मैसूर दशहरे का महारथी अभिमन्यु, विदाई की अंतिम गूंज

60 की उम्र के करीब पहुंच रहे 'AK-47 हाथी' अभिमन्यु का 2025 में आखिरी मैसूर दशहरा हो सकता है। दशकों से चला आ रहा गौरवमयी युग हो सकता है समाप्त।;

Update: 2025-08-01 03:48 GMT
अभिमन्यु, हाथी (बीच में) जिसने 2020 से जंबो सवारी का नेतृत्व पूरी ताकत और शालीनता से किया है, इस साल विजयादशमी पर अपनी अंतिम यात्रा निकाल सकता है, क्योंकि उसकी आधिकारिक सेवानिवृत्ति की आयु 60 वर्ष के करीब है।

कर्नाटक के लोगों के लिए मैसूरु दशहरा केवल एक पर्व नहीं, बल्कि 'नाडा हब्बा' एक सांस्कृतिक गौरव, परंपरा और पहचान का उत्सव है। इस राजसी जुलूस के केंद्र में इस वर्ष भी एक नाम सबसे ज्यादा चमकेगा। अभिमन्यु, वह भव्य हाथी जिसने बीते पांच वर्षों से दशहरे के विजया दशमी पर निकलने वाली 'जम्बो सवारी' में 750 किलोग्राम वजनी गोल्डन हौदा (अंबारी) को अपने सधे हुए गरिमामय कदमों से ढोया है।

अभिमन्यु की शांति, अनुशासन और वीरता की कहानियां कर्नाटक के जंगलों से लेकर महलों तक फैली हुई हैं। उन्होंने कई बार मानव-वन्यजीव संघर्ष के दौरान जंगली हाथियों और बाघों को पकड़ने में अग्रणी भूमिका निभाई है, जिससे उन्हें राज्यभर में अपार लोकप्रियता और सम्मान प्राप्त हुआ।

केवल अबिमन्यु नहीं, पूरी एक टीम है इस गौरव का हिस्सा

अभिमन्यु अकेले नहीं चलते  वे एक विशेष रूप से चुने गए हाथियों की टीम के अग्रणी होते हैं। इस दल में शामिल होते हैं बहादुर भीमा, शांत कावेरी, और अनुभवी धनंजय जैसे दंतधारी, जिनका अपना-अपना व्यक्तित्व और प्रशंसक वर्ग है। इन सभी को स्थानीय लोग केवल परेड का हिस्सा नहीं, बल्कि अपने परिवार का सदस्य मानते हैं। मैसूरु दशहरा की खास बात यह है कि इस राजकीय परंपरा का नेतृत्व राजाओं द्वारा नहीं, बल्कि हाथियों द्वारा किया जाता है और इस परंपरा का सबसे चमकता सितारा है अभिमन्यु।

अभिमन्यु का आखिरी ड़सारा? बढ़ती उम्र बनी चिंता का विषय

2020 में प्रसिद्ध हाथी अर्जुन के सेवानिवृत्त होने के बाद से अभिमन्यु ने गोल्डन हौदा उठाने की जिम्मेदारी संभाली थी। लेकिन अब, जैसे ही अभिमन्यु 60 वर्ष के करीब पहुँच रहे हैं, सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों के अनुसार वे न तो भारी भार उठा सकते हैं, न ही ऑपरेशनल गतिविधियों में भाग ले सकते हैं।

हालांकि वन अधिकारी कहते हैं कि अभिमन्यु फिलहाल स्वस्थ और सक्षम हैं, लेकिन अगले वर्ष यह स्थिति बदल सकती है। इसीलिए 2025 का दशहरा, शायद अभिमन्यु का अंतिम जुलूस बन जाए  और यही इसे और भी भावनात्मक बना देता है।

जंगलों का हीरो, राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त ‘AK-47’ हाथी

अभिमन्यु की कहानियां किंवदंती बन चुकी हैं। जब मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में जंगली हाथियों ने आतंक फैलाया था, तब अबिमन्यु और उसकी टीम ने चार महीने तक जंगल छानकर 70 से अधिक हाथियों को पकड़ा था। वे 300 से अधिक हाथी पकड़ने के ऑपरेशनों और 80 से अधिक बाघ बचाव अभियानों में भाग ले चुके हैं।

‘The Last Migration – Wild Elephant Capture’ नामक डॉक्यूमेंट्री में उनकी वीरता को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दिखाया गया, जिसमें 42 दिनों का ऑपरेशन दिखाया गया था। अभिमन्यु को 1970 में नागरहोले के हेब्बल क्षेत्र में 'खेड़ा' तकनीक से पकड़ा गया था और उनके पहले महावत शन्नप्पा द्वारा प्रशिक्षित किया गया। अब देखभाल की जिम्मेदारी उनके बेटे वसंत निभाते हैं।

