जाति है कि जाती नहीं, इन तीन चरणों में किसी भी दल ने नहीं किया परहेज

भारतीय राजनीति की कड़वी सच्चाई है कि विकास की बात करते करते सियासी दल जाति की राजनीति पर उतर जाते हैं. यूपी की कहानी कुछ अलग नहीं है.

By :  Lalit Rai
Update: 2024-05-19 08:36 GMT

LokSabha Election 2024 News:  दिल्ली की गद्दी तक पहुंचने का रास्ता लखनऊ से होकर गुजरता है. सियासी गलियारों में इस कहावत की जमकर चर्चा होती है. आप के जेहन में सवाल उठ रहा होगा कि आखिर वजह क्या है. दरअसल यूपी से 80 सांसद लोकसभा में पहुंचते हैं. अगर 543 सीटों के हिसाब से देखें तो करीब 16 फीसद सांसद अकेले यूपी से आते हैं.इस आंकड़े से समझ सकते हैं कि किसी भी राजनीतिक दल के लिए यूपी क्यों महत्वपूर्ण है. अब हम देश के इस सबसे बड़े सूबे के सामाजिक समीकरण को समझने की कोशिश करेंगे.

अवध, पूर्वांचल, पश्चिम और बुंदेलखंड है पहचान

यूपी को मुख्य तौर पर आप चार हिस्सों से समझ सकते हैं. दिल्ली के करीब के जिले यानी सहारन पुर, मेरठ, गाजियाबाद, गौतमबुद्धनगर से लेकर आगरा अलीगढ़ तक का हिस्सा पश्चिमी यूपी कहलाता है. इसके साथ ही लखनऊ के आस पास जिले अवध का हिस्सा या मध्य यूपी, गोरखपुर, वाराणसी, आजमगढ़ मंडल के हिस्सों को पूर्वांचल और झांसी मंडल के जिलों को बुंदेलखंड के नाम से जाना जाता है. अगर पिछले आम चुनाव की बात करें तो कोई भी दल विकास की कितनी भी बात क्यों ना करे हकीकत में सामाजिक समीकरणों को साधने की कोशिश करता रहा है.

जब सोशल बेस का दायरा बढ़ा

2014 में जब बीजेपी का वजूद यूपी में ना के बराबर में था, बीजेपी के चाणक्य कहे जाने वाले अमित शाह को जिम्मेदारी मिली तो लोग एक बात कहते थे कि बीजेपी की तरफ से बेकार की कोशिश की जा रही है. लेकिन नतीजों ने सबको हैरान कर दिया. 2014 के नतीजे से उत्साहित बीजेपी ने अपने सामाजिक आधार का दायरा बढ़ाया और फिर साबित कर दिया कि सफलता के कुछ मंत्री में से यह एक है. बीजेपी के नक्शेकदम पर चलते हुए समाजवादी पार्टी ने 2022 में उस फॉर्मूले पर काम किया, हालांकि वो सरकार बनाने का आंकड़ा नहीं हासिल कर सके. लेकिन 2017 से बेहतर नतीजे हासिल करने में कामयाब रहे. वहीं कांग्रेस और बीएसपी का प्रदर्शन गिनती करने के लायक नहीं बचा. 

इस लाइन में छिपी है जाति की गणित

यूपी में कुल चार चरण तक 39 सीटों पर मतदान हो चुका है, और अब बाकी के तीन चरणों में कुल 41 सीटों पर चुनाव होना है. पूर्वांचल की 36 और बुंदेलखंड की 5 सीट है. 20 मई को बुंदेलखंड की और अवध की सभी सीटों पर चुनाव संपन्न हो जाएगा. 6वें और सातवें चरण में पूर्वांचल की सीटों पर चुनाव होगा. अगर उम्मीदवारों की बात करें ठाकुर बिरादरी से 2, ब्राह्मण, पांच समेत सामान्य वर्ग के 11 उम्मीदवार हैं, जबकि कुर्मी समाज से 8, निषाद समाज से पांच, एक यादव, एक पाल समेत 19 पिछड़ी जाति के उम्मदवार हैं. 11 दलित उम्मीदवारों में से चार पासी समाज और एक मुस्लिम उम्मीदवार है.

ये हैं कुछ सैंपल

चाहे बात इंडिया गठबंधन की हो या एनडीए की कहानी एक जैसी है.आप पूर्वांचल की दो सीटों से तस्वीर को समझ सकते हैं. पूर्वांचल की एक लोकसभा है घोसी जहां ओम प्रकाश राजभर की पार्टी चुनावी मैदान में है. उन्होंने अपने बेटे को मैदान में उतारा है. उसके पीछे की वजह करीब साढ़े तीन लाख राजभर वोट हैं.एनडीए की गुणा गणित में वो फिट नजर आए और सुभासपा के अंदर भी तमाम विरोध के बाद भी बीजेपी ने उनके नाम पर मुहर लगा दी. ठीक उसी तरह एक सीट सलेमपुर की है. इस सीट पर बीजेपी ने कुशवाहा बिरादरी से उम्मीदवार उतारा है. उम्मीद यही कि कुशवाहा बिरादरी का एकमुश्त वोट उनके दल की जीत में भूमिका अदा करेगा.

क्या कहते हैं जानकार

सियासत के जानकार कहते हैं कि जाति वो सच्चाई है जिसे आप झुठला नहीं सकते. आपको स्वीकार करना ही होगा. जब तक हर शख्स के घर पर छत हर हाथ को काम हर पेट को रोटी की व्यवस्था नहीं होगी जाति के जाल को तोड़ना आसान नहीं होगा. ऐसा नहीं है कि सियासी दल इस बात को नहीं समझते हैं.लेकिन हकीकत यह है कि वो एक बड़ी आबादी को मानसिक तौर पर पिछड़ा बने देखना चाहते हैं. क्योंकि उन्हें भी पता है कि एक बार दिमाग जब तर्क करना शुरू कर देगा उसके बाद ईवीएम पर निशानों के सामने मुहर वो अपनी सोच-समझ से लगाएगा. 

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