पश्चिम बंगाल: तीन दशक पुरानी उद्योग नीति खत्म, निवेशकों में भारी नाराजगी

पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा उद्योगों के लिए दी जा रही रियायतों की समाप्ति से राज्य की आर्थिक साख, निवेश आकर्षण और औद्योगिक भविष्य पर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं।;

Update: 2025-06-13 13:53 GMT

पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा पिछले तीन दशकों से चल रही औद्योगिक प्रोत्साहन योजना को रद्द करने के फैसले से प्रदेश में निवेश माहौल बिगड़ने की आशंका गहराने लगी है। तृणमूल कांग्रेस (TMC) सरकार के इस कदम से उद्योग जगत में नाराज़गी है और कई कंपनियां अब कानूनी विकल्पों पर विचार कर रही हैं।

तीन दशक पुरानी योजना रद्द

साल 1993 से जारी औद्योगिक प्रोत्साहन योजनाओं को समाप्त करते हुए राज्य सरकार ने हाल ही में "पश्चिम बंगाल प्रोत्साहन योजना निरसन एवं अनुदान समाप्ति अधिनियम, 2025" को लागू किया है। यह कानून पूर्व प्रभाव (retrospective) से लागू किया गया है, जिससे न केवल वर्तमान बल्कि लंबित सब्सिडी, टैक्स रिफंड और अन्य लाभ भी अब नहीं मिलेंगे। कम से कम तीन कंपनियों के अधिकारियों ने The Federal को नाम न छापने की शर्त पर बताया कि वे सरकार से करोड़ों रुपये की बकाया राशि को लेकर अदालत का रुख करेंगी।

निवेश पर असर

टैक्स विशेषज्ञ सुदीप साहा ने बताया कि यह कानून चल रहे अदालती मामलों और मध्यस्थता प्रक्रियाओं को भी शून्य कर देता है, जिससे निवेशकों का सरकार पर भरोसा डगमगाने की पूरी आशंका है। यह निर्णय निवेशकों के विश्वास को चोट पहुंचाएगा और भविष्य में निवेश को हतोत्साहित करेगा।

राज्य की आर्थिक साख पर असर

क्रेडिट रेटिंग एजेंसी CareEdge की 2025 रैंकिंग में पश्चिम बंगाल 17 बड़े राज्यों में 13वें स्थान पर रहा। यह रैंकिंग आर्थिक, वित्तीय, आधारभूत संरचना, सामाजिक और पर्यावरणीय मानकों पर आधारित थी। FDI (विदेशी निवेश) के मामले में भी राज्य पिछड़ा हुआ है। वाणिज्य मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार, बंगाल को पिछले वित्त वर्ष में मात्र ₹2,534 करोड़ का विदेशी निवेश मिला, जो देश के टॉप 10 राज्यों में शामिल नहीं हो सका। राज्य 11वें स्थान पर रहा, जबकि हरियाणा और केरल जैसे छोटे राज्य इससे आगे रहे।

भूमि अधिग्रहण नीति

बंगाल सरकार की "भूमि अधिग्रहण में सरकारी भूमिका नहीं" वाली नीति भी बड़े उद्योगों की हिचकिचाहट की एक बड़ी वजह मानी जाती है। निवेशकों को ज़मीन खुद खरीदनी पड़ती है या फिर राज्य के "लैंड बैंक" से सीमित विकल्प मिलते हैं, जो प्रायः पिछड़े इलाकों में स्थित होते हैं। राज्य में औसतन 0.77 हेक्टेयर की जमीन होने से बड़े उद्योगों को कई ज़मीन मालिकों से व्यक्तिगत तौर पर सौदे करने पड़ते हैं, जिससे प्रक्रिया जटिल हो जाती है।

सरकार का पक्ष

राज्य सरकार ने दावा किया कि यह कदम "जनहित" में उठाया गया है। इन प्रोत्साहनों का लाभ सीमित उद्योगों तक ही सीमित रह गया था और राज्य के समग्र औद्योगीकरण पर इनका प्रभाव नगण्य रहा। सरकार का कहना है कि इस योजना को खत्म कर ₹1.58 लाख करोड़ की सामाजिक योजनाओं और अन्य गैर-योजना खर्चों के लिए बजट उपलब्ध कराया जा सकेगा।

राजकोष पर बढ़ता दबाव

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि राज्य को अपने कर्मचारियों को बकाया महंगाई भत्ते (DA) का 25% हिस्सा 6 हफ्तों में देना होगा। इससे सरकार पर ₹11,000 करोड़ का तत्काल वित्तीय दबाव आएगा। वर्तमान में राज्य की कुल उधारी सकल घरेलू उत्पाद (GSDP) का 38% है और वित्तीय दायित्वों को पूरा करने के लिए राज्य लगातार उधारी पर निर्भर है।

भविष्य की चिंताएं

बीजेपी नेता और वकील तरुणज्योति तिवारी ने कहा कि इस फैसले से बंगाल में निवेश का माहौल और खराब होगा। जब राज्य सरकार खुद अपने वादों से मुकर रही है तो कौन सा निवेशक जोखिम उठाना चाहेगा?

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