'चाचा को एक बार फिर गच्चा दे दिया', अखिलेश पर 'योगी' तंज, आखिर कब बिगड़ा रिश्ता

यह पहली बार नहीं है कि शिवपाल यादव के जरिए यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने तंज ना कसा हो।

By :  Lalit Rai
Update: 2024-07-30 06:45 GMT

Yogi Adityanath Comment On Shivpal Yadav: सियासत में अगर रिश्ते को तवज्जो मिलती तो आज यूपी विधानसभा में शिवपाल यादव नेता प्रतिपक्ष की कुर्सी पर विराजते। लेकिन भतीजा यानी अखिलेश यादव ने चुनाव उस शख्स का किया जो मुलायम सिंह यादव की पीढ़ी के हैं। माता प्रसाद पांडे को नेता प्रतिपक्ष बना दिया। सीएम योगी आदित्यनाथ पहले भी शिवपाल यादव को उदाहरण के तौर पर लेते हुए अखिलेश यादव पर तंज कसते रहे हैं। मौका विधानसभा के मानसून सेशन का है. योगी आदित्यनाथ आज महिला सुरक्षा पर आंकड़े पेश करते हुए बता रहे थे कि प्रदेश में कानून का राज स्थापित है। उसी दौरान कहा कि आपने एक बार फिर चाचा को गच्चा दे दिया. क्या करें यही इनकी नियति है. लेकिन आप चिंता ना करें। वरिष्ठतम सदस्य होने के नाते हम और यह सदन आपका सम्मान करता है।


2012 का वो साल था
यह पहला मौका नहीं है जब शिवपाल यादव के जरिए योगी आदित्यनाथ ने निशाना साधा हो। लेकिन यहां हम बात करेंगे कि चाचा- भतीजे के रिश्ते की। आखिर दोनों के बीच दूरी क्यों बढ़ी। इसके लिए साल 2012 में चलना होगा।  2012 में जब विधानसभा के चुनाव हुए तो मायावती की विदाई हो गई यानी जनता ने उन्हें नकार दिया। यूपी के अवाम ने सपा की साइकिल पर भरोसा जताया। यह वही साइकिल थी जिस पर सवार होकर मुलायम सिंह यादव और शिवपाल यादव मैनपुरी-एटा- इटावाच फिरोजाबाद-आगरा में जमीन तैयार की थी। नतीजों के आने के बाद सबकी नजर मुलायम सिंह यादव पर जा टिकी कि वो किसे सूबे की कमान सौंपते हैं.य भाई और बेटा दोनों विकल्प थे। लेकिन खून का रिश्ता भारी पड़ा। नेता जी यानी मुलायम सिंह यादव ने कमान बेटे को सौंप दी। 
अखिलेश यादव देश के सबसे बड़े सूबे के सीएम बन चुके थे। उनकी उम्र कम थी कि लिहाजा यूपी की सियासत में एक जुमला चल निकला कि यहां पर ढाई सीएम हैं. यानी आजम खान, शिवपाल यादव और अखिलेश यादव। यह बात सच है कि पद के अनुक्रम में अखिलेश यादव सबसे ऊपर थे. लेकिन राजनीति की पारी छोटी लिहाजा पार्टी के वरिष्ठ नेता सालों तक इस सच को स्वीकार नहीं कर सके कि अखिलेश यादव ही उनके नेता है। उसका असर यह हुआ कि शुरुआत के ढाई साल तक खींचतान चलती रही।
अखिलेश यादव भी तरह तरह की मुश्किलों का सामना करते हुए आगे बढ़ते रहे। ढाई साल के बाद वो छत्रछाया से बाहर आकर जब फैसले लेने लगे तो वही वो क्षण था जहां रिश्तों पर राजनीति भारी पड़ने लगी थी। 2017 में लखनऊ में वो ड्रामा याद ही होगा जब सपा के संरक्षक मुलायम सिंह यादव के सामने भतीजा और चाचा के बीच झड़प हुई। रुंधे हुए गले से दोनों एक दूसरे पर आरोप लगाते रहे और इस तरह से चाचा- भतीजा एक दूसरे से अलग हुए। सियासी पिच पर शिवपाल यादव ने प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के नाम से अलग पारी खेली हालांकि जनता ने आशीर्वाद नहीं दिया तो एक बार फिर सपा का झंडा पकड़ लिया हालांकि तात्कालिक जरूरत अखिलेश यादव को भी थी। लेकिन कहा जाता है कि सियासी फैसलों में रिश्तों का मोल नहीं होता है. और शिवपाल यादव नेता प्रतिपक्ष बनते बनते रह गए। 
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