कश्मीर आज भी पूछता है, क्या कभी लौटेगी हमारी पहचान?
6 साल बाद भी अनुच्छेद 370 की याद कश्मीर में जख्म बनकर लौटती है। उम्मीदें टूट चुकी हैं, और अब लड़ाई बस राज्य के दर्जे की रह गई है।;
समय सारे जख्म भर देता है, ऐसा अक्सर कहा जाता है। लेकिन कश्मीर में यह कहावत सच साबित नहीं हुई। यहां पुराने जख्म नासूर बन चुके हैं और नए जख्म रोज़ उभरते हैं। आज, यानी 5 अगस्त को छह साल पूरे हो गए हैं जब केंद्र सरकार ने एक झटके में भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 को खत्म कर दिया था। यह एकतरफा फैसला उस संवैधानिक गारंटी को खत्म करने जैसा था, जिसने सात दशकों तक श्रीनगर और दिल्ली के बीच के संवेदनशील रिश्ते को किसी तरह टिकाए रखा था भले ही इस अनुच्छेद में समय-समय पर कटौतियां की गई हों।
5 अगस्त 2019 को न केवल अनुच्छेद 370 को निष्क्रिय किया गया, बल्कि जम्मू-कश्मीर से लद्दाख को अलग कर दो केंद्रशासित प्रदेशों में बांट दिया गया और राज्य का दर्जा छीन लिया गया। उस दिन स्वर्ग को कांटेदार तारों में जकड़ दिया गया। आम नागरिक हों या नेता, सबको या तो घरों में बंद कर दिया गया या जेलों में डाल दिया गया। संचार साधनों को पूरी तरह काट दिया गया। राज्य की मशीनरी के दमन ने जब हद पार की, तब न्यायपालिका की चुप्पी और सहमति ने habeas corpus जैसे मौलिक सिद्धांत को भी उलट कर रख दिया।
सुप्रीम कोर्ट की मुहर और लोकतंत्र की औपचारिक वापसी
लगभग साढ़े चार साल बाद, दिसंबर 2023 में सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले को वैध ठहराया, हालांकि एक "सांत्वना पुरस्कार" के तौर पर यह कहा गया कि एक साल के भीतर जम्मू-कश्मीर में चुनाव करवा दिए जाएंगे। लेकिन अगर इन जख्मों को वक़्त भर भी सकता था, तो वह मुमकिन नहीं हो सका। क्योंकि इस बार जख्म सिर्फ दिल्ली से नहीं, श्रीनगर से भी मिले।
2024 में हुए विधानसभा चुनावों में नेशनल कॉन्फ्रेंस (NC) ने भारी जीत दर्ज की। मुस्लिम-बहुल कश्मीर घाटी में उमर अब्दुल्ला की पार्टी ने भाजपा के जम्मू में अच्छे प्रदर्शन को भी पीछे छोड़ दिया। यह साफ था कि अनुच्छेद 370 की बहाली के वादे ने वोटरों को NC के पक्ष में लामबंद किया। मगर सत्ता में आते ही उमर अब्दुल्ला ने अपने रुख में नरमी दिखानी शुरू कर दी। उन्होंने अब 370 की बहाली की जगह सिर्फ राज्य का दर्जा लौटाने की मांग तक खुद को सीमित कर लिया और दिल्ली से रिश्ते सुधारने की कोशिशें शुरू कर दीं।
'हमारे साथ जो हुआ, उस पर कोई विरोध तक नहीं'
बारामुला निवासी और तीन दशक से NC के समर्थक अब्दुल्ला सत्तार कहते हैं, “हमें मालूम है कि विशेष दर्जा वापस पाना आसान नहीं है, लेकिन दुखद ये है कि चुनाव के बाद NC सरकार ने भाजपा के खिलाफ कोई आवाज़ तक नहीं उठाई।”
6वीं बरसी पर क्या होगा? चर्चाएं, आशंकाएं और प्रतीक्षाएं
