदभाव हो सकता है. महासभा अब अपनी जनसंख्या का सही आंकलन पेश करेगी और सरकार पर दबाव डालेगी कि उसे स्वीकार किया जाए.
आगे क्या होगा?
अब यह देखना होगा कि सरकार एक निजी समुदाय द्वारा किए गए जाति सर्वेक्षण को कैसे स्वीकार करेगी और क्या इसका वास्तविक प्रभाव राज्य की राजनीति पर पड़ेगा.