'शहर में शांत, जंगल में शेर'

द फेडरल से बातचीत में महावत वसंत कहते हैं, “अभिमन्यु शहर में शांत और आज्ञाकारी होता है, लेकिन जंगल में वह असली योद्धा बन जाता है। उन्होंने बताया कि अभिमन्यु ने महाराष्ट्र, तमिलनाडु, केरल और मध्य प्रदेश में 200 से ज्यादा जंगली हाथियों को पकड़ा है। हसन जिले में हाल ही में एक उत्पाती हाथी को पकड़ने का श्रेय भी अभिमन्यु को ही जाता है। इस कारण वसंत उन्हें ‘AK-47 हाथी’ कहकर पुकारते हैं। उनकी सेवाओं के लिए उन्हें 2024 में मुख्यमंत्री पदक से सम्मानित किया गया।

दशहरा में जब उठती है सूंड...

दशहरा में अभिमन्यु का आकर्षण देखने लायक होता है। जैसे ही राष्ट्रीय गान और राज्य गान बजते हैं, अभिमन्यु अपने अगले दोनों पैर उठाकर, अपनी सूंड ऊँची कर सलामी देता है यह दृश्य हर दर्शक को रोमांचित कर देता है। कैमरों की चमक, पटाखों की गूंज और लाखों की भीड़ के बीच भी अभिमन्यु पूर्णतः शांत रहते हैं।वे इस समय 5,450 किलो वजनी हैं, 2.74 मीटर ऊँचाई है, और उनकी पीठ पूरी तरह समतल है जो हौदा उठाने के लिए अनुकूल मानी जाती है।

अर्जुन से लेकर बलराम तक

मैसूरु दशहरा की परंपरा में कई हाथियों का योगदान रहा है। जयमर्तंडा, रामप्रसाद, मोतीलाल, गजेन्द्र, द्रोण, ऐरावत, बलराम और अर्जुन जैसे नाम महलों की दीवारों और इतिहास की किताबों में दर्ज हैं। अर्जुन को 1968 में पकड़ा गया था और उन्होंने आठ बार गोल्डन हौदा उठाया था। 4 दिसंबर 2023 को उनकी मृत्यु पर पूरे कर्नाटक में शोक की लहर दौड़ गई थी। अभिमन्यु अर्जुन की विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं। लेकिन शायद अब वह भी आखिरी बार।

दशहरा के बाद हाथियों की ज़िंदगी कैसे बदलती है?

हाथियों की देखभाल दशहरा के दौरान तो शाही स्तर पर होती है, लेकिन वन में लौटने के बाद वे मानसिक और शारीरिक रूप से बदल जाते हैं। 'People for Animals' की सविता नागभूषण कहती हैं, "दशहरा परंपरा अचानक नहीं रोकी जा सकती, लेकिन दशहरा के बाद हाथियों का स्वास्थ्य और मनोस्थिति बिगड़ सकती है। उन्हें दशहरे में आरामदायक भोजन और विश्राम की आदत हो जाती है, जिससे उनका वजन बढ़ता है। जंगल लौटकर प्राकृतिक भोजन अपनाना कठिन हो सकता है। इसलिए सरकार को पूर्व और पश्चात निगरानी बनाए रखनी चाहिए।

2025 में कौन होगा नया अगुवा?

अभिमन्यु की संभावित सेवानिवृत्ति के बाद, धनंजय, महेन्द्र, एकलव्य और कंजन जैसे हाथियों को उनका उत्तराधिकारी माना जा रहा है। 25 हाथियों की टीम के चयन की प्रक्रिया जारी है, जिसमें स्वास्थ्य परीक्षण, महावतों की राय, और प्राकृतिक संस्थानों से रिपोर्ट प्राप्त की जा रही है। इस बार, गर्भवती हथिनियों को लेकर विशेष सतर्कता बरती जा रही है। आईवीआरआई, बरेली भेजे गए मूत्र, रक्त और मल के नमूने इस बात की पुष्टि कर रहे हैं कि दशहरा दल में कोई हथिनी गर्भवती न हो जैसा कि एक बार लक्ष्मी के साथ हुआ था।

एक युग का समापन?

अभी के लिए, अभिमन्यु स्वस्थ हैं और पूरी तरह सक्षम हैं, लेकिन अगले वर्ष की स्थिति कुछ और हो सकती है। वन विभाग के उप संरक्षक डॉ. प्रभुगौड़ा कहते हैं, हम अगले वर्ष फैसला लेंगे। यदि यह सचमुच अबिमन्यु का अंतिम दशहरा है  तो यह सिर्फ एक हाथी की विदाई नहीं, बल्कि कर्नाटक की संस्कृति, परंपरा और गौरव के एक युग का भावुक अंत होगा।

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