आज, जब अनुच्छेद 370 की समाप्ति को छह साल हो गए हैं और उमर अब्दुल्ला को सत्ता में आए लगभग एक साल, तो घाटी में एक बार फिर बेचैनी है। अफवाहें फैल रही हैं कि शायद केंद्र सरकार राज्य का दर्जा लौटाए। वह भी कुछ शर्तों के साथ। कुछ अटकलें यह भी हैं कि ऐसा होने पर 10 महीने में ही नए चुनाव भी करवाए जा सकते हैं। लेकिन इन तमाम अटकलों के बीच, उमर अब्दुल्ला की प्रतिक्रिया काफी निराशाजनक रही। 4 अगस्त को गुजरात दौरे से लौटकर उन्होंने X (पूर्व ट्विटर) पर लिखा — “मैंने हर तरह की अटकलें सुनी हैं। लेकिन मेरा मानना है कि कल (5 अगस्त) कुछ नहीं होगा न कुछ अच्छा, न बुरा। मैं फिर भी मानसून सत्र से कुछ उम्मीद रखता हूं।”
यह बयान खुद उमर और कश्मीरी अवाम की उस मानसिकता को दर्शाता है जो अब शायद 370 की बहाली को असंभव मानने लगी है। अब लड़ाई ‘विशेष दर्जे’ की नहीं, बल्कि ‘राज्य के दर्जे’ की है क्योंकि वह शायद थोड़ी कम मुश्किल है।
'स्टेटहुड पहला कदम है, पर मंज़िल नहीं'
कश्मीर विश्वविद्यालय के पूर्व राजनीतिक विज्ञान प्रोफेसर और विश्लेषक नूर मोहम्मद बाबा मानते हैं कि दिल्ली ने मौजूदा सरकार को इतना सीमित कर दिया है कि अब वह केवल समझौता करने की नीति अपना रही है। NC की प्रवक्ता इफ़रा जान कहती हैं कि “राज्य का दर्जा बहाल होना विशेष दर्जे की बहाली की दिशा में पहला कदम है। जमीन, नौकरी, राजस्व, डोमिसाइल सब कुछ इससे जुड़ा है।"
NC में ही बढ़ती बेचैनी, INDIA गठबंधन में तनाव
हालांकि NC के भीतर ही असंतोष बढ़ रहा है। पार्टी के श्रीनगर से सांसद आगा रूहुल्लाह मेहदी ने चुनावी वादों से पीछे हटने को "विश्वासघात" करार दिया। दो महीने पहले वे पार्टी की एक बैठक से गुस्से में बाहर निकल गए थे।उधर कांग्रेस और NC के रिश्तों में भी खटास आ गई है। कांग्रेस ने पिछले महीने जमकर प्रदर्शन किए — दिल्ली और जम्मू में — राज्य का दर्जा बहाल करने की मांग को लेकर। जबकि NC ने इसे “जानबूझकर की गई तोड़फोड़” बताया। उमर अब्दुल्ला ने कहा कि “कांग्रेस ने महीनों तक कुछ नहीं किया और अब हंगामा कर रही है। इससे मोदी सरकार उल्टा अड़ सकती है।”
PDP की सीधी चोट
उमर अब्दुल्ला के ढुलमुल रुख पर पीडीपी ने कड़ा हमला बोला है। पार्टी के पुलवामा विधायक वाहिद पारा ने कहा “NC ने कश्मीरियों की भावनाओं से खेला है। 370 को लेकर वोट मांगे और अब सिर्फ स्टेटहुड की बात कर रहे हैं। अगर अनुच्छेद 370 हटने से आतंकवाद खत्म हुआ है, तो फिर 22 अप्रैल को पहलगाम में क्या हुआ?” उन्होंने तंज कसते हुए कहा “मुख्यमंत्री मोदी को खुश करने के लिए साबरमती में दौड़ लगाते हैं और स्टैच्यू ऑफ यूनिटी की यात्रा करते हैं।”
आम लोगों की नज़र में 5 अगस्त: हर साल की पीड़ा
सियासी बयानबाज़ी से इतर, घाटी के आम लोग अब उम्मीद लगभग छोड़ चुके हैं। श्रीनगर के विद्वान मीर सुहैल कहते हैं कि अब सभी दल ‘विशेष दर्जे’ की बहाली की मांग से पीछे हट चुके हैं। सोपोर के निवासी बिलाल अहमद भट कहते हैं “अगर 5 अगस्त को राज्य का दर्जा मिल भी जाए, तो जो अपमान और धोखा हमने महसूस किया है, वह मिट नहीं सकता। अनुच्छेद 370 हमारे गौरव और पहचान का प्रतीक था। जब किसी से उसकी पहचान छीन ली जाती है, तो फिर क्या बचता है?
5 अगस्त अब कश्मीर के लिए सिर्फ एक तारीख नहीं रही। यह हर साल लौट कर आती पीड़ा, धोखे और अधूरी उम्मीदों की याद बन गई है। और जब तक सियासत खास को छोड़ आम कश्मीरियों की आवाज़ नहीं बनेगी, तब तक यह तारीख हर साल एक नया सवाल बन कर सामने आती रहेगी: क्या हमारी पहचान कभी लौटेगी?