Kolkata Rape-Murder: ममता सरकार का पार्टी के अंदर से ही विरोध? TMC लीडर कर रहे खुली आलोचना

पश्चिम बंगाल में सत्तारूढ़ टीएमसी कोलकाता के आरजी कर कॉलेज एवं अस्पताल में ट्रेनी डॉक्टर के बलात्कार और हत्या के बाद काफी संकट का सामना कर रही है.

Update: 2024-08-20 17:10 GMT

Kolkata Trainee Doctor Rape Murder: पश्चिम बंगाल में सत्तारूढ़ टीएमसी कोलकाता के आरजी कर कॉलेज एवं अस्पताल में ट्रेनी डॉक्टर के बलात्कार और हत्या के बाद काफी संकट का सामना कर रही है. ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली टीएमसी सरकार को अपनी पार्टी की ओर से कभी भी खुले तौर पर विरोध का सामना नहीं करना पड़ा. लेकिन वरिष्ठ टीएमसी नेताओं द्वारा सरकार के निर्णयों की खुली आलोचना, प्रशासनिक अनियमितता और पार्टी के दूसरे सबसे वरिष्ठ नेता अभिषेक बनर्जी का अलग-थलग होना पार्टी और सरकार के बीच मतभेदों की तरफ इशारा करते हैं.

पार्टी और सरकार के बीच दरार

पार्टी सूत्रों ने द फेडरल को बताया कि अभिषेक के कार्यालय द्वारा पार्टी के मीडिया प्रबंधन की जिम्मेदारी से खुद को मुक्त कर लेना और क्रूर घटना पर सोशल मीडिया की कहानियों का मुकाबला करने के लिए टीएमसी के आईटी सेल का लगभग निष्क्रिय रहना, इन मतभेदों का नतीजा है. अभिषेक ममता बनर्जी की 16 अगस्त को आयोजित रैली में भी अनुपस्थित रहे थे, जिसमें इस जघन्य अपराध के दोषियों को मृत्युदंड देने की मांग की गई थी.

पार्टी में सबसे पहले इस बात पर सवाल उठाए गए कि सरकार ने डॉ. संदीप घोष को आरजी कर कॉलेज एवं अस्पताल से इस्तीफा देने के चार घंटे के भीतर ही नेशनल मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल के रूप में फिर से नियुक्त कर दिया. जबकि 9 अगस्त की घटना में उनकी भूमिका जांच के दायरे में थी.

पूर्व प्रिंसिपल पर नरम रुख

ममता बनर्जी के स्वास्थ्य विभाग द्वारा उन्हें महत्वपूर्ण पद देने का निर्णय स्पष्ट रूप से टीएमसी के भीतर उत्तर बंगाल लॉबी के नाम से जाने जाने वाले एक गुट से प्रभावित था. पार्टी महासचिव अभिषेक बनर्जी सहित पार्टी के एक बड़े वर्ग ने कथित तौर पर इस बात पर सवाल उठाया कि ऐसे समय में जब प्रदर्शनकारी डॉक्टर उन पर उंगली उठा रहे हैं, सरकार को उनके साथ खड़े होने की जरूरत है. इसके बाद कलकत्ता हाई कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद ही यह निर्णय पलटा गया. अगर सरकार ने शुरू में डॉ. घोष के साथ नरमी से व्यवहार नहीं किया होता तो यह आंदोलन बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन में नहीं बदल पाता.

टीएमसी के राज्यसभा सांसद शांतनु सेन ने कहा कि ममता बनर्जी, जिनके पास गृह और स्वास्थ्य विभाग भी हैं, को आरजी कर कॉलेज और अस्पताल की जमीनी स्थिति के बारे में सही जानकारी नहीं दी गई. वह सरकार के फैसले पर सवाल उठाने वाले पहले लोगों में से थे. समाज और विपक्ष के दबाव के चलते सरकार ने नुकसान की भरपाई के लिए कदम उठाया और मंगलवार (20 अगस्त) को डॉ. घोष और अन्य के खिलाफ एक साल पहले लगाए गए भ्रष्टाचार के आरोपों के तहत एफआईआर दर्ज की गई.

