Tamil Nadu Politics: 2026 चुनाव विजय के लिए प्रयोगशाला, असली निशाना 2031

टॉकिंग सेंस विद श्रीनी' में एस. श्रीनिवासन का विश्लेषण है कि विजय की नजर फिलहाल 2026 चुनाव पर नहीं, बल्कि 2031 की लंबी राजनीतिक रणनीति पर है।;

Update: 2025-07-06 01:33 GMT

इस सप्ताह ‘टॉकिंग सेंस विद श्रीनी’ के नए एपिसोड में The Federal के एडिटर-इन-चीफ़ एस. श्रीनिवासन ने अभिनेता विजय के राजनीति में उतरने और 2026 के तमिलनाडु विधानसभा चुनाव पर इसके असर का विश्लेषण किया। विजय की पार्टी तमिऴग विट्ट्री कषगम (TVK) ने हाल ही में उन्हें आधिकारिक तौर पर मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया है। चर्चा का मुख्य केंद्र यह रहा कि क्या विजय तमिल राजनीति की स्थापित धारा में कोई बड़ी सेंध लगा सकते हैं?

द्रविड़ दिग्गजों को चुनौती?

श्रीनिवासन के अनुसार, विजय की राजनीति में एंट्री से तमिलनाडु की राजनीतिक हलचल बढ़ेगी, लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या यह हलचल एक सुनामी में बदल सकती है? तमिलनाडु की राजनीति दशकों से DMK और AIADMK जैसे द्रविड़ दलों के प्रभुत्व में रही है। इस दोध्रुवीय सत्ता संरचना को चुनौती देने के लिए सिर्फ लोकप्रियता नहीं, बल्कि मजबूत संगठनात्मक ढांचा, पर्याप्त आर्थिक संसाधन और जमीनी स्तर पर गहरा जुड़ाव भी चाहिएऔर इन पहलुओं पर विजय अभी तक परखे नहीं गए हैं।

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DMK और BJP से दूरी

विजय ने ना केवल DMK को अपना राजनीतिक शत्रु बताया है बल्कि भ्रष्टाचार और वंशवाद को लेकर आलोचना भी की है। वहीं BJP को उन्होंने 'वैचारिक शत्रु' करार दिया। लेकिन AIADMK के खिलाफ़ उनकी आलोचना काफी हल्की रही हैय़संभवतः यह एक रणनीतिक चुप्पी है, ताकि उस दल के समर्थक नाराज़ न हों।

2026: तैयारी या प्रयोग?

श्रीनिवासन इस बात की ओर ध्यान दिलाते हैं कि विजय का यह कदम 2026 में चुनाव लड़ने से ज्यादा, 2031 की राजनीति की दिशा तय करने की दीर्घकालिक रणनीति हो सकती है। यानी विजय अभी पानी परख रहे हैं।

सिनेमा से राजनीति में आए एमजीआर और जयललिता की सफलता के विपरीत, विजयकांत, रजनीकांत और कमल हासन जैसे सितारों का राजनीतिक सफर संघर्षपूर्ण रहा है। विजयकांत ने शुरुआती दिनों में अच्छी पकड़ बनाई थी, लेकिन उनकी गति जल्दी धीमी हो गई।

 केजरीवाल मॉडल नहीं चल पाएगा?

श्रीनिवासन का मानना है कि तमिलनाडु की राजनीति कैडर-बेस्ड और गहरे जमीनी ढांचे पर टिकी है। दिल्ली में अरविंद केजरीवाल की तरह कोई भी तेज़ राजनीतिक उभार यहां मुश्किल है क्योंकि राज्य में कोई निर्णायक संकट मौजूद नहीं है जिससे सत्ता-विरोधी लहर उठे।

गठबंधन और वित्तीय चुनौतियां

DMK और AIADMK-BJP गुट इस समय मजबूत स्थिति में हैं। विजय कोई तीसरा मोर्चा बनाने की कोशिश कर सकते हैं, लेकिन इतिहास गवाह है कि ऐसे मोर्चे तमिलनाडु में टिक नहीं पाए हैं।इतना ही नहीं, चुनाव अभियान और सहयोगी दलों के लिए पर्याप्त फंडिंग एक और बड़ी चुनौती होगी।

द्रविड़ के साथ साथ तमिल अस्मिता का मिश्रण

विजय की वैचारिक रणनीति दिलचस्प है। वे द्रविड़वाद और तमिल उप-राष्ट्रीयता को मिलाकर एक 'हाइब्रिड नैरेटिव' बना रहे हैं, जिससे युवा मतदाता और राजनीति से दूरी बनाए लोगों को आकर्षित किया जा सके। लेकिन उनकी प्रशासनिक अनुभव की कमी, नीतिगत स्पष्टता और जमीनी जुड़ाव पर सवाल अब भी बाकी हैं।

एस. श्रीनिवासन के शब्दों में "हां, उन्होंने निश्चित रूप से राजनीतिक पानी में हलचल मचाई है। लेकिन क्या यह हलचल सुनामी बनेगी? अब तक तो नहीं।" 2026 का चुनाव विजय के लिए पहला बड़ा इम्तिहान होगा, पर असली परीक्षा शायद 2031 में होनी बाकी है। अभी के लिए, उनकी एंट्री तमिल राजनीति को रोचक तो बना ही रही है।

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