सौजन्या की याद में उठी आवाज़, धर्मस्थल बना आंदोलन का केंद्र
कर्नाटक में सौजन्या केस और धर्मस्थल सामूहिक दफन मामले पर महिलाओं का आंदोलन तेज़। ‘कोंडवरु यारु?’ के नारे संग न्याय और जवाबदेही की मांग।;
कर्नाटक में महिलाओं का आंदोलन एक बार फिर तेज़ हो गया है। पूर्व सांसद प्रज्वल रेवन्ना के खिलाफ हुए ऐतिहासिक ‘हासन चलो’ अभियान के बाद अब धर्मस्थल सामूहिक दफन मामला महिलाओं के संघर्ष की नई ज़मीन बन गया है। नागरिक अधिकार कार्यकर्ता, लेखक और महिला संगठनों ने मिलकर नया मोर्चा बनाया है – ‘नोंदवरोंदिगे नव्वु–नीवु’ (हम-आप पीड़ितों के साथ)। इस मोर्चे का नारा है – ‘कोंडवरु यारु?’ (किसने मारा?)।
इस आंदोलन की मुख्य मांग है – 2012 में हुई सौजन्या बलात्कार और हत्या की जांच में न्याय, और हाल ही में धर्मस्थल क्षेत्र में सामने आए महिलाओं और पुरुषों के सामूहिक दफन के आरोपों की सच्चाई सामने लाना।
नेताओं पर भरोसा नहीं
महिला कार्यकर्ताओं का आरोप है कि कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही दल इस मामले को कमजोर करने में लगे हैं। डिप्टी सीएम डी.के. शिवकुमार ने विधानसभा में धर्मस्थल मामले को “षड्यंत्र” बताया था, वहीं बीजेपी नेताओं ने भी बंटी हुई आवाज़ में बयान दिए। इसलिए कार्यकर्ताओं का सरकार पर भरोसा खत्म हो गया है। अब वे राज्यव्यापी अभियान और विरोध प्रदर्शनों की तैयारी कर रहे हैं।
गांधी भवन में रणनीति बैठक
16 सितंबर को बेंगलुरु के गांधी भवन में कर्नाटक के अलग-अलग हिस्सों से 60 से ज़्यादा महिला कार्यकर्ता और नागरिक संगठनों के प्रतिनिधि जुटे। यही समूह पहले ‘नवेंद्दु निल्लादिद्दरे–कर्नाटक’ (अगर हम नहीं जागे–कर्नाटक) के नाम से सक्रिय था। इसी मंच ने प्रज्वल रेवन्ना के खिलाफ ‘हासन चलो’ रैली आयोजित की थी, जिसमें हजारों महिलाएं न्याय की मांग को लेकर सड़कों पर उतरी थीं।
अब लक्ष्य है – आंदोलन को और व्यापक बनाना।
हर गाँव तक जागरूकता अभियान पहुँचाना।
देशभर की महिला कार्यकर्ताओं को जोड़ना – जैसे बिलकिस बानो केस और निर्भया केस से जुड़े कार्यकर्ता।
लेखिका अरुंधति रॉय और नेता सुभाषिनी अली जैसे बड़े नामों को भी आमंत्रित करना।
नुक्कड़ नाटक और जन-जागरूकता
महिला समूहों ने तय किया है कि वे नुक्कड़ नाटक, गाँव-गाँव बैठकों और राज्यभर में सेमिनारों के जरिए आम जनता को जागरूक करेंगे। इसके बाद या तो धर्मस्थल या बेंगलुरु में एक बड़ा सम्मेलन किया जाएगा, जिसमें सौजन्या और अन्य पीड़ित महिलाओं के लिए न्याय की मांग उठाई जाएगी।
पुराने हत्याकांडों का सवाल
बैठक में कार्यकर्ताओं ने कहा कि धर्मस्थल सामूहिक दफन मामला सामने आने के बाद भी कई पुराने हत्या के मामले अनसुलझे पड़े हैं। इनकी जांच और न्याय भी ज़रूरी है।स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम (SIT) को पूरी स्वतंत्रता दी जाए।सौजन्या केस को गलत ढंग से संभालने वाले अधिकारियों पर कार्रवाई हो।
डॉ. वसुंधरा भूपति, वरिष्ठ लेखिका और उग्रप्पा समिति की सदस्य ने कहा “सैकड़ों असामान्य मौतों की जांच होनी चाहिए। नेताओं के बयानों और SIT की कार्यशैली देखकर लगता है कि सच फिर दबा दिया जाएगा। हम सोनिया गांधी तक को पत्र लिख चुके हैं। इतने बड़े पैमाने पर मौतें कैसे हो सकती हैं, बिना जवाबदेही के?”
नागरिक अधिकार कार्यकर्ता सिरीमाने मल्लीगे ने कहा “हमने इस संघर्ष को लगातार जीवित रखा है। न्याय तभी मिलेगा जब महिलाएं और लड़कियां मिलकर नेतृत्व करेंगी।”
जनवादी महिला संगठन की के.एस. विमला ने कहा “पूरा विश्व जानता है कि हत्यारे कौन हैं। अब समय है एक और बड़े आंदोलन का। हमें अन्याय के खिलाफ फिर से एकजुट होना होगा।”
सौजन्या की कहानी और उससे आगे
2012 में 17 वर्षीय कॉलेज छात्रा सौजन्या का बलात्कार कर हत्या कर दी गई थी। बड़े विरोध प्रदर्शनों के बावजूद जांच आगे नहीं बढ़ी। आरोप है कि राजनीतिक दबाव और संस्थागत संरक्षण के चलते असली अपराधियों को बचाया गया। सौजन्या का परिवार अब भी न्याय की प्रतीक्षा कर रहा है।
अब धर्मस्थल क्षेत्र में महिलाओं और नाबालिग लड़कियों के साथ बलात्कार और हत्या के बाद सामूहिक दफन के आरोपों ने लोगों के गुस्से को और भड़का दिया है। कार्यकर्ताओं का कहना है कि ये अलग-अलग घटनाएं नहीं, बल्कि चुप्पी और पर्दादारी के बड़े पैटर्न का हिस्सा हैं।
‘हासन चलो’ की गूंज
नया नारा ‘कोंडवरु यारु?’ (किसने मारा?) 2024 की ‘हासन चलो’ रैली से प्रेरित है।उस समय 10,000 से अधिक महिलाएं शामिल हुई थीं।आंदोलन ने सरकार को मजबूर किया कि भागे हुए प्रज्वल रेवन्ना को यूरोप से वापस लाया जाए।SIT को सख्त धाराओं में केस दर्ज करना पड़ा और यहां तक कि उनके पिता एच.डी. रेवन्ना की भी गिरफ्तारी हुई।अब कार्यकर्ताओं का मानना है कि अगर ‘धर्मस्थल चलो’ का आह्वान हुआ, तो यह भी पूरे देश में लहर पैदा करेगा।
कर्नाटक में महिलाओं का आंदोलन अब सिर्फ सौजन्या के न्याय तक सीमित नहीं है, बल्कि यह हर उस महिला और लड़की की आवाज़ बन रहा है जिसकी कहानी दबा दी गई। ‘हासन चलो’ की तरह ही ‘धर्मस्थल चलो’ भी राज्य और देश में न्याय की नई लहर बन सकता है।
(यह लेख पहली बार द फेडरल कर्नाटक में प्रकाशित हुआ था)