एक दिन पहले सरकार ने आरजी कर अस्पताल में जनवरी 2021 से अब तक वित्तीय अनियमितताओं के आरोपों की जांच के लिए चार सदस्यीय विशेष जांच दल गठित करने की घोषणा की थी. टीएमसी के एक अन्य राज्यसभा सांसद जवाहर सरकार ने कहा कि यह बहुत पहले ही किया जाना चाहिए था. उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म फेसबुक पर डॉ. घोष को तत्काल निलंबित करने की मांग की.

हिरासत में पूछताछ के लिए आह्वान

एक अन्य टीएमसी नेता सुखेंदु शेखर रॉय ने आरजी कर के पूर्व प्रिंसिपल और कोलकाता पुलिस कमिश्नर विनीत गोयल से सीबीआई द्वारा “हिरासत में पूछताछ” की मांग की, ताकि यह पता लगाया जा सके कि बलात्कार और हत्या के बारे में “आत्महत्या की कहानी किसने और क्यों फैलाई”. 14 अगस्त की रात को अस्पताल में भीड़ की हिंसा से निपटने के पुलिस के तरीके की भी अभिषेक सहित कई पार्टी नेताओं ने कड़ी आलोचना की थी.

तबादले का आदेश वापस

पार्टी ने सरकार को 42 डॉक्टरों के तबादले के आदेश को वापस लेने के लिए भी मजबूर किया. शनिवार के आदेश को सरकारी डॉक्टरों के खिलाफ़ प्रतिशोधात्मक कदम के रूप में देखा गया, जिन्होंने आरजी कर घटना के खिलाफ़ खुलेआम विरोध किया था. हालांकि स्वास्थ्य विभाग ने दावा किया था कि यह एक नियमित तबादला था. रविवार को ईस्ट बंगाल और मोहन बागान के बीच होने वाले फुटबॉल मैच को रद्द करने का पुलिस का कदम भी पार्टी को रास नहीं आया. टीएमसी प्रवक्ता कुणाल घोष ने फैसले के तुरंत बाद अपनी प्रतिक्रिया में कहा कि यह फैसला गलत संकेत देगा. हालांकि, बाद में उन्होंने आलोचना को कम कर दिया.

पुलिस, नौकरशाही का दबदबा

टीएमसी के एक सूत्र ने कहा कि पार्टी में आम राय यह है कि यह आत्मघाती हमला था. अंदरूनी तौर पर यह विरोध मुख्य रूप से इसलिए है. क्योंकि टीएमसी के भीतर यह भावना बढ़ रही है कि नौकरशाही और पुलिस पार्टी के नेतृत्व वाली सरकार पर अधिक प्रभाव डाल रही है. टीएमसी के अंदरूनी सूत्रों के अनुसार, कई पुलिस अधीक्षक, प्रखंड विकास अधिकारी और पुलिस थानों के प्रभारी अधिकारी कथित तौर पर पार्टी के जमीनी स्तर के कामकाज में भी फैसले लेते हैं.

अभिषेक लंबे समय से भारतीय राजनीतिक कार्रवाई समिति (आई-पीएसी) की मदद से पार्टी संगठन में सुधार लाने और पार्टी के मामलों में सरकारी अधिकारियों के प्रभाव को कम करने का प्रयास कर रहे हैं. कथित तौर पर वे सरकार और पार्टी दोनों में कुछ बदलावों पर जोर दे रहे हैं. क्योंकि लोकसभा चुनावों में शहरी इलाकों में टीएमसी का प्रदर्शन उम्मीदों के मुताबिक नहीं रहा. उनका खेमा आरजी कर मामले में बदलाव के लिए दबाव बनाने का मौका देख रहा है.

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